कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

नवगीत ::: शेष धर -- संजीव 'सलिल'

नवगीत :::                                                                                                   
शेष धर 
संजीव 'सलिल' 
 *
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
आया हूँ जाने को,
जाऊँगा आने को.
अपने स्वर में अपनी-
खुशी-पीर गाने को.
पिया अमिय-गरल एक संग
चिंता मत लेश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
कोशिश का साथी हूँ.
आलस-आराती  हूँ.
मंजिल है दूल्हा तो-
मैं भी बाराती हूँ.. 
शिल्प, कथ्य, भाव, बिम्ब, रस.
सर पर कर केश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...
*
शब्दों का चाकर हूँ.
अर्थों की गागर हूँ.
मानो ना मानो तुम-
नटवर-नटनागर हूँ..
खुद को कर साधन तू
साध्य 'सलिल' देश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...

********

3 टिप्‍पणियां:

Shesh Dhar Tiwari ने कहा…

आप तो हैं प्यारे सर
शब्दों के जादूगर
आप के लिए ही सब
क्या करूंगा शेष धर

navin c. chaturvedi. ने कहा…

मानो ना मानो तुम-
नटवर-नटनागर हूँ..

आप वाकई मस्त मौला हैं सलिल जी|

rana pratap singh. ने कहा…

बहुत सुन्दर
खुद को कर साधन तू
साध्य 'सलिल' देश धर.
किया देना-पावना बहुत,
अब तो कुछ शेष धर...