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बुधवार, 31 मार्च 2010

अंतरजाल किताब -१

Raam Naam Sukhdayee

नव गीत: रंगों का नव पर्व बसंती --संजीव 'सलिल'

नव गीत

संजीव 'सलिल'


*

रंगों का नव पर्व बसंती
सतरंगा आया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया...
*
आशा पंछी को खोजे से
ठौर नहीं मिलती.
महानगर में शिव-पूजन को
बौर नहीं मिलती.
चकित अपर्णा देख, अपर्णा
है भू की काया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया...
*
कागा-कोयल का अंतर अब
जाने कैसे कौन?
चित्र किताबों में देखें,
बोली अनुमानें मौन.
भजन भुला कर डिस्को-गाना
मंदिर में गाया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया...
*
है अबीर से उन्हें एलर्जी,
रंगों से है बैर.
गले न लगते, हग करते हैं
मना जान की खैर.
जड़ विहीन जड़-जीवन लखकर
'सलिल' मुस्कुराया.
सद्भावों के जंगल गायब
पर्वत पछताया...
*
divynarmada.blogspot.com

मंगलवार, 30 मार्च 2010

सम्मान: दिव्या माथुर को हरिवंश राय बच्चन लेखन सम्मान




लंदन। नेहरू केंद्र की वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी दिव्या माथुर को वर्ष 2009 के हरिवंश राय बच्चन लेखन सम्मान से सम्मानित किया गया है। ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त नलिन सूरी ने माथुर को यह सम्मान प्रदान किया, जिन्होंने कई कविता संग्रहों के साथ ही कहानियाँ भी लिखी हैं। 1985 में लंदन में भारतीय उच्चायोग से जुड़ी दिव्या माथुर रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स की फ़ेलो हैं। नेत्रहीनता से संबंधित कई संस्थाओं में आपका सक्रिय योगदान रहा है तथा इनकी अनेक रचनाएँ ब्रेल लिपि में प्रकाशित हो चुकी हैं। आशा फ़ाउंडेशन और पेन संस्थाओं की संस्थापक-सदस्य, चार्नवुड आर्ट्स की सलाहकार, यू के हिंदी समिति की उपाध्यक्षा, भारत सरकार के आधीन, लंदन के उच्चायोग की हिंदी कार्यकारिणी समिति की सदस्या, कथा यू के की पूर्व अध्यक्ष और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की सांस्कृतिक अध्यक्ष, दिव्या कई पत्र, पत्रिकाओं के संपादक मंडल में भी शामिल हैं।

दिव्या माथुर के नाटक व कहानियों के मंचन तथा रेडियो एवं दूरदर्शन पर प्रसारण के अतिरिक्त, इनकी कविताओं को कला संगम संस्था द्वारा भारतीय नृत्य शैलियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। लंदन में कहानियों के मंचन की शुरूआत का श्रेय भी इन्हें दिया जाता है । रीना भारद्वाज, कविता सेठ और सतनाम सिंह सरीखे विशिष्ट संगीतज्ञों ने इनके गीत और ग़ज़लों को न केवल संगीतबद्ध किया, अपनी आवाज़ से भी नवाज़ा है।

युवावस्था से ही लेखन कार्य में जुटी माथुर के छह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें रेत का लिखा, अंतःसलीला, ख्याल तेरा, 11 सितंबर: ड्रीम्स डेबरीज, चंदन पानी और झूठ, झूठ और झूठ शामिल हैं। उनके कहानी संग्रहों में आक्रोश का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है जिसके लिए उन्हें पद्मानंद साहित्य सम्मान प्रदान किया गया था।
 
                                                                                                                                          आभार: सृजनगाथा
**************** 

सोमवार, 29 मार्च 2010

नवगीत: रंग हुए बदरंग --संजीव 'सलिल'

नवगीत:

संजीव 'सलिल'

रंग हुए बदरंग,
मनाएँ कैसे होली?...
*
घर-घर में राजनीति
घोलती ज़हर.
मतभेदों की प्रबल
हर तरफ लहर.
अँधियारी सांझ है,
उदास है सहर.
अपने ही अपनों पर
ढा रहे कहर.
गाँव जड़-विहीन
पर्ण-हीन है शहर.
हर कोई नेता हो
तो कैसे हो टोली?...
*
कद से  भी ज्यादा है
लंबी परछाईं.
निष्ठां को छलती है
शंका हरजाई.
समय करे कब-कैसे
क्षति की भरपाई?
चंदा तज, सूरज संग
भागी जुनहाई.
मौन हुईं आवाजें,
बोलें तनहाई.
कवि ने ही छंदों को
मारी है गोली...
*
अपने ही सपने सब
रोज़ रहे तोड़.
वैश्विकता क्रय-विक्रय
मची हुई होड़.
आधुनिक वही है जो
कपडे दे छोड़.
गति है अनियंत्रित
हैं दिशाहीन मोड़.
घटाना शुभ-सरल
लेकिन मुश्किल है जोड़.
कुटिलता वरेण्य हुई
त्याज्य सहज बोली...
********************

बुन्देली में शारदा वन्दना: अभियंता देवकीनंदन 'शांत'

बुन्देली में शारदा वन्दना:


दोहा

शब्द-शब्द में भओ प्रगट, मैया तेरो रूप.
तोरी किरपा छाँओ है, बिन तुझ तपती धूप..

वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

चार भुजी है रूप तिहारो, वेद पुरानन मन्त्र उचारो.
हाथों में वीणा अभिराम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

हंसवाहिनी तू है माता, कवियन की तू जीवनदाता.
आशीषनो है तेरौ काम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

माथे मुकुट श्वेत कमलासन, ममता भरो 'शांत' सुन्दर मन.
चरनन में तोरे परनाम, जाने मैया जग सारौ..
वीणा वादिनी तेरौ नाम, जाने मैया जग सारौ...

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१०/३०/२ इंदिरा नगर, लखनऊ २२६०१६ / ०९९३५२१७८४१
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

दोहे: निर्झर -संजीव 'सलिल'

नेह निनादित ध्वनि मधुर, निर्झर रहा बिखेर.
देख सुनो मुद-मग्न हो, करो न किंचित देर..

पत्थर-दिल चट्टान से, सलिलामृत की धार.
तृषा मिटने आ गई, बन भू का श्रृंगार..

लहर-लहर में गूँजते, जीवन के शत राग.
उषा प्रिय की हँसी सी, संझा प्रीत-सुहाग..

हरियाली खुशियाँ लिए, आयी तेरे द्वार.
जोड़ न सबमें बाँट दे, अपने मन का प्यार..

'सलिल'-साधना स्नेह की, जो करता है धन्य.
देता है सन्देश नित, निर्झर सतत अनन्य..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 28 मार्च 2010

आज की कविता: संस्था ---आचार्य श्यामलाल उपाध्याय

समूह की इकाई

पंजीकृत, अपंजीकृत

राजनैतिक, सामाजिक,

धार्मिक, सांस्कृतिक,

साहित्यिक, मानवतावादी

नीतिगत, समाजगत,

धर्म-संस्कृतिगत,

नैतिक वा मूल्यगत.


बन क्या सकेगी

आदर्श जन-जीवन की

संस्था वह जिसके

सुचिन्तक बने हैं आप

मंत्री-अध्यक्ष बन

चलते अपनी नाव

बजाते अपनी डफली

अलापते अपना राग

गाते अपने गीत

मात्र अपनी संस्था के.


कैसे करेगी वह

श्रृंगार मानव का

जो रहा सदस्यता

और उसकी छायासे

अति दूर वंचित

देवी तो भूरि-भूरि

आशिष को प्रस्तुत

पर मात्र उसके प्रति

जो रहा निष्ठावान?


इसके क्रिया-कलाप

भले ही हों मर्यादित

अंशतः मानवतावादी

करते दुराग्रह और

हनन मर्यादा का

सार्वभौम सत्ता का

सार्वजनीनता का

बहुजन हिताय और

बहुजन सुखाय का.


जब तक कि उसके भाव

वर्ग सत्ता मोह छोड़

समाज की परिधि लाँघ चले नहीं

तब तक व्यक्ति या समाज

अथवा कोई भी संस्था अन्य

करती रहेगी अपकार

जन-जीवन का

इसका वरदान मात्र

अभिशाप-अनुक्षण

करता रहेगा मनुहार

अपनी संस्था का..



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शनिवार, 27 मार्च 2010

Raam Naam Sukhdayee - late Mrs. Shanti Devi Verma

ख़बरदार कविता: नारी आरक्षण -संजीव 'सलिल'

ख़बरदार कविता:

संजीव 'सलिल'

नेताओं का शगल है, करना बहसें रोज.
बिन कारण परिणाम के, क्यों नाहक है खोज..

रोजी-रोटी स्वार्थ है, धंधा- बोलें झूठ.
धर्म एक- जितना बनें जनता को लें लूट..

नारी माता भगिनी है, नारी संगिनी दिव्य.
सुता सखी भाभी बहू, नारी सचमुच भव्य..

शारद उमा रमा त्रयी, ज्ञान शक्ति श्री-खान.
नर से दो मात्रा अधिक, नारी महिमावान..

तैंतीस की बकवास का, केवल एक जवाब.
शत-प्रतिशत के योग्य वह, किन्तु न करे हिसाब..

देगा किसको कौन क्यों?, लेगा किससे कौन?
संसद में वे भौंकते, जिन्हें उचित है मौन..

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divyanarmada.blogspot.com

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

तापसी नागराज नई-दुनिया द्वारा नायिका 2010 अवार्ड हेतु नामांकित







Tapsi Nagraj nominated for Naika Award in Art & Culture category by NAI-DUNIYA JABALPUR kindly suport send your vote by your  sms
type  NVJ22 & send it to 53434

* आयोजन सूचना : परिकल्पना ब्लॉग उत्सव-2010

लखनऊ.  गोमती  के तट और सरयू के निकट उत्तर प्रदेश की  राजधानी लखनऊ में परिकल्पना: ब्लॉग उत्सव २०१०  का आयोजन अप्रैल में होने जा रहा है। श्री अविनाश वाचस्पति ने  इस परिप्रेक्ष्य में ध्येय वाक्य सुझाया है- 'अनेक ब्लॉग नेक हृदय !'

 उत्सव समस्त ऐंठन - अकडन भरी ग्रंथियों और खिंचाव - तनाव भरी मानसिक पीड़ा को दूर करने का एक सहज-सरल तरीका है। उत्सव पारस्परिक प्रेम का प्रस्तुतीकरण है ...!
 प्रेम तभी शाश्वत है जब वह सार्वजनिक और सर्वजनहितकारी हो । किसी संप्रदाय विशेष, वर्ग विशेष या जाति विशेष से बंधा न  हो अन्यथा उसकी शुद्धता नष्ट हो जाती है । प्रेम तभी तक शुद्ध है , जब तक सार्वजनिक, सार्वदेक्षिक, सार्वकालिक है । इसी प्रेम को पारस्परिक प्रेम की संज्ञा दी गयी है। पारस्परिक प्रेम जब सार्वजनिक हो जाता है तब उत्सव का रूप ले लेता है।

सभी चिट्ठाकारों को मिलकर प्रेम से लबालब ऐसा ही उत्सव मनाना है । आज के भौतिकवादी युग में हमारी पूर्व निश्चित धारणाएँ और मान्यताएँ हमारी आँखों पर रंगीन चश्मों की मानिंद चढी रहती है और हमें वास्तविक सत्य को अपने ही रंग में देखने के लिए बाध्य करती हैं । प्रेम के नाम पर हमने इन बेड़ियों को सुन्दर आभूषण की तरह पहन रखा है , जबकि सच्ची मुक्ति के लिए इन बेड़ियों का टूटना नितांत आवश्यक है। हमारा मंगल इसी में है कि हम समय-समय पर अपने-अपने वाद-विवाद को दरकिनार करते हुए उत्सव मनाएँ ।

