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गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मुक्तिका: ज़ख्म कुरेदेंगे.... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

ज़ख्म कुरेदेंगे....

संजीव 'सलिल'
*

peinture11.jpg

*
ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

छिपे हुए को बाहर लाकर क्या होगा?
रहा छिपा तो पीछे कहीं लगन होगी..

मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..

फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..

बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..

आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..

नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..

*************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

13 टिप्‍पणियां:

Dr. M.C.Gupta ने कहा…

सलिल जी,

आपकी रचनाशीलता प्रशंसनीय है. यह ग़ज़ल बहुत अच्छी कही गई है, विशेष रूप से--




ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..

आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..

***

निम्न में गन का प्रयोग (बंदूक के लिए) न जँचा.

सुझाव:


फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना भ्रमरों के हाथों में गन होगी..

>>>>

फूलों के शूलों को हँसकर सहन करो.
वरना इक दिन भौरों से अनबन होगी..

--ख़लिश

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

मुझे ग़ज़ल कहनी नहीं आती. हिन्दी व्याकरण और पिंगल के अनुसार मुक्तिका कहता हूँ.

Yograj prabhakar. ने कहा…

वाह वाह आचार्य जी बहुत ही लाजवाब रचना कही है आपने ! इसको पढते हुए इसमें से किसी सुंदर सी गजल की सुगंध महसूस हुई मुझे ! यूँ तो हरेक पंक्ति ही बहुत प्रभावशाली है, लेकिन निम्नलिखित पंक्तियाँ सीधे दिल में उतर गईं:

//ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..//
//बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी.//.

मेरा सादर साधुवाद स्वीकार करें !

pratapsingh1971@gmail.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी

नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी.. बहुत सुन्दर !


सादर
प्रताप

swamee shree param chetana nand ji ने कहा…

नमस्कार,
बहुत ही व्यवहारिक प्रेरणा दाई कविता

- smchandawarkar@yahoo.com ने कहा…

आचार्य सलिल जी,
अति सुन्दर!
"आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी.."
एक चिरन्तन सत्य!
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर

- ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,
" मुक्तिका " एक सुन्दर प्रस्तुति | हर पद प्रभावित करता हुआ | बधाई !
सादर,
कमल

- smurti123@gmail.com ने कहा…

Aasha hi Jeevan... Bahoot accha kaha

आज हमेशा कल को लेकर आता है.
स्वीकारो वरना कल से अनबन होगी..

sbiswani.blogspot.com

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

सुन्दर संदेश
नेह नर्मदा 'सलिल' हमेशा बहने दो.
अगर रुकी तो मलिन और उन्मन होगी..
नेह नर्मदा 'सलिल' सदा प्रवाहित एवं निर्मल बना रहे !
- प्रतिभा.

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

नेह-नर्मदा नहाकर, नित्य करें जो नाद.
'सलिल' नमन उनको करे, जो करते संवाद..

निर्मला कपिला ने कहा…

बीत गया जो रीत गया उसको भूलो.
कब्र न खोदो, कोई याद दफन होगी..
नमन है इस मुक्तिका के खजाने के आगे। आभार।

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

ज़ख्म कुरेदेंगे तो पीर सघन होगी.
शोले हैं तो उनके साथ अगन होगी..

मत उधेड़-बुन को लादो, फुर्सत ओढ़ो.
होंगे बर्तन चार अगर खन-खन होगी..

Waah Acharya waah , aap sabkey saujanya sey etani khubsurat rachnao ko padhney ko mil raha hai, bahut badhiya rachna, jai hoooooooo

Etips-Blog Team … ने कहा…

सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार