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शनिवार, 10 जुलाई 2010

नव गीत: स्नान कर रहा..... ---संजीव वर्मा 'सलिल'

नव गीत:
स्नान कर रहा.....
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
*
शतदल, पंकज, कमल, सूर्यमुख
श्रम-सीकर से                                                                              
स्नान कर रहा.
शूल चुभा
सुरभित गुलाब का फूल-
कली-मन
म्लान कर रहा...
*
*
जंगल काट, पहाड़ खोदकर                                                                   
ताल पाटता महल न जाने.
भू करवट बदले तो पल में-
मिट जायेंगे सब अफसाने..


सरवर सलिल समुद्र नदी में
खिल इन्दीवर कुई बताता
हरिपद-श्रीकर, श्रीपद-हरिकर
कृपा करें पर भेद न माने..

कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का
गान कर रहा.
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
पुण्डरीक सिंधुज वारिज                  
तोयज उदधिज
नव आस जगाता.
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता..

पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख-
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता.


उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का  
भान कर रहा.
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव 
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
बिसिनी नलिन सरोज कोकनद
जाति-धर्म के भेद न मानें.
मन मिल जाए ब्याह रचायें-
एक गोत्र का खेद न जानें..

दलदल में पल दल न बनाते,
ना पंचायत, ना चुनाव ही.
शशिमुख-रविमुख रह अमिताम्बुज
बैर नहीं आपस ठानें..

अमलतास हो या पलाश
पुहकर पुष्कर का गान कर रहा.
सौगन्धिक पुन्नाग अलोही
श्रम-सीकर से
स्नान कर रहा.....
*
*
चित्र : कमलासना, कमलनयन, पद कमल,  कमल मुखी के कर कमलों की कमल मुद्रा, कमल-जड़, कमल-बीज, कमल-नाल (मृणाल), कमल-पत्र, कमल-जड़ के टुकड़े, कमल-गट्टा.**************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

8 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ... ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद.

sharda monga (aroma) ... ने कहा…

कमल के दुर्लभ पर्यायवाची अमूल्य मोतियों की माला से नवगीत को सुसज्जित करने के लिए आपका धन्यवाद.

डा सुभाष राय ... ने कहा…

सलिल जी,

आप ने गीत में कमल परिवार का सम्पूर्ण परिचय ही करा दिया.

आप की आप्त भाषा वैदिक काल की याद करा देने वाली है, आप के अतिशय गहन अध्ययन का संकेत देती है.

भारतीयता का नैसर्गिक आनन्द यहां पर मिलता है.

गीत तो आप के हाथ में खेलता है.

कटारे ... ने कहा…

सलिल जी ने कमाल ही कर दिया।

कमल के इतने नाम तो छोटे मोटे शब्दकोष में भी नहीं मिलते।
कुंद कुमुद क्षीरज नीरज नित
सौगन्धिक का गान कर रहा
सरसिज, अलिप्रिय, अब्ज, रोचना
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा.....

पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता

sharda monga (aroma) ... ने कहा…

सलिल जी को कमल के निम्न लिखित पर्यावाची नाम देने के लिए धन्यवाद:
अब्ज,अलिप्रिय,अर्विन्दिनी,अलोही,अम्बुज,अम्भज, अमिताम्बुज,अहशिमुख,इन्दीवर,उत्पल,उदधिज,कमल,कुंद,कुमुद, कुमुदिनी,कमलिनी,कैरव,कोकनद,जलज,जलज,जलरुह, तोयज,नलिन, नीरज,पंकज,पुंग,पद्म,पुह्कर,पुष्कर, पुन्नाग,पुंडरिक, मुकुंद,राजीव,रविमुख,वारिज,शतदल,सरोज, सरसिज,,सिन्धुज, सूर्यमुख,क्षीरज,

कुछ नाम मेरी तरफ से :
सलिलज,मृणालिनी,नलिनी,अरविन्द.
धन्यवाद

उत्तम द्विवेदी ... ने कहा…

सलिल जी को एक अच्छे नवगीत के लिए बधाई!
आप का हर नवगीत हमें बहुत कुछ सिखाता है,धन्यवाद.

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ... ने कहा…

भ्रमर हैं पाठक,
कमल हैं गीति रचना.
नहीं है संभव
सुरभि से तनिक बचना.
'सलिल' लहरें
किलोलित हो बह रही हैं.
नव सृजन की ऋचाएँ
कुछ कह रही हैं.
आपका आभार शत-शत
जो सराहा.
नेह का नाता हमेशा
ही निबाहा.

विमल कुमार हेड़ा... ने कहा…

पुण्डरीक सिंधुज वारिज
तोयज उदधिज नव आस जगाता
कुमुदिनि, कमलिनि, अरविन्दिनी के
अधरों पर शशिहास सजाता
पनघट चौपालों अमराई
खलिहानों से अपनापन रख
नीला लाल सफ़ेद जलज हँस
सुख-दुःख एक सदृश बतलाता
उत्पल पुंग पद्म राजिव
कब निर्मलता का भान कर रहा
जलरुह अम्बुज अम्भज कैरव
श्रम-सीकर से स्नान कर रहा
बहुत ही सुन्दर रचना सलिल जी को बहुत बहुत बधाई,
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।