इस उत्सव में हमारी कोशिश है कि हर वह ब्लोगर शामिल हो जिन्होंने कम से कम सौ पोस्ट के सफ़र को पूरा कर लिया है । यह गौरव हासिल करनेवाला हर ब्लोगर अपने ब्लॉग से एक श्रेष्ठ रचना का चयन करते हुए उसका लिंक ravindra .prabhat @gmail .com पर प्रेषित करें । हम आपके उस पोस्ट को प्रकाशित ही नहीं करेंगे अपितु विशेषज्ञों से प्राप्त मंतव्य के आधार पर प्रशंसित और पुरस्कृत भी करेंगे । इस लिंक में लेख, कहानी, कविता, गीत, ग़ज़ल, लघु कथा, साक्षात्कार, परिचर्चा, कार्टून, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, ऑडियो/वीडियो के लिंक आदि कुछ भी हो सकता है। यदि इसके संबंध में आपकी कोई अन्य जिज्ञासा हो तो उपरोक्त मेल श्री रवींद्र प्रभात से से पूछ सकते हैं । *

-- :: दोहे भोजपुरी में :: -- 'सलिल'

दोहे भोजपुरी में:

पनघट के रंग अलग बा, आपनपन के ठौर.
निंबुआ अमुआ से मिले, फगुआ अमुआ बौर..
*
खेत हुई रहा खेत क्यों, 'सलिल' सून खलिहान?
सुन सिसकी चौपाल के, पनघट के पहचान..
*
आपन गलती के मढ़े, दूसर पर इल्जाम.
मतलब के दरकार बा, भारी-भरकम नाम..
*
परसउती के दरद के, मर्म न बूझै बाँझ.
दुपहरिया के जलन के, कइसे समझे साँझ?.
*
कौनऊ के न चिन्हाइल, मति में परि गै भाँग.
बिना बात के बात खुद, खिचहैं आपन टाँग..
*
अउरत अइसन छहंतरी, हुलिया देत बिगाड़.
मरद बनाइल नामरद, करिके तिल के ताड़..
*
भोजपुरी खातिर 'सलिल', जान लड़इहै कौन?
अइसन खाँटी मनख कम, जे करि रइहैं मौन..
*
खाली चौका देखि कै, दिहले चूहा भाग.
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आग..
*
'सलिल' रखे संसार में, सभका खातिर प्रेम.
हर पियास हर किसी की, हर की चाहे छेम..
*
कौनो बाधा-विघिन के, आगे मान न हार.
श्रद्धा आ सहयोग के, दम पे उतरल पार..
*
कब आगे का होइ? ई, जो ले जान- सुजान.
समझ-बूझ जेकर नहीं, कहिये है नादान..

**********************

बुधवार, 24 मार्च 2010

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्र ॥ Shree Ram Raksha Stotram ॥

॥ श्रीरामरक्षास्तोत्र ॥

॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य । बुधकौशिक ऋषिः ।
श्रीसीतारामचंद्रो देवता । अनुष्टुप् छंदः ।।
सीता शक्तिः । श्रीमद् हनुमान कीलकम् ।
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम् ।
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।।
वामांकारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम् ।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम् ॥

॥ इति ध्यानम् ॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥ १॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् ॥ २॥

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम् ॥ ३॥

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥ ४॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥ ५॥

जिव्हां विद्यानिधिः पातु कंठं भरतवंदितः ।
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥ ६॥

करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥ ७॥

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥ ८॥

जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः ।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोखिलं वपुः ॥ ९॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥ १०॥

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥ ११॥

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥ १२॥

जगजैत्रैकमंत्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कंठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥ १३॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥ १४॥

आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षांमिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रभुद्धो बुधकौशिकः ॥ १५॥

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः ॥ १६॥

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुंडरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥ १७॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥ १८॥

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षः कुलनिहंतारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥ १९॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥ २०॥

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥ २१॥

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः ॥ २२॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमान् अप्रमेय पराक्रमः ॥ २३॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः ॥ २४॥

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवंति नामभिर्दिव्यैः न ते संसारिणो नरः ॥ २५॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।।

राजेंद्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिम् ।
वंदे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥ २६॥

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥ २७॥

श्रीराम राम रघुनंदन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥ २८॥

श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि ॥
श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥ २९॥

माता रामो मत्पिता रामचंद्रः ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्रः ॥
सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालुः ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ ३०॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनंदनम् ॥ ३१॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरम् । राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ॥
कारुण्यरूपं करुणाकरं तम् । श्रीरामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये ॥ ३२॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम् ।
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यम् ।
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥ ३३॥

कूजंतं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वंदे वाल्मीकिकोकिलम् ॥ ३४॥

आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥ ३५॥

भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसम्पदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् ॥ ३६॥

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ॥
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहम् ।
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥ ३७॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥ ३८॥

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥

************************************

श्री राम रक्षा स्तोत्र
विनियोग

श्री गणेश-विघ्नेश्वर, रिद्धि-सिद्धि के नाथ .
चित्र गुप्त लख चित्त में, नमन करुँ नत माथ.
ऋषि बुधकौशिक रचित यह, रामरक्षास्तोत्र.
दोहा रच गाये सलिल, कायथ कश्यप गोत्र.
कीलक हनुमत, शक्ति सिय, देव सिया-श्री राम.
जाप और विनियोग यह, स्वीकारें अभिराम.
ध्यान आरम्भ 
दीर्घबाहु पद्मासनी, हों धनु-धारि प्रसन्न.
कमलाक्षी पीताम्बरी, है यह भक्त प्रपन्न.
नलिननयन वामा सिया, अद्भुत रूप-सिंगार.
जटाधरी नीलाभ प्रभु, ध्याऊँ हो बलिहार.
श्री गणेश-विघ्नेश्वर, रिद्धि-सिद्धि के नाथ .
चित्र गुप्त लख चित्त में, नमन करुँ नत माथ.
ऋषि बुधकौशिक रचित यह, रामरक्षास्तोत्र.
दोहा रच गाये सलिल, कायथ कश्यप गोत्र.
कीलक हनुमत, शक्ति सिय, देव सिया-श्री राम.
जाप और विनियोग यह, स्वीकारें अभिराम.

