मुक्तिका:
खिलेंगे फूल.....
संजीव 'सलिल'
*
खिलेंगे फूल-लाखों बाग़ में, कुछ खार तो होंगे.
चुभेंगे तिलमिलायेंगे, लिये गलहार तो होंगे..
लिखे जब निर्मला मति, सत्य कुछ साकार तो होंगे.
पढेंगे शब्द हम, अभिव्यक्त कारोबार तो होंगे..
करें हम अर्थ लेकिन अनर्थों से बचें, है मुमकिन.
बनेंगे राम राजा, सँग रजक-दरबार तो होंगे..
वो नटवर है, नचैया है, नचातीं गोपियाँ उसको.
बजाएगा मधुर मुरली, नयन रतनार तो होंगे..
रहा है कौन ज़ालिम इस धरा पर हमेशा बोलो?
करेगा ज़ुल्म जब-जब तभी कुछ प्रतिकार तो होंगे..
समय को दोष मत दो, गलत घटता है अगर कुछ तो.
रहे निज फ़र्ज़ से गाफिल, 'सलिल' किरदार तो होंगे..
कलम कपिला बने तो, अमृत की रसधार हो प्रवहित.
'सलिल' का नमन लें, अब हाथ-बन्दनवार तो होंगे..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
मुक्तिका: खिलेंगे फूल..... संजीव 'सलिल'
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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1 टिप्पणी:
खिलेंगे फूल लाखो ......
बहुत अच्छी कविता लगी.
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