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शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

मुक्तिका : .......क्यों है? संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

.......क्यों है?

संजीव 'सलिल'
*
काम रहजन का करे नाम से रहबर क्यों है?
मौला इस देश का नेता हुआ कायर क्यों है??

खोल अखबार- खबर सच से बेखबर क्यों है?
फिर जमीं पर कहीं मस्जिद, कहीं मंदर क्यों है?

जो है खूनी उकाब उसको अता की ताकत.
भोला-मासूम परिंदा नहीं जबर क्यों है??

जिसने पैदा किया तुझको तेरी औलादों को.
आदमी के लिए औरत रही चौसर क्यों है??

एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला.
पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है??

लाख खाता है कसम रोज वफ़ा की आदम.
कर न सका आज तलक बोल तो जौहर क्यों है??

पेट पलता है तेरा और मेरा भी जिससे-
कामचोरी की जगह, बोल ये दफ्तर क्यों है??

ना वचन सात, ना फेरे ही लुभाते तुझको.
राह देखा किया जिसकी तू, वो कोहबर क्यों है??

हर बशर चाहता औरत तो पाक-साफ़ रहे.
बाँह में इसको लिए, चाह में गौहर क्यों है??

पढ़ के पुस्तक कोई नादान से दाना न हुआ.
ढाई आखर न पढ़े, पढ़ के निरक्षर क्यों है??

फ़ौज में क्यों नहीं नेताओं के बेटे जाते?
पूछा जनता ने तो नेता जी निरुत्तर क्यों है??

बूढ़े माँ-बाप की खातिर न जगह है दिल में.
काट-तन-पेट खड़ा तुमने किया घर क्यों है??

तीन झगड़े की वज़ह- जर, जमीन, जोरू हैं.
ये अगर सच है तो इन बिन न रहा नर क्यों है??

रोज कहते हो तुम: 'हक समान है सबको"
ये भी बोलो, कोई बेहतर कोई कमतर क्यों है??

अब न जुम्मन है, न अलगू, न रही खाला ही.
कौन समझाए बसा प्रेम में ईश्वर क्यों है??

रुक्न का, वज्न का, बहरों का तनिक ध्यान धरो.
बा-असर थी जो ग़ज़ल, आज बे-असर क्यों है??

दल-बदल खूब किया, दिल भी बदल कर देखो.
एक का कंधा रखे दूसरे का सर क्यों है??

दर-ब-दर ये न फिरे, वे भी दर-ब-दर न फिरे.
आदमी आम ही फिरता रहा दर-दर क्यों है??

कहकहे अपने उसके आँसुओं में डूबे हैं.
निशानी अपने बुजुर्गों की गुम शजर क्यों है??

लिख रहा खूब 'सलिल', खूबियाँ नहीं लेकिन.
बात बेबात कही, ये हुआ अक्सर क्यों है??

कसम खुदा की, शपथ राम की, लेकर लड़ते.
काले कोटों का 'सलिल', संग गला तर क्यों है??

बेअसर प्यार मगर बाअसर नफरत है 'सलिल'.
हाय रे मुल्क! सियासत- जमीं बंजर क्यों है??

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रहजन = राह में लूटनेवाला, रहबर = राह दिखानेवाला, मौला = ईश्वर, उकाब = बाज, अता करना = देना, जबर = शक्तिवान, बशर = व्यक्ति, गौहर = अपने समय की सर्वाधिक प्रसिद्ध वैश्या, नादान = नासमझ,  दाना = समझदार, रुक्न = लयखंड, वज्न = पदभार , बहर = छंद, बेअसर = प्रभावहीन, बा-असर = प्रभावपूर्ण, शजर = वृक्ष, जमीं = भूमि.