ध्यान पूर्ण 
दीर्घबाहु पद्मासनी, हों धनु-धारि प्रसन्न.
कमलाक्षी पीताम्बरी, है यह भक्त प्रपन्न.
नलिननयन वामा सिया, अद्भुत रूप-सिंगार.
जटाधरी नीलाभ प्रभु, ध्याऊँ हो बलिहार.

श्री रघुनाथ-चरित्र का, कोटि-कोटि विस्तार.
एक-एक अक्षर हरे, पातक- हो उद्धार. १.

नीलाम्बुज सम श्याम छवि, पुलिनचक्षु का ध्यान.
करुँ जानकी-लखन सह, जटाधारी का गान.२

खड्ग बाण तूणीर धनु, ले दानव संहार.
करने भू-प्रगटे  प्रभु, निज लीला विस्तार. ३

स्तोत्र-पाठ ले पाप हर, करे कामना पूर्ण.
राघव-दशरथसुत रखें, शीश-भाल सम्पूर्ण. ४

कौशल्या-सुत नयन रखें, विश्वामित्र-प्रिय कान.
मख-रक्षक नासा लखें, आनन् लखन-निधान. ५

विद्या-निधि रक्षे जिव्हा, कंठ भरत-अग्रज.
स्कंध रखें दिव्यायुधी, शिव-धनु-भंजक भुज. ६

कर रक्षे सीतेश-प्रभु, परशुराम-जयी उर,
जामवंत-पति नाभि को, खर-विध्वंसी उदर. ७

अस्थि-संधि हनुमत प्रभु, कटि- सुग्रीव-सुनाथ.
दनुजान्तक रक्षे उरू, राघव करुणा-नाथ. ८

दशमुख-हन्ता जांघ को, घुटना पुल-रचनेश.
विभीषण-श्री-दाता पद, तन रक्षे अवधेश. ९

राम-भक्ति संपन्न यह, स्तोत्र पढ़े जो नित्य.
आयु, पुत्र, सुख, जय, विनय, पाए खुशी अनित्य.१०

वसुधा नभ पाताल में, विचरें छलिया मूर्त.
राम-नाम-बलवान को, छल न सकें वे धूर्त. ११
रामचंद्र, रामभद्र, राम-राम जप राम.
पाप-मुक्त हो, भोग सुख,  गहे मुक्ति-प्रभु-धाम. १२

रामनाम रक्षित कवच, विजय-प्रदाता यंत्र.
सर्व सिद्धियाँ हाथ में, है मुखाग्र यदि मन्त्र.१३

पविपंजर पवन कवच, जो कर लेता याद.
आज्ञा उसकी हो अटल, शुभ-जय मिले प्रसाद.१४

शिवादेश पा स्वप्न में, रच राम-रक्षा स्तोत्र.
बुधकौशिक ऋषि ने रचा, बालारुण को न्योत. १५

कल्प वृक्ष, श्री राम हैं, विपद-विनाशक राम.
सुन्दरतम त्रैलोक्य में, कृपासिंधु बलधाम. १६ 
रूपवान, सुकुमार, युव, महाबली सीतेंद्र.
मृगछाला धारण किये, जलजनयन सलिलेंद्र. १७.

राम-लखन, दशरथ-तनय, भ्राता बल-आगार.
शाकाहारी, तपस्वी, ब्रम्हचर्य-श्रृंगार. १८

सकल श्रृष्टि को दें शरण, श्रेष्ठ धनुर्धर राम.
उत्तम रघु रक्षा करें, दैत्यान्तक श्री राम. १९

धनुष-बाण सोहे सदा, अक्षय शर-तूणीर.
मार्ग दिखा रक्षा करें, रामानुज-रघुवीर. २०
राम-लक्ष्मण हों सदय, करें मनोरथ पूर्ण.
खड्ग, कवच, शर,, चाप लें, अरि-दल के दें चूर्ण. २१

रामानुज-अनुचर बली, राम दाशरथ वीर.
काकुत्स्थ कोसल-कुँवर,  उत्तम रघु, मतिधीर. २२

सीता-वल्लभ श्रीवान, पुरुषोतम, सर्वेश.
अतुलनीय पराक्रमी, वेद-वैद्य यज्ञेश. २३

प्रभु-नामों का जप करे, नित श्रद्धा के साथ.
अश्वमेघ मख-फल मिले, उसको दोनों हाथ.२४ 
पद्मनयन, पीताम्बरी, दूर्वा-दलवत श्याम.
नाम सुमिर ले 'सलिल' नित, हो भव-पार सुधाम. २५

गुणसागर, सौमित्राग्रज, भूसुतेश श्रीराम.
दयासिन्धु काकुत्स्थ हैं, भूसुर-प्रिय निष्काम. २६ क

अवधराज-सुत, शांति-प्रिय,  सत्य-सिन्धु बल-धाम.
दशमुख-रिपु, रघुकुल-तिलक, जनप्रिय राघव राम. २६ख

रामचंद्र, रामभद्र, रम्य रमापति राम.
रघुवंशज कैकेई-सुत, सिय-प्रिय अगिन प्रणाम. २७

रघुकुलनंदन राम प्रभु, भरताग्रज श्री राम.
समर-जयी, रण-दक्ष दें, चरण-शरण श्री धाम.२८

मन कर प्रभु-पद स्मरण, वाचा ले प्रभु-नाम. 
शीश विनत पद-पद्म में, चरण-शरण दें राम.२९

