हास्य कविता:
जन्म दिन
संजीव 'सलिल'
*
*
पत्नी जी के जन्म दिवस पर, पति जी थे चुप-मौन.
जैसे उन्हें न मालूम है कुछ, आज पधारा कौन?
सोचा तंग करूँ कुछ, समझीं पत्नी: 'इन्हें न याद.
पल में मजा चखाती हूँ,भूलेंगे सारा स्वाद'..
बोलीं: 'मैके जाती हूँ मैं, लेना पका रसोई.
बर्तन करना साफ़, लगाना झाड़ू, मदद न कोई..'
पति मुस्काते रहे, तमककर की पूरी तैयारी.
बाहर लगीं निकलने तब पति जी की आयी बारी..
बोले: 'प्रिय! मैके जाओ तुम, मैं जाता ससुराल.
साली-सासू जी के हाथों, भोजन मिले कमाल..'
पत्नी बमकीं: 'नहीं ज़रुरत तुम्हें वहाँ जाने की.
मुझे राह मालूम है, छोडो आदत भरमाने की..'
पति बोले: 'ले जाओ हथौड़ी, तोड़ो जाकर ताला.'
पत्नी गुस्साईं: 'ताला क्या अकल पे तुमने डाला?'
पति बोले : 'बेअकल तभी तो तुमको किया पसंद.'
अकलवान तुम तभी बनाया है मुझको खाविंद..''
पत्नी गुस्सा हो जैसे ही घर से बाहर निकलीं.
द्वार खड़े पीहरवालों को देख तबीयत पिघली..
लौटीं सबको ले, जो देखा तबियत थी चकराई.
पति जी केक सजा टेबिल पर रहे परोस मिठाई..
'हम भी अगर बच्चे होते', बजा रहे थे गाना.
मुस्काकर पत्नी से बोले: 'कैसा रहा फ़साना?'
पत्नी झेंपीं-मुस्काईं, बोलीं: 'तुम तो हो मक्कार.'
पति बोले:'अपनी मलिका पर खादिम है बलिहार.'
साली चहकीं: 'जीजी! जीजाजी ने मारा छक्का.
पत्नी बोलीं: 'जीजा की चमची! यह तो है तुक्का..'
पति बोले: 'चल दिए जलाओ, खाओ-खिलाओ केक.
गले मिलो मुस्काकर, आओ पास इरादा नेक..
पत्नी ने घुड़का: 'कैसे हो बेशर्म? न तुमको लाज.
जाने दो अम्मा को फिर मैं पहनाती हूँ ताज'..
पति ने जोड़े हाथ कहा:'लो पकड़ रहा मैं कान.
ग्रहण करो उपहार सुमुखी हे! आये जान में जान..'
***
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 16 अगस्त 2010
हास्य कविता: जन्म दिन संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-Acharya Sanjiv Verma 'Salil',
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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7 टिप्पणियां:
सलिल जी,
आपको कमाल हासिल है.
--ख़लिश
वाह संजीव जी.....
लगता है आजकल ई-कविता में महिलाओं का नाराज़ हो कर मायके जाने का फैशन चल रहा है.... पहले सुनीता शानू जी की कविता और अब आपकी (आपके तेवर से बिलकुल भिन्न) कविता...... और वो भी एक जैसे अवसर, यानी जन्मदिवस पर.......... भाई वाह. कल्पना में ही सही पर स्वाधीनता पर्व के आसपास अनेक लोगों ने स्वाधीनता का एहसास कर लिया होगा.
मेरे मामले में ये यथार्थ है. इन दिनों मेरी श्रीमती जी कुछ कार्यवश; (क्रोधवश नहीं) भोपाल गई हैं और घर में केवल मैं, छः वर्षीय बेटी मौली और ढाई वर्षीय पुत्र चारू हैं.
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
http://hindi-nikash.blogspot.com
आपका हास्य-लेखन भी मज़ेदार !
- प्रतिभा.
बहुत ही दिलचस्प प्रसंग रहा यह तो ।
"बेचारी को कहाँ पता था , पति को याद जन्मदिन।
न्योता है ससुराल को पूरे ,भूला नही वो पलछिन ॥
पासा उल्टा पडा, नहीं जा पाई माँ के पास ।
धमकी खाली गया ,रच गया एक नया इतिहास॥"
आचार्य जी का हर प्रयास नयापन लिये आता है और
हर बार सफ़ल रहता है।बधाईयाँ ।
Your's ,
Achal Verma
पत्नी निष्ठा कमल सी, अचल-अमल शुभ दिव्य.
खलिश न यह प्रतिभा अगर, जीवन 'सलिल' न नव्य..
आदरणीय संजीव जी यह गलत बात है मायके जाना ही रूकवा दिया। जनमदिन की श्रीमति जी को बहुत-बहुत बधाई दीजियेगा।आपने बहुत सुन्दर हास्य कविता लिखी है,धन्यवाद।
ye jindagi ek khoobsurat kavita hai aur mai ise jee bhar ke jeenaa chahati hoon.....
sunita shanoo
man pakheroo fir udd chala
पढ़ें गृहस्थी की हम, गीता सदा पुनीता.
भूल मायके बसे सासरे, सदा सुनीता..
*
सबका मैका ईश घर, दुनिया है ससुराल.
कोई न चाहे मायका, सबको प्रिय ससुराल.
सबको प्रिय सुसराल, न कोई कहे लौटना.
चाह रहे सब यहीं सदा रह भाँग घोंटना..
कहे 'सलिल' कविराय, न भूले भौजी-साली.
मिले ना मिले ऊपर, घरवाली नखराली..
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