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सोमवार, 16 अगस्त 2010

हास्य कविता: जन्म दिन संजीव 'सलिल'

हास्य कविता:

जन्म दिन

संजीव 'सलिल'

*
















*
पत्नी जी के जन्म दिवस पर, पति जी थे चुप-मौन.
जैसे उन्हें न मालूम है कुछ, आज पधारा कौन?

सोचा तंग करूँ कुछ, समझीं पत्नी: 'इन्हें न याद.
पल में मजा चखाती हूँ,भूलेंगे सारा स्वाद'..

बोलीं: 'मैके जाती हूँ मैं, लेना पका रसोई.
बर्तन करना साफ़, लगाना झाड़ू, मदद न कोई..'

पति मुस्काते रहे, तमककर की पूरी तैयारी.
बाहर लगीं निकलने तब पति जी की आयी बारी..

बोले: 'प्रिय! मैके जाओ तुम, मैं जाता ससुराल.
साली-सासू जी के हाथों, भोजन मिले कमाल..'

पत्नी बमकीं: 'नहीं ज़रुरत तुम्हें वहाँ जाने की.
मुझे राह मालूम है, छोडो आदत भरमाने की..'

पति बोले: 'ले जाओ हथौड़ी, तोड़ो जाकर ताला.'
पत्नी गुस्साईं: 'ताला क्या अकल पे तुमने डाला?'

पति बोले : 'बेअकल तभी तो तुमको किया पसंद.'
अकलवान तुम तभी बनाया है मुझको खाविंद..''

पत्नी गुस्सा हो जैसे ही घर से बाहर  निकलीं.
द्वार खड़े पीहरवालों को देख तबीयत पिघली..

लौटीं सबको ले, जो देखा तबियत थी चकराई.
पति जी केक सजा टेबिल पर रहे परोस मिठाई..

'हम भी अगर बच्चे होते', बजा रहे थे गाना.
मुस्काकर पत्नी से बोले: 'कैसा रहा फ़साना?'

पत्नी झेंपीं-मुस्काईं, बोलीं: 'तुम तो हो मक्कार.'
पति बोले:'अपनी मलिका पर खादिम है बलिहार.'

साली चहकीं: 'जीजी! जीजाजी ने मारा छक्का.
पत्नी बोलीं: 'जीजा की चमची! यह तो है तुक्का..'

पति बोले: 'चल दिए जलाओ, खाओ-खिलाओ केक.
गले मिलो मुस्काकर, आओ पास इरादा नेक..

पत्नी ने घुड़का: 'कैसे हो बेशर्म? न तुमको लाज.
जाने दो अम्मा को फिर मैं पहनाती हूँ ताज'..

पति ने जोड़े हाथ कहा:'लो पकड़ रहा मैं कान.
ग्रहण करो उपहार सुमुखी हे! आये जान में जान..'

***

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

7 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

सलिल जी,

आपको कमाल हासिल है.

--ख़लिश

- anandkrishan@yahoo.com ने कहा…

वाह संजीव जी.....

लगता है आजकल ई-कविता में महिलाओं का नाराज़ हो कर मायके जाने का फैशन चल रहा है.... पहले सुनीता शानू जी की कविता और अब आपकी (आपके तेवर से बिलकुल भिन्न) कविता...... और वो भी एक जैसे अवसर, यानी जन्मदिवस पर.......... भाई वाह. कल्पना में ही सही पर स्वाधीनता पर्व के आसपास अनेक लोगों ने स्वाधीनता का एहसास कर लिया होगा.

मेरे मामले में ये यथार्थ है. इन दिनों मेरी श्रीमती जी कुछ कार्यवश; (क्रोधवश नहीं) भोपाल गई हैं और घर में केवल मैं, छः वर्षीय बेटी मौली और ढाई वर्षीय पुत्र चारू हैं.

सादर-


आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
http://hindi-nikash.blogspot.com

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

आपका हास्य-लेखन भी मज़ेदार !
- प्रतिभा.

achal verma ekavita ने कहा…

बहुत ही दिलचस्प प्रसंग रहा यह तो ।



"बेचारी को कहाँ पता था , पति को याद जन्मदिन।

न्योता है ससुराल को पूरे ,भूला नही वो पलछिन ॥

पासा उल्टा पडा, नहीं जा पाई माँ के पास ।

धमकी खाली गया ,रच गया एक नया इतिहास॥"



आचार्य जी का हर प्रयास नयापन लिये आता है और

हर बार सफ़ल रहता है।बधाईयाँ ।


Your's ,

Achal Verma

Divya Narmada ने कहा…

पत्नी निष्ठा कमल सी, अचल-अमल शुभ दिव्य.
खलिश न यह प्रतिभा अगर, जीवन 'सलिल' न नव्य..

- shanoo03@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय संजीव जी यह गलत बात है मायके जाना ही रूकवा दिया। जनमदिन की श्रीमति जी को बहुत-बहुत बधाई दीजियेगा।आपने बहुत सुन्दर हास्य कविता लिखी है,धन्यवाद।

ye jindagi ek khoobsurat kavita hai aur mai ise jee bhar ke jeenaa chahati hoon.....

sunita shanoo
man pakheroo fir udd chala

Acharya Sanjiv Salil ने कहा…

पढ़ें गृहस्थी की हम, गीता सदा पुनीता.
भूल मायके बसे सासरे, सदा सुनीता..
*
सबका मैका ईश घर, दुनिया है ससुराल.
कोई न चाहे मायका, सबको प्रिय ससुराल.
सबको प्रिय सुसराल, न कोई कहे लौटना.
चाह रहे सब यहीं सदा रह भाँग घोंटना..
कहे 'सलिल' कविराय, न भूले भौजी-साली.
मिले ना मिले ऊपर, घरवाली नखराली..