मात-पिता श्री राम हैं, सखा-सुस्वामी राम.
रामचंद्र सर्वस्व मम, अन्य न जानूं नाम. ३०
लखन सुशोभित दाहिने, जनकनंदिनी वाम.
सम्मुख हनुमत पवनसुत, शतवंदन श्री राम.३१

जन-मन-प्रिय, रघुवीर प्रभु, रघुकुलनायक राम.
नयनाम्बुज करुणा-समुद, करुनाकर श्री राम. ३२

मन सम चंचल पवनवत, वेगवान-गतिमान.
इन्द्रियजित कपिश्रेष्ठ दें, चरण-शरण हनुमान. ३३

काव्य-शास्त्र आसीन हो, कूज रहे प्रभु-नाम.
वाल्मीकि-पिक शत नमन, जपें प्राण-मन राम. ३४

हरते हर आपद-विपद,  दें सम्पति, सुख-धाम.
जन-मन-रंजक राम प्रभु, हे अभिराम प्रणाम. ३५
राम-नाम-जप गर्जना, दे सुख-सम्पति मीत.
हों विनष्ट भव-बीज सब, कालदूत भयभीत. ३६

दैत्य-विनाशक, राजमणि, वंदन राम रमेश.
जयदाता शत्रुघ्नप्रिय, करिए जयी हमेश. ३७ क

श्रेष्ठ न आश्रय राम से, 'सलिल' राम का दास.
राम-चरण-मन मग्न हो, भव-तारण की आस. ३७ ख

विष्णुसहस्त्रनाम सम, पावन है प्रभु-नाम
रमे राम के नाम में, सलिल-साधना राम. ३८

मुनि बुधकौशिक ने रचा, श्री रामरक्षास्तोत्र..
सिया-राम-चरणार्पित, भव-भक्तिमय ज्योत.
'शांति-राज'-हित यंत्र है, श्री रामरक्षास्तोत्र.३९

आशा होती पूर्ण हर, प्रभु हों सत्य सहाय.
तुहिन श्वास हो नर्मदा, मन्वंतर गुण गाय.. ४०

राम-कथा मंदाकिनी, रामकृपा राजीव.
राम-नाम जप दे दरश, राघव करुणासींव. ४१
            *************

Shri Ram Raksha Stotram

II RAM II
RAM RAKSHA STOTRAM

Viniyoga

Aasya Shriramrakshastrotamantrasya budhkaushik hrishi |
ShriSitaramcandro devta anushtup Chanda: Sita shakti |
Shriman hanuman keelkam ShriRamcandapreetyeRthe |
Ramrakshastotrajape vinyOgah ||

Dhyaanam

Dhyaaedaajaanu baahum dhyaanam dhrit shar dhanusham badhhpadmaasanastham |
Peetam vaaso vasaanam navkamaldalspardhinetram prasannam |
Vamaankaarooddh sita mukhkamal milallochanam neerdaabham |
Naanaalankaar deeptam dadhat murujataamandalam Ramchandram ||

Stotram

Charitam Raghunaathasya shut koti pravistaram |
Ekaikam aksharam punsaam mahaa paatak naashanam || 1 ||

Dhyaatvaa nilotpal shyaamam Ramam rajeev lochanam |
Jaanaki lakshmanopetam jataa mukut manditam || 2 ||

Saasitoor dhanurbaan paanim naktam charaantakam |
Swalilayaa jagat traatumaavirbhuntam ajam vibhum || 3 ||

Ram rakshaam patthet praagyaha paapaghaneem sarv kaamdam |
Shiro may Raaghavah paatu bhaalam Dasharathaatmjah || 4 ||

Kausalyeyo Drishau Paatu Vishvaamitra priyah shrutee |
Ghraanam paatu makha traataa mukham saumitrivatsala || 5 ||

Jihvaam vidyaa nidhih paatu kanttham bharat vanditah |
Skandhau divyaayudhah paatu bhujau bhagnesh kaarmukah || 6 ||

Karau seetapatih paatu hridayam jaamadagnyajit |
Madhyam paatu khara dhwansi naabhim jaambvadaashrayah || 7 ||

Sugriveshah katee paatu sakthini hanumat prabhuh |
Uru Raghoot tamah paatu rakshakul vinaashkrit || 8 ||

Jaahnuni Setukrit Paatu janghey dasha mukhaantakah |
Paadau vibhishan shreedah paatu Ramokhilam vapuh ||9 ||

Etaam Ram balopetaam rakshaam yah sukriti patthet |
Sa chiraayuh sukheeputri vijayi vinayi bhavet || 10 ||

Paataal bhutalavyom chaari nash chadmchaarinah |
Na drashtumapi shaktaaste rakshitam ramnaambhih || 11 ||

Rameti Rambhadreti Ramchandreti vaa smaran |
Naro na lipyate paapeir bhuktim muktim chavindati || 12 ||

Jagat jaitreik mantrein Ram naam naabhi rakshitam |
Yah kantthe dhaareytasya karasthaah sarv siddhyah ||13 ||

Vajra panjar naamedam yo Ramkavacham smaret |
Avyaa hataagyah sarvatra labhate jai mangalam || 14 ||

Aadisht vaan yathaa swapne Ram rakshaimaam harah |
Tathaa likhit vaan praatah prabu dho budh kaushikah || 15 ||

Aaraamah kalpa vrikshaanam viraamah sakalaapadaam |
Abhiraam strilokaanam Ramahi Shrimaansah nah prabhuh || 16 ||

Tarunau roop sampannau sukumaarau mahaa balau |
Pundreek vishaalaakshau cheerkrishnaa jinaambarau || 17 ||

Fala moolaa shinau daantau taapasau brahma chaarinau |
putrau dashrathasyetau bhraatarau Ram Lakshmanau ||18 ||

Sharanyau sarv satvaanaam shreshtthau sarv dhanush mataam |
Rakshah kul nihantaarau traayetaam no raghuttamau || 19 ||

