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सोमवार, 10 मई 2010

बाल गीत; अपनी माँ का मुखड़ा! --संजीव बर्मा 'सलिल'

बाल गीत
संजीव बर्मा 'सलिल'

मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!

सुबह उठाती गले लगाकर,
नहलाती है फिर बहलाकर,
आँख मूँद, कर जोड़ पूजती ,
प्रभु को सबकी कुशल मनाकर. , 

देती है ज्यादा प्रसाद फिर
                                                                   सबकी नजर बचाकर.

आँचल में छिप जाता मैं ज्यों
रहे गाय सँग बछड़ा.


मुझको सबसे अच्छा लगता - 
अपनी माँ का मुखड़ा.

बारिश में छतरी आँचल की
ठंडी में गर्मी दामन की., 
गर्मी में साड़ी का पंखा-, 
पल्लू में छाया बादल की ! 

दूध पिलाती है गिलास भर - 
कहे बनूँ मैं तगड़ा. , 
                                                                                                                                                  
                                                             मुझको सबसे अच्छा लगता - 
अपनी माँ का मुखड़ा!
*******

7 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

माँ तुझे सलाम

Divya Narmada ने कहा…

माँ तो केवल माँ होती है, मानव की हो या माधव की.
संतानों का जनम सफल, कर 'सलिल' वंदना माँ के पग की..
माणिक मंजु महेंद्र अर्चना, पंकज कुसुम शमा सहभागी-
वर्मा जी फिरदौस नमन लें मातृ -चरण के हम अनुरागी.

achal verma ekavita ने कहा…

सच कहूं तो मैं भी यही सोचता हूँ ,
आप ने उन्ही शब्दों को इतना सुन्दर रूप दे दिया है ,
जो ७५ सालों में भी मैं नहीं कह पाया |
आपकी जय हो.

Your's ,

Achal Verma

Divya Narmada ने कहा…

शुभाशीष है अचल का, सचल 'सलिल' के साथ.
रहे शीश पर हाथ तो, झुके न झुककर माथ..

shar_j_n ekavita ने कहा…

shar_j_n
ekavita

वाह! वाह! वाह!
टिंगू मास्टर खुश हुआ.

इतनी अच्छी कविता तो मेरी किताब में होनी चाहिए :)
बहुत बहुत तालियाँ

मुझे महादेवी की कविता याद आ गई... "माँ के ठाकुर जी भोले हैं "...
थेंक्यू दोस्त!

टिंगू मास्टर!

pankaj trivedi ने कहा…

सलिल साहब,
आपने तो माँ का ये बालगीत कितनी सरल भाषा में बारीकियों से बुना है ...! बचपन को लौटाने के लिएँ धन्यवाद

Rana Pratap Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर बाल गीत| माँ तो माँ ही होती है|