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रविवार, 5 सितंबर 2010

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो ---दीपिका कुलश्रेष्ठ

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो 

दीपिका कुलश्रेष्ठ
Journalist, bhaskar.com


ताज़ा घोषणा के अनुसार अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया है.
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या निम्नानुसार है :
अंग्रेजी- 10,00,000       चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000         स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000             जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000             फ्रेंच- 100,000
                                                     (स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)

                 हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं।
                 कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा मात्र है।
                इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द होने का कारण यह है कि 
अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं। हिंदी में ऐसा क्यों नहीं किया जाता। जब 'जय हो' अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएँ पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है  ।

क्या है आपकी राय ?
क्या हिंदी में नए शब्दों को जगह दी जानी चाहिए?
अपनी राय कमेंट्स बॉक्स में जाकर दें! 
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                                                                                    आभार : हिंदुस्तान का दर्द.  

1 टिप्पणी:

Divya Narmada ने कहा…

हिन्दी में शब्द भंडार कम नहीं है. हिन्दी शब्दों का समृद्ध कोष छापनेवाले नहीं हैं क्योंकि वह बिकेगा नहीं. अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित युवा पीढ़ी हिन्दी का प्रयोग नहीं करती. हिन्दी की पुस्तकें नहीं खरीदती. आपको हिन्दी की चिंता करते देखकर विस्मित हूँ. बधाई. आप में हिन्दी की उज्जवल किरण देख रहा हूँ. आप तो पत्रकारिता से जुड़ी हैं. किसी प्रकाशक को तलाश सकें तो ६ माह में २.५ लाख़ से अधिक हिन्दी शब्दों का कोष मैं तैयार कर दूँगा. आपकी जानकारी के लिये यह भी बता दूँ कि १,४०,३०० हिन्दी शब्दों का कोष स्व.कालिका प्रसाद, राजवल्लभ सहाय तथा मुकुंदीलाल श्रीवास्तव द्वारा सम्पादित होकर ज्ञान मंडल वाराणसी द्वारा संवत २००९ (१९५३ईसवी) में प्रकाशित किया जा चुका है. विविध प्रदेशों में प्रचलित आंचलिक बोलियों और विज्ञ की विविध शाखाओं से सम्बंधित शब्दों को जोड़कर हिन्दी में शब्द-संख्या अंग्रेजी से कहीं आगे हो जाएगी. जरूरत इस कार्य के लिये धन तथा प्रकाशन की व्यवस्था की है. प्रयास करिए... शायद पत्रकारिता के माध्यम से यह जुटाया जा सके. सरकार के स्तर पर यह नहीं हो सकेगा. समर्पित लोगों की जरूरत होगी, जो स्वेच्छा से सहयोग करें. गंभीर हों तो विस्तार से चर्चा करें मेरा संपर्क सूत्र निम्न है: आचार्य संजीव 'सलिल' / http://divyanarmada.blogspot.com / salil.sanjiv@gmail.com