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शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति दोहांजलि : संजीव 'सलिल'


महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति दोहांजलि :

संजीव 'सलिल'                                                                                                                             
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म - महक रहा यश-कीर्ति से, जिनकी भारत देश. 

हा - हाड़-मांस के मनुज थे, हम से किन्तु विशेष..
म - मन-मन्दिर निर्मल बना, सरस्वती का वास.

ना - नाना कष्ट सहे किये, भागीरथी प्रयास.. 

म - मद न उन्हें किंचित हुआ, 'मदन' रहा बन दास.

द - दमन न उनकी नीति थी, संयत दीप उजास..
न - नमन करे जन-गण उन्हें, रख श्रृद्धा-विश्वास.
मो - मोह नहीं किंचित किया, 'मोहन' धवल हुलास..


ह - हरदम सेवा राष्ट्र की, था जीवन का ध्येय.
न - नहीं उन्हें यह चाह थी, मिले तनिक भी श्रेय..


मा - माल तिजोरी में सड़े, सेठों की है व्यर्थ.

ल - लगन लगी धन धनपति, दें जो धनी-समर्थ..

वी - वीर जूझ बाधाओं से, लेकर रोगी देह.

य - यज्ञ हेतु खुद चल पड़ा, तनिक न था संदेह..

अ - अनजानों का जीत मन, पूर्ण किया संकल्प.

म - मन ही मन सोचा नहीं, बेहतर कोई विकल्प..

र - रमा न रहना चाहिए, निज हित में इंसान. 

हैं - हैं जिसमें शिक्षा वही, इंसां है भगवान..
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     विश्वनाथ के धाम में, दिया बुद्ध ने ज्ञान.

     लिया न इस युग में उसे, हमने आया ध्यान..

     शिक्षा पा मानव बने, श्रेष्ठ राष्ट्र-सन्तान.

     दीनबन्धु हो हर युवा, सद्भावों की खान..

     संस्कार ले सनातन, आदम हो इंसान.

     पराधीनता से लड़े, तरुणाई गुणवान..

     नरम नीति के पक्षधर, थे अरि-हीन विदेह.

     संत सदृश वे विरागी, नहीं तनिक संदेह..

     आता उन सा युग पुरुष, कल्प-कल्प के बाद.

     सत्य सनातन मूल्य-हित, जो करता संवाद..
     उनकी पावन प्रेरणा, हो जीवन-पाथेय.
    
     हिन्दी जग-वाणी बने, रहे न सच अज्ञेय..

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