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मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

गीत: जीवन तो... संजीव 'सलिल'

गीत:

जीवन तो...

संजीव 'सलिल'
*
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
हाथ न अपने रख खाली तू,
कर मधुवन की रखवाली तू.
कभी कलम ले, कभी तूलिका-
रच दे रचना नव आली तू.

आशीषित कर कहें गुणी जन
वाह... वाह... यह तो दिग्गज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
मत औरों के दोष दिखा रे.
नाहक ही मत सबक सिखा रे.
वही कर रहा और करेगा-
जो विधना ने जहाँ लिखा रे.

वही प्रेरणा-शक्ति सनातन
बाधा-गिरि को करती रज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*
तुझे श्रेय दे कार्य कराता.
फिर भी तुझे न क्यों वह भाता?
मुँह में राम, बगल में छूरी-
कैसा पाला उससे नाता?

श्रम -सीकर से जो अभिषेकित
उसके हाथ सफलता-ध्वज है.
जीवन तो कोरा कागज़ है...
*

2 टिप्‍पणियां:

achal verma ekavita ने कहा…

यह मेरा सौभाग्य है की आप मेरे मित्र हैं
देखने को मिल रहे सुन्दर तम गीत विचित्र हैं ||

ब्लॉगर राज भाटिय़ा … ने कहा…

बहुत सुंदर ्कविता धन्यवाद