Aattasajjadhanushaa vishusprishaa vakshyaashug nishang sanginau |
Rakshnaaya mum Ram lakshmanaa vagratah pathi sadaiv gachhtaam || 20 ||

Sannadah kavachi khadagi chaap baan dharo yuvaa |
Gachhan manorathaa nashch Ramah paatu salakshmanah || 21 ||

Ramo daashraltih shooro lakshmanaaru charo balee |
Kaakutsthah purushah purnah kausalyeyo raghuttmah || 22 ||

Vedaant vedyo yagneshah puraan puru shottamah |
Jaanaki vallabhah shrimaan prameya paraakramah || 23 ||

Ityetaani japan nityam madabhaktah shraddhyaan vitah |
Ashvamedhaadhikam punyam sampraapnoti na sanshayah || 24 ||

Ramam doorvaadal shyaamam padmaaksham peet vaasasam |
Stuvanti naambhirdivyern te sansaarino naraah || 25 ||

Ramam Lakshman poorvajam raghuvaram sitapatim sundaram |
Kaakutstham karunarnvam gunnidhim viprapriyam dhaarmikam || 26 ||

Raajendram satyasandham Dashrath tanayam shyaamalam shaantmurtium
Vande Lokaabhiraamam Raghukultilakam Raghavam Raavanaarim |
Ramaay Rambhadraay Ramchandraay Vedhasey
Raghunaathaay naathaay sitayah paataye namah || 27 ||

Shri Ram Ram Raghunandan Ram Ram
Shri Ram Ram Bharataagraj Ram Ram
Shri Ram Ram Runkarkash Ram Ram
Shri Ram Ram Sharanam bhav Ram Ram || 28 ||

Shri Ram Chandra Charan
Shri Ram Chandra Charanau manasaa smaraami
Shri Ram Chandra Charanau vachasaa grinaami
Shri Ram Chandra Charanau Shirasaa namaami
Shri Ram Chandra Charanau Sharanam prapadye || 29 ||

Maataa Ramo Matpitaa. Ram Chandrah
Swaami Ramo matsakhaa Ram Chandrah
Sarvasvam may Ram Chandra Dayaalur
Naanyam jaane naive jaane na jaane || 30 ||

Dakshiney Lakshmano yasya vaame cha janakaatmajaa |
Purato marutir yasya tama vande Raghunandanam || 31 ||

Lokaabhi Ramam rana rangdheeram
Rajeev netram Raghuvansh naatham
Kaarunya roopam karunaa karantam
Shri Ram Chandram Sharanam prapadye || 32 ||

Manojavam maarut tulya vegam
Jitendriyam buddhi mataam varishttham
Vaataatmjam vaanar youth mukhyam
Shri Ram dootam Sharanam prapadye || 33 ||

Koojantam Ram raameti madhuram madhuraaksharam |
Aaruhya Kavitaa Shakhaam vande Vaalmikilokilam || 34 ||

Aapdaampahar taaram daataaram sarvsampdaam |
Lokaabhiramam Shri Ramam bhooyo bhooyo namaamya hum || 35 ||

Bharjanam bhav beejaanaam arjanam sukh sampdaam |
Tarjanam yum dootaanaam Ram Rameti garjanam || 36 ||

Ramo Rajmani sadaa vijayate Ramam Ramesham bhaje
Ramenaa bhihtaa nishaacharchamoo Ramaay tasmai namah|
Ramannaasti paraayanam partaram Ramasya daasosmyaham
Rame Chittalayah sadaa bhavtu me bho Ram maamudhhar || 37 ||

Ram Rameti Rameti Ramey Rame manoramey |
Sahastra naam tatulyam Ram naam varaananey || 38 ||

Eti Shree Ram Raksha Stotram

**************

मंगलवार, 23 मार्च 2010

साक्षात्कार: कालजयी ग्रंथों का प्रसार जरूरी : डॉ.मृदुल कीर्ति

प्रस्तुति: डॉ. सुधा ॐ धींगरा, सौजन्य: प्रभासाक्षी

डॉ. म्रदुल कीर्ति ने शाश्वत ग्रंथों का काव्यानुवाद कर उन्हें घर-घर पहुँचने का कार्य हाथ में लिया है.  उनहोंने अष्टावक्र गीता और उपनिषदों का काव्यानुवाद करने के साथ-साथ भगवद्गीता का ब्रिज  भाषा में अनुवाद भी किया है और इन दिनों पतंजलि योग सूत्र के काव्यानुवाद में लगी हैं. प्रस्तुत हैं उनसे हुई  बातचीत के चुनिन्दा अंश:

प्रश्न: मृदुल जी! अक्सर लोग कविता लिखना शुरू करते हैं तो पद्य के साथ-साथ गद्य की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं पर आप आरंभिक अनुवाद की ओर कैसे प्रवृत्त हुईं और असके मूल प्रेरणास्त्रोत क्या थे?

उत्तर: इस प्रश्न उत्तर का दर्शन बहुत ही गूढ़ और गहरा है. वास्तव में चित्त तो चैतन्य की सत्ता का अंश है पर चित्त का स्वभाव तीनों  तत्वों से बनता है- पहला आपके पूर्व जन्मों के कृत कर्म, दूसरा माता-पिता के अंश परमाणु और तीसरा वातावरण. इन तीनों के समन्वय से ही चित्त की वृत्तियाँ बनती हैं. इस पक्ष में गीता का अनुमोदन- वासुदेव अर्जुन से कहते हैं-शरीरं यद वाप्नोति यच्चप्युतक्रमति  वरः / ग्रहीत्व वैतानी संयति वायुर्गंधा निवाश्यत.'

यानि वायु गंध के स्थान से गंध को जैसे ग्रहण करके ले जाता है, वैसे ही देहादि का स्वामी  जीवात्मा भी जिस शरीर  का त्याग करता है उससे इन मन सहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है उसमें जाता है.  इन भावों की काव्य सुधा भी आपको पिलाती चलूँ तो मुझे अपने काव्य कृत 'भगवदगीता का काव्यानुवाद ब्रिज भाषा में' की अनुवादित पंक्तियाँ  सामयिक लग रही हैं.

यही तत्त्व गहन अति सूक्ष्म है जस वायु में गंध समावति है.
तस देहिन देह के भावन को, नव देह में हु लई जावति है..

कैवल्यपाद में ऋषि पातंजलि ने भी इसी तथ्य का अनुमोदन किया है. अतः, देहिन द्वारा अपने पूर्व जन्म के देहों का भाव पक्ष इस प्रकार सिद्ध हुआ और यही हमारा स्व-भाव है जिसे हम स्वभाव से ही दानी, उदार,  कृपण या कर्कश होन कहते हैं. उसके मूल में यही स्व-भाव होता है.

नीम न मीठो होय, सींच चाहे गुड-घी से.
छोड़ती नांय सुभाव,  जायेंगे चाहे जी से..

अतः, इन तीनों तत्वों का समीकरण ही प्रेरित होने के कारण हैं- मेरे पूर्व जन्म के संस्कार, माता-पिता के अंश परमाणु और वातावरण.

मेरी माँ प्रकाशवती परम विदुषी थीं. उन्हें पूरी गीता कंठस्थ थी. उपनिषद, सत्यार्थ प्रकाश आदि आध्यात्मिक साहित्य हमारे जीवन के अंग थे. तब मुझे कभी-कभी आक्रोश भी होता था कि सब तो शाम को खेलते हैं और मुझे मन या बेमन से ४ से ५  संध्या को स्वाध्याय करना होता था. उस ससमय वे कहती थीं-

तुलसी अपने राम को रीझ भजो या खीझ. 
भूमि परे उपजेंगे ही, उल्टे-सीधे बीज..

मनो-भूमि पर बीज की प्रक्रिया मेरे माता-पिता की देन है. मेरे पिता सिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे. वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे और संस्कृत में ही कवितायेँ लिखते थे. कर्ण पर खंड काव्य आज भी रखा है. उन दिनों आयुर्वेद की शिक्षा संस्कृत में ही होती थी- यह ज्ञातव्य हो. मेरे दादाजी ने अपना आधा घर आर्य समाज को तब दान कर दिया था जब स्वामी दयानंद जी पूरनपुर, जिला पीलीभीत में आये थे, जहाँ से आज भी नित्य ओंकार ध्वनित होता है. यज्ञ और संध्या हमारे स्वभाव बन चुके थे.

शादी के बाद इन्हीं परिवेशों की परीक्षा मुझे देनी थी. नितान्त विरोधी नकारात्मक ऊर्जा के दो पक्ष होते हैं या तो आप उनका हिस्सा बन जाएँ अथवा खाद समझकर वहीं से ऊर्जा लेना आरम्भ कर दें. बिना पंखों के उडान भरने का संकल्प भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहा पर जब आप कोई सत्य थामते हैं तो इन गलियारों में से ही अंतिम सत्य मिलता है. अनुवाद के पक्ष में मैं इसे दिव्य प्रेरणा ही कहूँगी. मुझे तो बस लेखनी थामना भर दिखाई देता था.

प्रश्न: आगामी परिकल्पनाएं क्या थीं? वे कहाँ तक पूरी हुईं?

उत्तर:
वेदों में राजनैतिक व्यवस्था'  इस शीर्षक के अर्न्तगत मेरा शोध कार्य चल ही रहा था. यजुर्वेद की एक मन्त्रणा जिसका सार था कि राजा का यह कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्रीय महत्व के साहित्य और विचारों का सम्मान और प्रोत्साहन करे. यह वाक्य मेरे मन ने पकड़ लिया और रसोई घर से राष्ट्रपति भवन तक की  मेरी मानसिक यात्रा यहीं से आरम्भ हो गयी. मेरे पंख नहीं थे पर सात्विक कल्पनाओं का आकाश मुझे सदा आमंत्रण देता रहता था. सामवेद का अनुवाद मेरे हाथ में था जिसे छपने में बहुत बाधाएं आयीं. दयानंद संस्थान से यह प्रकाशित हुआ. श्री वीरेन्द्र  शर्मा जी जो उस समय राज्य सभा के सदस्य थे, उनके प्रयास से राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरामन  द्वारा राष्ट्रपति भवन में १६ मई १९८८ को इसका विमोचन हुआ. सुबह सभी मुख्य समाचार पत्रों के शीर्षक मुझे आज भी याद हैं- 'वेदों के बिना भारत की कल्पना नहीं', 'असंभव को संभव किया', 'रसोई से राष्ट्रपति भवन तक' आदि-आदि. तब से लेकर आज तक यह यात्रा सतत प्रवाह में है. सामवेद के उपरांत ईशादि ९ उपनिषदों का अनुवाद 'हरिगीतिका' छंद में किया.  ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक,  मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तरीय और श्वेताश्वर- इनका विमोचन महामहिम डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने १७ अप्रैल १९९६ को किया.

तदनंतर भगवद्गीता का काव्यात्मक अनुवाद ब्रिज भाषा में घनाक्षरी छंद में किया जिसका विमोचन श्री अटलबिहारी बाजपेयी ने कृष्ण जन्माष्टमी पर १२ अगस्त २२०९ को किया. 'ईहातीत क्षण' आध्यत्मिक काव्य संग्रह का विमोचन मोरिशस के राजदूत ने १९९२ में किया.

प्रश्न: संगीत शिक्षा व छंदों के ज्ञान के बिना वेदों-उपनिषदों का अनुवाद आसान नहीं.  