6 टिप्‍पणियां:

-- नवीन चतुर्वेदी ने कहा…

वव्वाह वव्वाह वव्वाह
क्या बात है सलिल जी| क्या एक से बढ़ कर एक शेर पेश किए हैं आपने तो| अब मुशायरे में मज़ा आना शुरू हुआ| बहुत खूब बहुत खूब|

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

रुक्न का, वज्न का, बहरों का तनिक ध्यान धरो.
बा-असर थी जो ग़ज़ल, आज बे-असर क्यों है??
एक संदेश देता हुआ शेर, कमाल है आपके ख्यालात, बधाई ,

- विवेक मिश्र 'ताहिर' ने कहा…

आचार्य जी को मेरा प्रणाम स्वीकार हो. आपकी मुक्तिका (या 'ग़ज़ल') पढने के पश्चात, अपनी भावनाओं को वश में नहीं कर पाया.

/काम रहजन का करे नाम से रहबर क्यों है?
मौला इस देश का नेता हुआ कायर क्यों है??/
- नेताओं पर तीखी टिपण्णी करता ये मतला मुझे बहुत पसंद आया.

/जो है खूनी उकाब उसको अता की ताकत.
भोला-मासूम परिंदा नहीं जबर क्यों है??/
- ये भी एकदम सच्ची बात है. आज के दौर में, 'खूनी उकाब' की ताकत दिन-ब-दिन बढती जा रही है, जबकि मासूम परिंदा पहले की ही तरह आज भी कमज़ोर है. बहुत खूब.

/एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला.
पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है??/
- यद्यपि इस शे'अर में सकते का ऐब आ रहा है (पाक+का), तथापि भारत-पाक संबंधों की वर्तमान दशा को परिलक्षित करता ये शे'अर बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है.

/पेट पलता है तेरा और मेरा भी जिससे-
कामचोरी की जगह, बोल ये दफ्तर क्यों है??/
- इस शे'अर ने मुझे मेरे ऑफिस की याद दिला दी. कुछ सहकर्मियों के चेहरे याद आ गए और एकाध बार अपना चेहरा भी ध्यान आया.. [:-P]

/हर बशर चाहता औरत तो पाक-साफ़ रहे.
बाँह में इसको लिए, चाह में गौहर क्यों है??/
- इस शे'अर ने तो जेहन में इक तलातुम सी मचा दी. आज किसी भी व्यक्ति से पूछें तो उसे एकदम साफ़ छवि वाली बाला की कामना होगी, भले ही वह व्यक्ति स्वयं में कैसा ही हो.

मेरी दृष्टि में, इस बार के मुशायरे की असल रौनक तो आपके ही अश'आर हैं. दाद कबूल करें.
जय हो...!!

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

कौन किसका है सगा और किसे गैर कहें?
फिर ज़मीं पर कहीं ताइर कहीं ताहिर क्यों है?

पहली मुक्तिका में ताहिर आने के बाद इतनी जल्दी ताहिर से मुलाकात हो गयी... मजा आ गया. कलाम में आपने कहीं खुद को पाया तो कलम और कलाम दोनों को मंजिल मिल गई.

आपका शुक्रगुज़ार हूँ कि आपने एब बताया... यही तो होना चाहिए... निवेदन यह कि हिन्दी काव्य शास्त्र में इसे दोष नहीं माना गया है. ध्वनि विज्ञानं की दृष्टि से पढ़ते समय 'पाक का' का उच्चारण 'पाक्का' की तरह हो जाएगा... यह ठीक नहीं है.

/एक ही माँ ने हमें दूध पिलाकर पाला.
पीठ हिन्दोस्तां की पाक का खंजर क्यों है??/
- यद्यपि इस शे'अर में सकते का ऐब आ रहा है (पाक+का), तथापि भारत-पाक संबंधों की वर्तमान दशा को परिलक्षित करता ये शे'अर बरबस ही ध्यान आकर्षित करता है.
क्या 'हिंद को भोंक दिया पाक ने खंजर क्यों है?' लिखने से एब दुरुस्त होता है? या 'हिंद की पीठ-जगा भाई का खंजर क्यों है?' किया जाए?
आप तथा अन्य शायर भी कोई रास्ता बता सकते हैं.

http://www.ashokbajaj.com/ ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट,बधाई.
कृपया इसे भी पढ़े -- राष्ट्र-हित में एक खुशखबरी
http://www.ashokbajaj.com/

rajni malhotra nayyar ने कहा…

bahut khub sir ji ...........jitni tareef ki jay kam hai .........lekhni kamaal ki lagi ...