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शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

लेख : हिंदी की प्रासंगिकता और हम. संजीव वर्मा 'सलिल'

लेख :
 
हिंदी की प्रासंगिकता और हम.
संजीव वर्मा 'सलिल'

हिंदी जनवाणी तो हमेशा से है...समय इसे जगवाणी बनाता जा रहा है. जैसे-जिसे भारतीय विश्व में फ़ैल रहे हैं वे अधकचरी ही सही हिन्दी भी ले जा रहे हैं. हिंदी में संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, उर्दू , अन्य देशज भाषाओँ या अंगरेजी शब्दों के सम्मिश्रण से घबराने के स्थान पर उन्हें आत्मसात करना होगा ताकि हिंदी हर भाव और अर्थ को अभिव्यक्त कर सके. 'हॉस्पिटल' को 'अस्पताल' बनाकर आत्मसात करने से भाषा असमृद्ध होती है किन्तु 'फ्रीडम' को 'फ्रीडमता' बनाने से नहीं. दैनिक जीवन में व्याकरण सम्मत भाषा हमेशा प्रयोग में नहीं लाई जा सकती पर वह समीक्षा, शोध या गंभीर अभिव्यक्ति हेतु अनुपयुक्त होती है. हमें भाषा के प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च तथा शोधपरक रूपों में भेद को समझना तथा स्वीकारना होगा. तत्सम तथा तद्भव शब्द हिंदी की जान हैं किन्तु इनका अनुपात तो प्रयोग करनेवाले की समझ पर ही निर्भर है. हिन्दी में अहिन्दी शब्दों का मिश्रण दल में नमक की तरह हो किन्तु खीर में कंकर की तरह नहीं.

हिंदी में शब्दों की कमी को दूर करने की ओर भी लगातार काम करना होगा. इस सिलसिले में सबसे अधिक प्रभावी भूमिका चिट्ठाकार निभा सकते हैं. वे विविध प्रदेशों, क्षेत्रों, व्यवसायों, रुचियों, शिक्षा, विषयों, विचारधाराओं, धर्मों तथा सर्जनात्मक प्रतिभा से संपन्न ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रायः बिना किसी राग-द्वेष या स्वार्थ के सामाजिक साहचर्य के प्रति असमर्पित हैं. उनमें से हर एक का शब्द भण्डार अलग-अलग है. उनमें से हर एक को अलग-अलग शब्द भंडार की आवश्यकता है. कभी शब्द मिलते हैं कभी नहीं. यदि वे न मिलनेवाले शब्द को अन्य चिट्ठाकारों से पूछें तो अन्य अंचलों या बोलियों के शब्द भंडार में से अनेक शब्द मिल सकेंगे. जो न मिलें उनके लिये शब्द गढ़ने का काम भी चिट्ठा कर सकता है. इससे हिंदी का सतत विकास होगा.

सिविल इन्जीनियरिंग को हिंदी में नागरिकी अभियंत्रण या स्थापत्य यांत्रिकी क्या कहना चाहेंगे? इसके लिये अन्य उपयुक्त शब्द क्या हो? 'सिविल' की हिंदी में न तो स्वीकार्यता है न सार्थकता...फिर क्या करें? सॉइल, सिल्ट, सैंड, के लिये मिट्टी/मृदा, धूल तथा रेत का प्रयोग मैं करता हूँ पर उसे लोग ग्रहण नहीं कर पाते. सामान्यतः धूल-मिट्टी को एक मान लिया जाता है. रोक , स्टोन, बोल्डर, पैबल्स, एग्रीगेट को हिंदी में क्या कहें? मैं इन्हें चट्टान, पत्थर, बोल्डर, रोड़ा, तथा गिट्टी लिखता हूँ . बोल्डर के लिये कोई शब्द नहीं है?

रेत के परीक्षण में 'मटेरिअल रिटेंड ऑन सीव' तथा 'मटेरिअल पास्ड फ्रॉम सीव' को हिंदी में क्या कहें? मुझे एक शब्द याद आया 'छानन' यह किसी शब्द कोष में नहीं मिला. छानन का अर्थ किसी ने छन्नी से निकला पदार्थ बताया, किसी ने छन्नी पर रुका पदार्थ तथा कुछ ने इसे छानने पर मिला उपयोगी या निरुपयोगी पदार्थ कहा. काम करते समय आपके हाथ में न तो शब्द कोष होता है, न समय. कार्य विभागों में प्राक्कलन बनाने, माप लिखने तथा मूल्यांकन करने का काम अंगरेजी में ही किया जाता है जबकि अधिकतर अभियंता, ठेकेदार और सभी मजदूर अंगरेजी से अपरिचित हैं. सामान्यतः लोग गलत-सलत अंगरेजी लिखकर काम चला रहे हैं. लोक निर्माण विभाग की दर अनुसूची आज भी सिर्फ अंगरेजी मैं है. निविदा हिन्दी में है किन्तु उस हिन्दी को कोई नहीं समझ पाता, अंगरेजी अंश पढ़कर ही काम करना होता है. किताबी या संस्कृतनिष्ठ अनुवाद अधिक घातक है जो अर्थ का अनर्थ कर देता है. न्यायलय में मानक भी अंगरेजी पाठ को ही माना जाता है. हर विषय और विधा में यह उलझन है. मैं मानता हूँ कि इसका सामना करना ही एकमात्र रास्ता है किन्तु चिट्ठाजगत हा एक मंच ऐसा है जहाँ ऐसे प्रश्न उठाकर समाधान पाया जा सके तो...? सोचें...

भाषा और साहित्य से सरकार जितना दूर हो बेहतर... जनतंत्र में जन, लोकतंत्र में लोक, प्रजातंत्र में प्रजा हर विषय में सरकार का रोना क्यों रोती है? सरकार का हाथ होगा तो चंद अंगरेजीदां अफसर पाँच सितारेवाले होटलों के वातानुकूलित कमरों में बैठकर ऐसे हवाई शब्द गढ़ेगे जिन्हें जनगण जान या समझ ही नहीं सकेगा. राजनीति विज्ञान में 'लेसीज फेयर' का सिद्धांत है जिसका आशय यह है कि वह सरकार सबसे अधिक अच्छी है जो सबसे कम शासन करती है. भाषा और साहित्य के सन्दर्भ में यही होना चाहिए. लोकशक्ति बिना किसी भय और स्वार्थ के भाषा का विकास देश-काल-परिस्थिति के अनुरूप करती है. कबीर, तुलसी सरकार नहीं जन से जुड़े और जन में मान्य थे. भाषा का जितना विस्तार इन दिनों ने किया अन्यों ने नहीं. शब्दों को वापरना, गढ़ना, अप्रचलित अर्थ में प्रयोग करना और एक ही शब्द को अलग-अलग प्रसंगों में अलग-अलग अर्थ देने में इनका सानी नहीं.

चिट्ठा जगत ही हिंदी को विश्व भाषा बना सकता है? अगले पाँच सालों के अन्दर विश्व की किसी भी अन्य भाषा की तुलना में हिंदी के चिट्ठे अधिक होंगे. क्या उनकी सामग्री भी अन्य भाषाओँ के चिट्ठों की सामग्री से अधिक प्रासंगिक, उपयोगी व् प्रामाणिक होगी? इस प्रश्न का उत्तर यदि 'हाँ' है तो सरकारी मदद या अड़चन से अप्रभावित हिन्दी सर्व स्वीकार्य होगी, इस प्रश्न का उत्तर यदि 'नहीं" है तो हिंदी को 'हाँ' के लिये जूझना होगा...अन्य विकल्प नहीं है. शायद कम ही लोग यह जानते हैं कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और आकाशगंगा के परे संभावित सभ्यताओं से संपर्क के लिये विश्व की सभी भाषाओँ का ध्वनि और लिपि को लेकर वैज्ञानिक परीक्षण कर संस्कृत तथा हिन्दी को सर्वाधिक उपयुक्त पाया है तथा इन दोनों और कुछ अन्य भाषाओँ में अंतरिक्ष में संकेत प्रसारित किए जा रहे हैं ताकि अन्य सभ्यताएँ धरती से संपर्क कर सकें. अमरीकी राष्ट्रपति अमरीकनों को बार-बार हिन्दी सीखने के लिये चेता रहे हैं किन्तु कभी अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों में अभी भी अपने आकाओं की भाषा सीखकर शेष देशवासियों पर प्रभुत्व ज़माने की भावना है. यही हिन्दी के लिये हानिप्रद है.

भारत विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है तो भारतीयों की भाषा सीखना विदेशियों की विवशता है. विदेशों में लगातार हिन्दी शिक्षण और शोध का कार्य बढ़ रहा है.

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