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बुधवार, 15 सितंबर 2010

अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर: मुक्तिका: हम अभियंता अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'




अभियंता दिवस पर मुक्तिका:
 
हम अभियंता

अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कंकर को शंकर करते हैं हम अभियंता.
पग-पग चल मंजिल वरते हैं हम अभियंता..

पग तल रौंदे जाते हैं जो माटी-पत्थर.
उनसे ताजमहल गढ़ते हैं हम अभियंता..

मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ, आश्रम तुम जाओ.  
कार्यस्थल की पूजा करते हम अभियंता..

टन-टन घंटी बजा-बजा जग करे आरती.
श्रम का मन्त्र, न दूजा पढ़ते हम अभियंता.. 

भारत माँ को पूजें हम नव निर्माणों से.
भवन, सड़क, पुल, सुदृढ़ सृजते हम अभियंता..

अवसर-संसाधन कम हैं, आरोप अधिक पर-
मौन कर्म निज करते रहते हम अभियंता..
 
कभी सुई भी आया करती थी विदेश से.
उन्नत किया देश को हँसते हम अभियंता..
 
लोहा माने दुनिया भारत का, हिन्दी का.
ध्वजा तिरंगी ऊँची रखते हम अभियंता..
 
कार्य हमारा श्रेय प्रशासन ले लेता है.
'सलिल' अदेखे आहें भरते हम अभियंता..
*******************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम




14 टिप्‍पणियां:

KUSUM THAKUR ने कहा…

wah bahut achhi rachana hai

Udan Tashtari ने कहा…

अभियंता दिवस पर हार्दिक अभिनन्दन!!


अच्छी रचना!

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी

अभियंता दिवस पर लिखी यह रचना बहुत ही सशक्त और सहीभावार्थ लिए है। मन प्रसन्न हो गया।
मेरी वधाई स्वीकारें।
सन्तोष कुमार सिंह

Amitabh Tripathi ✆ ekavita ने कहा…

आ० सलिल जी

विलम्ब से ही सही अभियंता दिवस की बधाई!

अपने मनोगत भाव और अंत में अपनी पीड़ा को अच्छे ढंग से उकेरा है आपने|

एक दो स्थलों पर प्रवाह दोष दिखा कृपया देख लें|

सादर
अमित

shriprakash shukla ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,

अति सुन्दर . बधाई.

सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल

- ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,

अभियंता दिवस पर मुक्तिका भाव दृष्टि से अत्यंत सराहनीय है |

प्रवाह पर अमित जी के सुझाव से सहमत हूँ आशा है आपने विचार कर लिया होगा, संभवतः क्रिया " है " के प्रचुर प्रयोग से प्रवाह बाधित प्रतीत होता है | हो सकता है मेरा अनुमान सही न हो |

विषय-वस्तु को हर दृष्टिकोण से साकार
कर देने में आपका काव्य-कौशल निःसंदेह अद्वितीय है |

नमन !

सादर,
कमल

Divya Narmada ने कहा…

आप सबका हार्दिक धन्यवाद. खेद है कि अवसर विशेष के अनुरूप अधिकाधिक कहने के मोह ने लयात्मकता न्यून कर दी. अस्तु...

कर लेते संतोष, छिने वाजिब हक तो भी.
मेघ ढँके अमिताभ, सूर्य हैं हम अभियंता..

श्री-प्रकाश हम पर हो, तो जग कहे भ्रष्ट हैं.
कीचड़ बीच कमल, निर्मल हैं हम अभियंता..

आहुति देकर भी अपयश पाया कलशों से. .
प्रगति-नीव के पत्थर ही हैं हम अभियंता..

Ganesh jee bagee ने कहा…

अभियंता दिवस पर पूज्यनीय भारत रत्न, अभियंता शिरोमणि विश्वेशरैया जी को इस से अच्छी श्रन्धान्जली कुछ नहीं हो सकता, एक बेहतरीन मुक्तिका, अभियंता दिवस की ढ़ेरो बधाईया स्वीकार करे |

ravi kumar giri 'guruji' ने कहा…

अवसर-संसाधन कम हैं, आरोप अधिक पर-
मौन कर्म निज करते रहते हम अभियंता..
लोहा माने दुनिया भारत का, हिन्दी का.
ध्वजा तिरंगी ऊँची रखते हम अभियंता..

saty aapne sahi likha hain bahut sundar rachna

navin c. chaturvedee ने कहा…

सलिल जी अपने आप में अनूठी और शायद अपनी तरह की पहली प्रस्तुति होनी चाहिए ये| बहुत बहुत बधाई|

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

धन्यवाद.

दें आशीष बने रवि जैसे बागी हम भी.
मिटा पुराना सृज नवीन दें हम अभियंता..

Asheesh Yadav ने कहा…

salil ji pranaam,
ek engineer kya karta hai apne jiwan me, bakhubi kaha hai aapne. bahut achchhi kawita kahi hai aapne

rakesh khandelval. ने कहा…

Rakesh Khandelwal
ekavita

विवरण दिखाएँ ६:३२ अपराह्न (5 घंटों पहले)



आदरणीय

अवसर-संसाधन कम हैं आरोप अधिक पर-
मौन कर्म निज करते रहते हैं हम अभियंता..
आपको सादर नमन.

राकेश

- shakun.bahadur@gmail.com ने कहा…

विलम्ब से ही सही,अभिय़न्ता-दिवस की बधाई स्वीकार करें।
अभियन्ता के कर्मठ-जीवन का व्यापक दिग्दर्शन सराहनीय है।
आचार्य जी, आपको इस सुन्दर रचना के लिये बधाई!!

शकुन्तला बहादुर