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बुधवार, 14 जुलाई 2010

समस्यापूर्ति: बात बस इतनी सी थी संजीव 'सलिल'

समस्यापूर्ति:

बात बस इतनी सी थी

संजीव 'सलिल'
*
Wagah+-+India-Pakistan+Border.JPG

*
क्यों खड़ा था अँधेरे में
ठण्ड से वह कांपता?
जागकर रातों में
बारिश और अंधड़ झेलता.
तपिश सूरज की न उसको
तनिक विचलित कर रही.
भुलाकर निज दर्द-पीड़ा
मौत से चुप खेलता
नवोढ़ा से दूर
ममता-नेह को भूला हुआ.
पिता-माता, बन्धु-बांधव
बसे दिल में पर भुला
नहीं रागी, ना विरागी
करे पूजा कर्म की.
मानता कर्त्तव्य को ही
साधना वह धर्म की.
नहीं चिता तनिक कल की,
भय न किंचित व्याप्त.
'सलिल' क्यों अनथक पगों से
वह धरा था नापता?
देश की रक्षा ही उसको
साध्य और अभीष्ट थी.

बात बस इतनी सी थी.
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