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शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

"अर्चना" - कुसुम ठाकुर -


"अर्चना"

- कुसुम ठाकुर -
माँ कैसे करूँ आराधना ,
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ ।
द्वार तिहारे आकर मैया ,
कैसे मैं शीश झुकाऊँ ।

मन में मेरे पाप का डेरा ,
माँ कैसे उसे निकालूं ।
न मैं जानूं भजन-आरती ,
कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।

बीता जीवन अंहकार में ,
याद न आयी मैया ।
डूब रही है नैया ,
माँ कैसे पार लगाऊं।

कर्म ही पूजा रटते-रटते ,
बीता जीवन सारा ।
पर तन भी अब साथ न देवे ,
कैसे तुझे बुलाऊँ ।
मैं तो बस इतना ही जानूँ ,
माँ, सब की सुधि लेती ।
दौड़ उठा ले गोद में मैया ,
मैं तुझ में खो जाऊँ ।
                                            ****  


1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर!!


या देवी सर्व भूतेषु सर्व रूपेण संस्थिता |
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

-नव-रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं-