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बुधवार, 3 नवंबर 2010

छंद सलिला: १ सांगोपांग सिंहावलोकन छंद : नवीन सी. चतुर्वेदी

छंद सलिला: १

 ३ नवम्बर २०१०... धन तेरस आइये, आज एक नया स्तम्भ प्रारंभ करें 'छंद सलिला'. इस स्तम्भ में  हिन्दी काव्य शास्त्र की मणि-मुक्ताओं की चमक-दमक से आपका परिचय होगा. श्री गणेश कर रहे हैं श्री नवीन सी. चतुर्वेदी. आप जिक छंद से परिचित हों उसे लिख-भेजें...

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद   : नवीन सी. चतुर्वेदी
(घनाक्षरी कवित्त)

कवित्त का विधान:
कुल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "लाए हैं" से और समाप्त भी होता है "लाए हैं" से

सांगोपांग विधान
ये मुझे प्रात:स्मरणीय गुरुवर स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी ने बताया कि छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| वे इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|


कवित्त:
लाए हैं बाजार से दीप भाँति भाँति के हम,
द्वार औ दरीचों पे कतार से सजाए हैं|
सजाए हैं बाजार हाट लोगों ने, जिन्हें देख-
बाल बच्चे खुशी से फूले ना समाए हैं|
समाए हैं संदेशे सौहार्द के दीपावली में,
युगों से इसे हम मनाते चले आए हैं|
आए हैं जलाने दीप खुशियों के जमाने में,
प्यार की सौगात भी अपने साथ लाए हैं||

यदि किसी मित्र के मन में कुछ शंका हो तो कृपया निस्संकोच पूछने की कृपा करें| जितना मालुम है, आप सभी के साथ बाँटने में आनंद आएगा| जो हम नहीं जानते, अगर कोई और बता सके, तो बड़ी ही प्रसन्नता होगी|

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11 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

नवीन जी बधाई.
अनुरोध को स्वीकार कर आपने रचना विधान के साथ सिंहावलोकन छंद प्रस्तुत कर इस रचना गोष्ठी को कार्यशाला से जोड़ने का प्रयास किया है. यदि हर रचनाकार अपनी रचना के साथ रचना-विधान दे सके तो मुझ जैसे अल्पज्ञ विद्यार्थी का भला होगा.
पुनः अभिनन्दन.

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

आदरणीय सलिल आचार्य जी, आप आज्ञा करें और आपका अनुज चुप बैठा रहे - ये असम्भव है| आप के कहे अनुसार साहित्य सरिता की डुबकियों का आनंद ले रहा हूँ|

dharmendra kumar singh ने कहा…

पहले तो इस नए छन्द से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। फिर इतना मुश्किल छन्द आप ही के बस की बात है लिख पाना। बहुत बहुत बधाई।

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

भाई धर्मेन्द्र, लिखने से पहले मुझे भी ऐसा ही लगा था| आप थोडा प्रयास कर के तो देखिए, ये बहुत ही आसान है| यकीन मानिए|

आपके उत्स्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|

yograj prabhakar ने कहा…

नवीन भाई जी, सर्वप्रथम आपके गुरुदेव को कोटि कोटि नमन, सांगोपांग सिंहावलोकन छंद में आपके कवित्त और आपकी काव्य प्रतिभा को मेरा दिल से सलाम ! पढ़कर आनंद आ गया ! एक बात बताएं भाई, आपके पिटारे में अभी और कौन कौन से रंग के छुपे हुए हैं?

