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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

सामयिक कविता: फेर समय का........ संजीव 'सलिल'

सामयिक कविता:

फेर समय का........

संजीव 'सलिल'
*
फेर समय का ईश्वर को भी बना गया- देखो फरियादी.
फेर समय का मनुज कर रहा निज घर की खुद ही बर्बादी..
फेर समय का आशंका, भय, डर सारे भारत पर हावी.
फेर समय का चैन मिला जब सुना फैसला, हुई मुनादी..

फेर समय का कोई न जीता और न हारा कोई यहाँ पर.
फेर समय का वहीं रहेंगे राम, रहे हैं अभी जहाँ पर..
फेर समय का ढाँचा टूटा, अब न दुबारा बन पायेगा.
फेर समय का न्यायालय से खुश न कोई भी रह पायेगा..

फेर समय का यह विवाद अब लखनऊ से दिल्ली जायेगा.
फेर समय का आम आदमी देख ठगा सा रह जायेगा..
फेर समय का फिर पचास सालों तक यूँ ही वाद चलेगा.
फेर समय का नासमझी का चलन देश को पुनः छलेगा..

फेर समय का नेताओं की फितरत अब भी वही रहेगी.
फेर समय का देश-प्रेम की चाहत अब भी नहीं जगेगी..
फेर समय का जातिवाद-दलवाद अभी भी नहीं मिटेगा.
फेर समय का धर्म और मजहब में मानव पुनः बँटेगा..



फेर समय का काले कोटोंवाले फिर से छा जायेंगे.
फेर समय का भक्तों से भगवान घिरेंगे-घबराएंगे..
फेर समय का सच-झूठे की परख तराजू तौल करेगी.
फेर समय का पट्टी बांधे आँख ज़ख्म फिर हरा करेगी..



फेर समय का ईश्वर-अल्लाह, हिन्दू-मुस्लिम एक न होंगे.
फेर समय का भक्त और बंदे झगड़ेंगे, नेक न होंगे..
फेर समय का सच के वधिक अवध को अब भी नहीं तजेंगे.
फेर समय का छुरी बगल में लेकर नेता राम भजेंगे..


फेर समय का अख़बारों-टी.व्ही. पर झूठ कहा जायेगा.
फेर समय का पंडों-मुल्लों से इंसान छला जायेगा..
फेर समय का कब बदलेगा कोई तो यह हमें बताये?
फेर समय का भूल सियासत काश ज़िंदगी नगमे गाये..


फेर समय का राम-राम कह गले राम-रहमान मिल सकें.
फेर समय का रसनिधि से रसलीन मिलें रसखान खिल सकें..
फेर समय का इंसानों को भला-बुरा कह कब परखेगा?
फेर समय का गुणवानों को आदर देकर कब निरखेगा?


फेर समय का अब न सियासत के हाथों हम बनें खिलौने.
फेर समय का अब न किसी के घर में खाली रहें भगौने..
फेर समय का भारतवासी मिल भारत की जय गायें अब.
फेर समय का हिन्दी हो जगवाणी इस पर बलि जाएँ सब..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

3 टिप्‍पणियां:

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

आचार्य जी,
"फेर समय का" बहुत बढ़िया यह फेर है, सारे सामायिक घटनाओं को आप ने समय के फेर से समझा दिया है, बहुत सुंदर, पुनः एक बेहतरीन अभिव्यक्ति पर बधाई ,

- shakun.bahadur@gmail.com ने कहा…

आ.आचार्य जी,
आपकी सामयिक,सार्थक और सशक्त रचना अच्छी लगी।
शकुन्तला बहादुर

Asheesh Yadav ने कहा…

Acharya ji pranam, aapki rachnao se sadaiw kuch n kuchh sikhne ko milta hi hai. Aur ye rachna to samay ke fer se hi bni h to bhala ye kaise nhi bhati