जनक छंदी सलिला : १.
संजीव 'सलिल'
*
आत्म दीप जलता रहे,
तमस सभी हरता रहे.
स्वप्न मधुर पलता रहे..
*
उगते सूरज को नमन,
चतुर सदा करते रहे.
दुनिया का यह ही चलन..
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हित-साधन में हैं मगन,
राष्ट्र-हितों को बेचकर.
अद्भुत नेता की लगन..
*
सांसद लेते घूस हैं,
लोकतन्त्र के खेत की.
फसल खा रहे मूस हैं..
*
मतदाता सूची बदल,
अपराधी है कलेक्टर.
छोडो मत दण्डित करो..
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बाँधी पट्टी आँख में,
न्यायालय अंधा हुआ.
न्याय न कर, ले बद्दुआ..
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पहने काला कोट जो,
करा रहे अन्याय नित.
बेच-खरीदें न्याय को..
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हरी घास पर बैठकर,
थकन हो गयी दूर सब.
रूप धूप का देखकर..
*
गाल गुलाबी लला लाख़,
रवि ऊषा को छेदता.
भू-माँ-गृह वह जा छिपी..
*
ऊषा-संध्या-निशा को
चन्द्र परेशां कर रहा.
सूर्य न रोके डर रहा..
*
चाँद-चाँदनी की लगन,
देख मुदित हैं माँ धरा.
तारे बाराती बने..
*
वर से वधु रूठी बहुत,
चाँद मुझे क्यों कह दिया?
गाल लाल हैं क्रोध से..
*
लहरा बल खा नाचती,
नागिन सी चोटी तेरी.
सँभल, न डस ले यह तुझे..
*
मन मीरा, तन राधिका,
प्राण स्वयं श्री कृष्ण हैं.
भवसागर है वाटिका..
***
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
5 टिप्पणियां:
Satyanarayan Sharma
ati sundar aa0 achaary jee . Parivesh ka safal chitran. Badhaai
kml
शब्द ऐसे निकले हैं जैसे कोई बांसुरी बजा रहा हो ..वाह
धन्यवाद.
भास्कर की गुनगुनाती रश्मियाँ बिखरी हुईं हैं
शीत को कर दूर ऊर्जा का सतत संचार करतीं.
जनक छंदी, वाह साहित्य की एक नई विधा ( मेरे लिये ) बहुत बढ़िया आचार्य जी, आचार्य जी यदि मैं गलत नहीं तो इसका विधान ३ चरण और १३-१३ मात्राएँ ही है क्या ?
सभी पद अच्छे लगे, बहुत बहुत धन्यवाद जनक छंदी से परिचय कराने हेतु |
आप का सोचना ठीक है. जनक छंद में दोहे के विषम पद की टीम आवृत्तियाँ अर्थात १३ कलाओं (मात्राओं) की उपस्थिति है. गण नियम दोहा के ही हैं. विस्तार से हिंदी की गोष्ठी में चर्चा करूंगा. आज चौपाई लगाई है. चौपाई पर वहां चर्चा हो और रचनाएँ भी लगें तो अधिक उपयोगी होगा.
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