भाई दूज पर विशेष रचना :
मेरे भैया
संजीव 'सलिल'
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
*****
मेरे भैया
संजीव 'सलिल'
*
मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...
*
साथ-साथ पल-पुसे, बढ़े हम
तुमको पाकर सौ सुख पाये.
दूर हुए एक-दूजे से हम
लेकिन भूल-भुला न पाये..
रूठ-मनाने के मधुरिम दिन
कहाँ गये?, यह कौन बताये?
टीप रेस, कन्ना गोटी है कहाँ?
कहाँ है 'ता-ता थैया'....
*
मैंने तुमको, तुमने मुझको
क्या-क्या दिया, कौन बतलाये?
विधना भी चाहे तो स्नेहिल
भेंट नहीं वैसी दे पाये.
बाकी क्या लेना-देना? जब
हम हैं एक-दूजे के साये.
भाई-बहिन का स्नेह गा सके
मिला न अब तक कोई गवैया....
*
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
दूज-गीत, राखी-कविता संग
तूने भेजी खुशियाँ सब ही.
तेरी चाहत, मेरी ताकत
भौजी की सौ बार बलैंया...
*****
18 टिप्पणियां:
अरे मालिक! ये हुई न बात| भला कौन 'गवैया' गाएगा भाई बहन के स्नेह को! और 'बलैया' शब्द को सुन कर तो [जाल पर] जैसे सालों हो गये| बहुत खूब ! बहुत खूब! यह क्रम हर दिन जारी रहे सलिल जी, ये मेरा सविनय आग्रह है आप से|
चार वेदों में चतुर जो, दे रहा आदेश.
सर झुका स्वीकार है, दें शक्ति श्री वागेश..
//मेरे भैया!,
किशन कन्हैया...//
क्या बात है, क्या बात है, क्या बात है ! आचार्य जी. सिर्फ इतना ही कहूँगा - जवाब नहीं आपका !
धन्यवाद. आपने लाजवाब कर दिया.
गीत पर गीत लिखे जा रहे हैं सलिल जी और वो भी एक से बढ़कर एक। बहुत बहुत बधाई।
मालिक का हुआ हुक्म तो, मजदूर है मजबूर.
काम ना किया तो रूठ जायेंगे हुज़ूर..
झेल लीजिये, मगर न फ़ोड़ियेगा बम.
ऐसा न हो कि हाथ से गिर जाए यह कलम.
सलिला के तीरे बसे, सलिल नाम परताप|
सलिलज की है कामना, क्यूँकि योग्य हैं आप||
काम-रहित जो कामना, सबका हित वह साध.
मार सके अज्ञान-मृग, सृजन कर्म बन व्याध..
वाह सर वाह , पहले धनतेरस और अब भईया दूज, मतलब साफ है दीपावली की मिठाई बाकी है,
देकर भी देने का मन हो
देने की सार्थकता तब ही.
तेरी बहिना हँसकर ले-ले
भैया का दुःख विपदा अब ही..
बहुत ही खुबसूरत कृति , बहुत सुंदर ,
आचार्य जी पहले ब्राह्मण को बाद में बग़ावती को| मिठाई के मामले में पहला नम्बर मेरा लगना चाहिए
करे पुरातन को नवीन जो,
उसका शत अभिनन्दन.
पूर्व मिठाई के मस्तक पर
अर्पित कुंकुम-चन्दन
मैं हूँ शब्दों का हलवाई.
जो भी रचना तुम्हें पठाई.
रस आस्वादन नहीं किया क्या?
थोडा तो सच बोलो भाई....
सलिल-पान कर तृप्त नहीं क्या.
क्यों करते नाहक रुसवाई?
पंक्ति-पंक्ति में, शब्द-शब्द में
गोता लगा, रूह मुस्काई..
बागी 'सलिल' बगावत भूला.
बोला: नमन नर्मदा माई..
सलिल-पान कर तृप्त नहीं क्या.
क्यों करते नाहक रुसवाई?
आचार्य जी, झूठ नहीं बोलेंगे, बिलकुल रस पान किया, किन्तु बाल मन है ना, बाया हाथ पर प्रसाद लेकर दाहिना हाथ आगे कर दिया धनतेरस और भईया दूज की मिठाई खाने के बाद दिवाली की मिठाई के लिये मन ललचाने लगा | वैसे आप की रचनाओं से मन भरता कहा ? केवल दिल से निकलता है .......ये दिल मांगे मोर....
salil ji kaun hoga yaha jo aapki in rasmayi geeto ka aanand na uthata hoga. agar wah koi hoga to wah swayam ko abhaga samjhe.
Sach me aap shabdon ke Halwaai hain sir ji. Tabhee to itne badhiyan aur meethe shabd mishthanna bana kar ham logon ko paroste hain.
bhai bahan ke is pyar ko aap hi itni badhiya se prastut kar sakte the. sach kahu to aap ki koi kawita mai jaanane me nahi chhodta. padh kar awashya kuchh nakuchh sikhne ko milta hai.
टिप्पणियों से ऐसा ही प्रतीत होता है की मात्र ५-७ रसिक ही रसपान कर रहे हैं... शेष...???
बसते हैं रसनिधि यहाँ, रमते हैं रसखान.
रसिक मिले रसलीन भी, 'सलिल' करे रस-दान..
नवरस का मधु पिए वह, दरस-परस कर मीत.
जो चाहे दिल हारना, वही सका दिल जीत..
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