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शनिवार, 7 अगस्त 2010

विचित्र किन्तु सत्य: 'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'

विचित्र किन्तु सत्य:

           'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'

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 इमारत के सामने की मीनारें और जलागार 

कहते हैं 'truth is strange than fiction' अर्थात सत्य कल्पना से भी अधिक विचित्र होता है. विश्व के सात आश्चर्यों में से एक तथाकथित ताजमहल के सम्बन्ध में यह पूरी तरह सत्य है. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के चापलूस इतिहासकारों ने सरासर झूठ लिखा और इतिहास की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास किया कि इस खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताजमहल की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्मृति में बनवाया. 

यह भी कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते. यही सत्य के बारे में भी है. कितना भी छिपाओ सच कहीं न कहीं से प्रगट हो ही जाता है.  

सदियों तक प्रयास करने के बाद भी सच छिप नहीं सका. देश की सर्वेक्षण सेवा के सर्वोपरि अधिकारी स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी कृति 'ताजमहल कभी राजपूती महल था में अकाट्य प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि ताजमहल का वास्तविक नाम तेजोमहालय था. यह राजपूत राजाओं का महल था जिसमें भगवान शिव का विशाल मंदिर था. शाहजहाँ एक विलासी राजा था, जिसे हर रात एक नयी औरत के बिताने का शौक था. उसके सैंकड़ों बच्चे थे. लगभग हर साल  बच्चे जनने से बेहद कमजोर हो गयी बेगम की मौत एक प्रसूति के बाद हुई जिसे बुरहानपुर में दफन किया गया. बाद में बादशाह के आगरा आने पर मुस्लिम दरबारियों ने राजपूतों के प्रभाव और वीरता से ईर्ष्या के कारण उन्हें नीचा दिखाने के लिये बादशाह को उकसाया कि बेगम की याद में शानदार मकबरा हो. लगातार लड़ाइयों के कारण खाली शाही खजाने पर बोझ न पड़े इसलिए बादशाह को सुझाव दिया गया कि राजपूतों के इस महल को मकबरे में बदल दिया जाए. बादशाह के प्रति निष्ठां के सवाल पर राजपूतों ने इसे खाली किया. 

ताजमहल का आकाशीय दृश्य......

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ओक कहते हैं कि......
 

ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर
,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था. 

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत १०००  से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, खंड एक के पृष्ठ ४०२ और ४०३ पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था मौत के के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार,को उसके शव को मकबरे से निकाल कर अकबराबाद आगरा लाया गया. फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से छीने गए, आगरा स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया. लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे. 
 

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 ताजमहल के अन्दर जल कूप. हिन्दू मंदिरों में स्नान के बाद शिव का जलाभिषेक करने की प्रथा है

जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे....... 
 
सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, हिन्दुओं से छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था , उदाहरणार्थ हुमायूँअकबरएतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.

=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है--------- 

गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य
 
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==>ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद पानी टपकता है. विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद-बूँद कर पानी नहीं टपकाया जाता. शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद जल गिराकर अभ्बिशेक करने की परंपरा है.

मकबरा महल नहीं होता:
 ="महलशब्दअफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता. यहाँ यह व्याख्या करना कि 'महल' शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है--------- 

पहला -----
शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल नही, मुमताज-उल-ज़मानी था.

और दूसरा-----
किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है... 

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 ताज का शिखर: मंदिरों के शिखर पर कलश बनाया जाता है. 

 प्रो.ओक का दावा है कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है. उनके अनुसार मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है. शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है..... 
 
आँगन में शिखर के छायाचित्र का रूपांकन
 
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==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पुराना है...

==>मुमताज की मृत्यु सन १६३१ में हुई थी उसी वर्ष भारत आए अंग्रेज भ्रमणकर्ता पीटर मुंडी के अनुसा: ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
 
प्रवेश द्वार पर कमल:
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कमल का पुष्प विष्णु और लक्ष्मी  का प्रतीक है

==>
यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् १६३८ (मुमताज कि मृत्यु के ०७ साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया. परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य १६३१ से १६५१ तक जोर-शोर से चल रहा था.
  
ताज के पिछले हिस्से में बाइस कमरे: 
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==>
औरंगजेब की ताजपोशी के समय भारत आये और दस साल यहाँ रहे फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो के अनुसार: औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.

पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजे:

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विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा
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मकबरे के पास संगीतालय:एक विरोधाभास
 
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ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........


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ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से आज तक बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं.   
 

निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह

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दीवारों पर बने फूलों में ओम् ( ॐ )

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प्रो. ओक.जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि चिन्ह प्रयोग किये जाते हैं. 

निचले तल पर जाने के लिए सीढियां
 
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राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
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निचले तल के २२ गुप्त कमरों मे से एक कमरा
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२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य

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अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य
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एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत


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ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....

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अन्य कमरों से गुप्त संपर्क हेतु दरवाजों में गुप्त दीवार


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साक्ष्यों छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा

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बुरहानपुर स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी की मृत्यु हुई

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बादशाहनामा के अनुसार मुमताज यहाँ दफनाई गईं
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प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाएऔर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .
 
 आंसू टपक रहे हैंहवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें
,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
 













आभार: अनुपम  कुलश्रेष्ठ,  वकील,  Rajasthan High Court Jaipur
 

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