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

योगराज जी वो कहते हैं न कि "गुरु बिनु ज्ञान कहाँ से पाऊँ"
गुरुजी ने इस काबिल बनाया कि आज आप जैसे साहित्य रसिकों के मध्य साहित्यिक रसपान कर रहा हूँ| ये उन की महत कृपा की वजह से ही सम्भव हो सका है|

आपने सुना होगा वो गाना "मेहमाँ जो हमारा होता है............"
ग़ज़ल को हिन्दुस्तान ने क्या अपनाया, लोग छंदों से दूर हो गये| अगर आप हम मिल कर कोशिस करें, तो पूरा नहीं तो सही, पर थोड़ा बहुत काम ज़रूर हो सकता है|

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

नविन भईया!
आज सिंघावलोकन छंद सीखने का मौका मिल रहा है , निवेदन है कि कृपया पहली २ पक्ति की वर्ण गिनती लिख दे जिससे गिनती करना सिख सके |

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

सरसुति के भण्डार की, बड़ी अपूरव बात|
ज्यों ज्यों खर्चो त्यों बढ़े, बिन खर्चें घट जात||

अगर आयोजन के बहाने सीखने सीखने का क्रम भी चले तो इस से अच्छी बात और हो भी क्या सकती है| आप की फरमाइश पर कवित्त की पहली पंक्ति यानि चार चरणों की वर्ण गणना इस प्रकार है|

लाए हैं बाजार से दी / प भाँति भाँति के हम
११ १ १११ १ १ / १ १ १ १ १ १ ११
द्वार औ दरीचों पे क / तार से सजाए हैं|
११ १ १११ १ १ / ११ १ १ १ १ १

Divya Narmada ने कहा…

नवीन जी!
मैंने साहित्याचार्य जगन्नाथ प्रसाद भानुकवि रचित चंद प्रभाकर और छंदाचार्य ॐ प्रकाश बरसैयां 'ओंकार' रचित छंद क्षीरधि में देखा किन्तु सिंहावलोकन छंद नहीं मिला. भानु जी ने ३१ मात्राओं के २१,७८, ३०९ छंद होने का संकेत दिया है. अस्तु आपके बताये लक्षणों के आधार पर एक चतुष्पदी प्रस्तुत है. कृपया, बतायें यह ठीक है या नहीं? आप छंद शास्त्र के किस पुस्तक का उपयोग करते हैं? सिंहावलोकन छंद का विस्तृत वर्णन और उदाहरण हों तो समझने-समझाने में मदद मिलेगी. आपकी अनुमति हो तो इसे दिव्यनर्मदा में दे दूँ.

झिलमिल-झिलमिल, लहर-लहर सँग, प्रवहित-प्रमुदित, दीपक हिल-मिल.
हिल-मिल तन-मन, सिहर-सिहर कर, शतदल सरसिज, करते खिल-खिल..
खिल-खिल तिल-तिल, पग-पग धरकर, सरक-सरक कर, बदलें दिल-दिल.
दिल-दिल मिल-मिल, वरण-हरण कर, नयन-नयन बस, करते झिलमिल..

झिलमिल-झिलमिल, लहर-लहर सँग, प्रवहित-प्रमुदित, दीपक हिल-मिल.
1111 1111 , 111 111 11 , 1111 1111 , 111 11 11
4 4 , 3 3 2 4 4 3 2 2
8 , 8 , 8 , 7 = 31

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

मान्यवर जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ कि मैने पुस्तकों को तो नाम के बराबर ही पढ़ा है| यह छंद मुझे मेरे गुरु जी ने सिखाया, इस बारे मैं मैने उल्लेख भी किया है| आप पिंगल शास्त्र देखिए, वहाँ आपको यह अवश्य मिलना चाहिए|

छंद आपको पसंद आया, यह मेरा सौभाग्य है| आप के ब्लाग में इसे स्थान मिले, इस से ज़्यादा प्रसन्नता की बात और क्या होगी| आप ऐसा सहर्ष और साधिकार करें|

Divya Narmada ने कहा…

धन्यवाद.
मेरी प्रस्तुति में कोई दोष या कमी तो नहीं?
यदि यह ठीक हो तो आगे और प्रयास करूँ.
संभव है की यह संस्कृत पिंगाक का छंद हो जिसे हिंदी में न अपनाया गया हो. अस्तु अब तो यह हिंदी का छंद बन ही गया है.