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शनिवार, 5 जून 2010

मुक्तिका: अक्षर उपासक हैं.............. --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
संजीव 'सलिल'
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों के सँग- सँग सँवर जायेंगे हम.
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आयेंगे हम..
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बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटायें, बढ़ा जायेंगे हम.
चादर अगर ज्यों की त्यों रह सकी तो, आखर भी ढाई सुमिर गायेंगे हम..
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लिखना तो हक है, लिखेंगे हमेशा, न आलोचनाओं से डर जायेंगे हम.
कमियाँ रहेंगी ये हम जानते हैं, दाना बतायें सुधर पायेंगे हम..
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गम हो, खुशी हो, मुहब्बत-शहादत, न हो इसमें नफ़रत, न गुस्सा-अदावत.
महाकाल के हम उपासक हैं सच्चे, समय की चुनौती को शरमायेंगे हम..
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'खलिश' हो तो रचना में आती है खूबी, नादां 'सलिल' में खूबी ही डूबी.
फिर भी है वादा, न हम मौन होंगे, कल-कल में धुन औ' बहर गायेंगे हम..
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com
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