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रविवार, 30 मई 2010

मुक्तिका: .....डरे रहे.. --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

.....डरे रहे.

संजीव 'सलिल'
*













*
हम डरे-डरे रहे.
तुम डरे-डरे रहे.

दूरियों को दूर कर
निडर हुए, खरे रहे.

हौसलों के वृक्ष पा
लगन-जल हरे रहे.

रिक्त हुए जोड़कर
बाँटकर भरे रहे.

नष्ट हुए व्यर्थ वे
जो महज धरे रहे.

निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.

सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे.

****************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

18 टिप्‍पणियां:

गुड्डोंदादी ने कहा…

गुड्डोंदादी (:): अति सुंदर भावपूर्ण आशीर्वाद भाई

keertivardhan ने कहा…

kirti: bahut khoob salil ji

farhan khan ने कहा…

Farhan Khan: very nice....i have no word to appreciate

ब्लॉगर सूर्यकान्त गुप्ता … ने कहा…

निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.

सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे. "पर हित सरिस धरम नहि भाई" बहुत सुन्दर! यूं ही आप लगे रहें..

ब्लॉगर sangeeta swarup … ने कहा…

निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.

सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे.

सटीक और सुन्दर...

achal verma ekavita ने कहा…

बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर ,
"नहला तो देखा था पहले , अब मैंने दहला देख लिया |"

Your's ,

Achal Verma

pratap ने कहा…

आदरणीय ख़लिश जी

क्या बात है! इतनी छोटी बहर में कितनी खूबसूरती से आपने शेर कहे हैं. बहुत सुन्दर !

सादर
प्रताप

2010/5/29 Dr.M.C. Gupta



हम डरे -डरे रहे—ईकविता, २९ मई २०१०

हम डरे -डरे रहे
कोई क्या हमें कहे

धार वक्त की चली
हम रुके कभी बहे

फूल भी मिले हमें
खार हैं कभी सहे

दर्द न कहा कभी
होंठ हम सिये रहे

ग़म मिले मगर उन्हें
भूल ही ख़लिश रहे.

महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२० मई २०१०

ब्लॉगर सूर्यकान्त गुप्ता … ने कहा…

निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.

सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे. "पर हित सरिस धरम नहि भाई" बहुत सुन्दर! यूं ही आप लगे रहें..



ब्लॉगर सूर्यकान्त गुप्ता

ब्लॉगर sangeeta swarup … ने कहा…

निज हितों में लीन जो
समझिये मरे रहे.

सार्थक हैं वे 'सलिल'
जो फले-झरे रहे.

सटीक और सुन्दर...



ब्लॉगर sangeeta swarup …

ब्लॉगर honesty project democracy … ने कहा…

दूरियों को दूर कर
निडर हुए, खरे रहे.
ये ही आज किसी भी बदलाव को लाने में सक्षम हो सकता है |

ब्लॉगर डॉ० डंडा लखनवी … ने कहा…

छोटी बहर में मर्मस्पशी गजल....बहुत सुन्दर।

ब्लॉगर Shekhar Kumawat … ने कहा…

बहुत सुन्दर !

BADHAI AAP KO IS KE LIYE

ब्लॉगर गिरीश बिल्लोरे … ने कहा…

Achchaa hai

ब्लॉगर Babli … ने कहा…

रिक्त हुए जोड़कर
बाँटकर भरे रहे.
नष्ट हुए व्यर्थ वे
जो महज धरे रहे.
बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल!

ब्लॉगर राज भाटिय़ा … ने कहा…

बहुत सुंदर जी

praveen pandey ने कहा…

सुन्दर कविता ।

शार्दुला ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

सुन्दर!

सादर शार्दुला

Divya Narmada ने कहा…

शार्दुला जी
सादर वन्दे मातरम.
उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ.