मुक्तिका
...चलो प्रिय.
संजीव 'सलिल'
लिये हाथ में हाथ चलो प्रिय.
कदम-कदम रख साथ चलो प्रिय.
मैं-तुम गुम हो, हम रह जाएँ.
बन अनाथ के नाथ चलो प्रिय.
तुम हो मेरे सिर-आँखों पर.
मुझे बनाकर माथ चलो प्रिय.
पनघट, चौपालें, अमराई
सूने- कंडे पाठ चलो प्रिय.
शत्रु साँप तो हम शंकर हों
नाच, नाग को नाथ चलो प्रिय.
'सलिल' न भाती नेह-नर्मदा.
फैशन करने 'बाथ' चलो प्रिय.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 20 मई 2010
मुक्तिका: ...चलो प्रिय --संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
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Contemporary Hindi Poetry,
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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