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रविवार, 26 सितंबर 2010

बाल गीत / नव गीत: ज़िंदगी के मानी संजीव 'सलिल'

बाल गीत / नव गीत:

ज़िंदगी के मानी

संजीव 'सलिल'
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..

टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी, 
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..

                                                                                             
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..

मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है. 
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.

मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..

अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..

सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*


Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

12 टिप्‍पणियां:

- ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर बालगीत / नव गीत की रचना पर आपकी लेखनी को नमन
कमल

dr. m. c. gupta 'khalish' ने कहा…

Dr.M.C. Gupta ✆
ekavita

विवरण दिखाएँ २:५१ अपराह्न (4 घंटों पहले)



सलिल जी,

बहुत सुंदर, शिक्षाप्रद गीत है. छंद-संयोजन का आपने पूरा ध्यान रखा है, जो निम्न रूप में अधिक उजागर होता है

--ख़लिश

*******





खोल झरोखा, झाँक ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा, पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ, शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया रोज प्रभाती गायेगी..

टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी, करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी तुझको निकट बुलायेगी..

आलस मत कर, आँख खोल, हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक- ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो आँखें लाल दिखायेगी..

मलकर बदन नहा ले जल्दी, प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर- विपदा दूर हटाएगी.

मुक्त कंठ-गा भजन-आरती, सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक- ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर, तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना, अपना ज्ञान बढ़ाना है..

अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़, तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर तुझे सफलता पाना है..

सारी दुनिया घर जैसी है, गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक- ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....


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Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

आत्मीय!
वन्दे मातरम.
आपका कहना सही है. बच्चों कम लम्बी पंक्ति याद करने में सुविधाजनक प्रतीत होगी इसलिए वर्तमान रूप में रचना को रखा है. आपका आशीष मिल धन्य हुआ. ''मेरे कुँवर कलेवा कर'' के सन्दर्भ में निवेदन है कि विवाह के समय पाणिग्रहण के बाद 'कुँवर कलेवा' की रस्म होती है. बुन्देली शब्द 'कलेवा का अर्थ प्रातः काल का स्वल्पाहार, नाश्ता या पाथेय (अगले सफर हेतु दिया जानेवाला सामान आदि) होता है. इस रस्म का उद्भव कैसे हुआ यह इस रचना में निहित है.

arun sharma. ने कहा…

very nice msg i thougt i should share-------while a man was polishing his new car, his 4 yr oid son picked stone & scratched line on the side of the side of car. in anger,the man took the child,s hand & hit maney times,not realizing he was using a wrench. at the hospital, the child lost all his fingures due to multipa...l fractures . when the child saw his father --- with painful eyes he asked , dad when will my fingers grow back? man was so hurt and speechless. he went back to car and kicked it many times. devastated by his own action--sitting in front of the car he looked at the scratches, child had written.... LOVE YOU DAD next day that man committed suicide .... anger and love have no limites..... always remember that things are to be used and people are to be loved, but the problem in today,s worldis that , people are used and things are loved,

Simaran Sharma ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायी रचना है । ऐसे ही लिखते रहिये ।

निर्मला कपिला : ने कहा…

सलिल जी की किसी रचना के लिये ये कहने की जरूरत ही कहाँ है कि अच्छी लगी वो तो लगेगी ही। मा शारदे जो उनका हाथ पकड कर लिखवाती हैं। बहुत दिन बाद इस ब्लाग पर आई ब्लागवाणी के जाने से कई ब्लाग छूट जाते हैं। धन्यवाद।

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

निर्मला आशीष दें तो, विमल होगा ही सलिल.
जानता सच देव सीमा, नन्हा मन हल पल नवल..

डॉ. मोनिका शर्मा : ने कहा…

बहुत ही प्यारी और सीख देने वाली रचना..... आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी....

चैतन्य शर्मा : ने कहा…

अंकल! आपकी कविता बड़ी अच्छी लगी.....

रानी विशाल : ने कहा…

बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद कविता कही है

....सलिल नानाजी को बहुत बहुत धन्यवाद !

नन्ही ब्लॉगर
अनुष्का

Akshita (Pakhi) : ने कहा…

बहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद कविता .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' (उच्चारण) :: ने कहा…

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' (उच्चारण) :

अरे वाह!
बालगीत तो बहुत ही सुन्दर है!