उत्तर: संसार में सब कुछ सिखाने के असंख्य शिक्षण संस्थान हैं पर कहीं भी कविता सिखाने का संस्थान नहीं है क्योंकि काव्य स्वयं ही व्याकरण से संवरा  हुआ होता है. क्या कबीर, तुलसी, सूर, मीरा, जायसी ने कहीं काव्य कौशल सीखा था? अतः, सिद्ध होता है कि दिव्य काव्य कृपा-साध्य होता है, श्रम-साध्य नहीं. मैं स्वयं कभी ब्रिज के पिछवाडे से भी नहीं निकली जब गीता को ब्रिज भाषा में अनुवादित किया. हाँ, बाद में बांके बिहारी के चरणों में समर्पण करने गयी थी. इसकी एक पुष्टि और है. पातंजल योग शास्त्र को काव्यकृत करने के अनंतर यदि कहीं कुछ रह जाता है तो बहुत प्रयास के बाद भी मैं सटीक शब्द नहीं खोज पाती हूँ. यदि मैंने कहीं लिखा है तो मुझे किस शक्ति की प्रतीक्षा है? इसलिए ये काव्य अमर होते हैं. इनका अमृतत्व इन्हें अमरत्व देता है.

प्रश्न: आपकी भावी योजना क्या है?

उत्तर: हम श्रुति परंपरा के वाहक हैं. वेद सुनकर ही हम तक आये हैं. हमारी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों में कर्ण सबसे अधिक प्रवण माने जाते हैं. नाद आकाश का क्षेत्र है और आकाश कि तन्मात्रा ध्वनि है. नभ अनंत है, अतः ध्वनि का पसारा भी अनंत है. भारतीय दर्शन के अनुसार वाणी का कभी नाश भी नहीं होता. अतः, इस दर्शन में अथाह विश्वास रखते हुए मैं इन अनुवादों को सी.डी. में रूपांतरित करने हेतु तत्पर हूँ.  मार्च में अष्टावक्र गीता और पातंजल योग दर्शन का विमोचन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल कर रही हैं. उसी के साथ पातंजल योग दर्शन का काव्यकृत गायन भी विमोचित होगा. पातंजल योग दर्शन की क्लिष्टता से सब परिचित हैं ही. इसी कारण जन सामान्य तक कम जा सका है. अब सरल और सरस रूप में जन-मानस को सुलभ हो सकेगा. अतः, पूरे विश्व में इन दर्शनों कि क्लिष्टता को सरल और सरस काव्य में जनमानस के अंतर में उतार सकूँ यही भावी योजना है. मैं अंतिम सत्य को एक पल भी भूल नहीं पाती जो मुझे जगाये रखता है.

परयो भूमि बिन प्राण के, तुलसी-दल मुख-नांहि.  
प्राण गए निज देस में, अब तन फेंकन जांहि.
को दारा, सुत, कंत,  सनेही, इक पल रखिहें नांहि.
तनिक और रुक जाओ तुम, कोऊ न पकिरें बाँहि..

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रामनवमी पर विशेष: राम भजन स्व. शांति देवी वर्मा

अवध में जन्में हैं श्री राम
अवध में जन्में हैं श्री राम, दरश को आए शंकरजी...
*
कौन गा रहे?, कौन नाचते?, कौन बजाएं करताल?
दरश को आए शंकरजी...
*
ऋषि-मुनि गाते, देव नाचते, भक्त बजाएं करताल.
दरश को आए शंकरजी...
*
अंगना मोतियन चौक है, द्वारे हीरक बन्दनवार.
दरश को आए शंकरजी...
*
मलिन-ग्वालिन सोहर गायें, नाचें डे-डे ताल.
दरश को आए शंकरजी...
*
मैया लाईं थाल भर मोहरें, लो दे दो आशीष.
दरश को आए शंकरजी...
*
नाग त्रिशूल भभूत जाता लाख, डरे न मेरो लाल
दरश को आए शंकरजी...
*
बिन दर्शन हम कहूं न जैहें, बैठे धुनी रमाय.
दरश को आए शंकरजी...
*
अलख जगाये द्वार पर भोला, डमरू रहे बजाय.
दरश को आए शंकरजी...
*
रघुवर गोदी लिए कौशल्या, माथ डिठौना लगाय.
दरश को आए शंकरजी...
जग-जग जिए लाल माँ तेरो, शम्भू करें जयकार.
दरश को आए शंकरजी...
*********** 
बाजे अवध बधैया
बाजे अवध बधैया, हाँ हाँ बाजे अवध बधैया...
मोद मगन नर-नारी नाचें, नाचें तीनों मैया.
हाँ-हाँ नाचें तीनों मैया, बाजे अवध बधैया..
मातु कौशल्या जनें रामजी, दानव मार भगैया
हाँ हाँ दानव मार भगैया बाजे अवध बधैया...
मातु कैकेई जाए भरत जी, भारत भार हरैया
हाँ हाँ भारत भार हरैया, बाजे अवध बधैया...
जाए सुमित्रा लखन-शत्रुघन, राम-भारत की छैयां
हाँ हाँ राम-भारत की छैयां, बाजे अवध बधैया...
नृप दशरथ ने गाय दान दी, सोना सींग मढ़ईया
हाँ हाँ सोना सींग मढ़ईया, बाजे अवध बधैया...
रानी कौशल्या मोहर लुटाती, कैकेई हार-मुंदरिया
हाँ हाँ कैकेई हार-मुंदरिया, बाजे अवध बधैया...
रानी सुमित्रा वस्त्र लुटाएं, साडी कोट रजैया
हाँ हाँ साडी कोट रजैया, बाजे अवध बधैया...
विधि-हर हरि-दर्शन को आए, दान मिले कुछ मैया
हाँ हाँ दान मिले कुछ मैया, बाजे अवध बधैया...
'शान्ति'-सखी मिल सोहर गावें, प्रभु की लेनी बलैंयाँ 
हाँ हाँ प्रभु की लेनी बलैंयाँ, बाजे अवध बधैया...
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शनिवार, 20 मार्च 2010

भोजपुरी में हाइकु: संजीव 'सलिल'

(मूलतः जापानी छंद: ३ पद, वर्ण या अक्षर क्रमशः ५, ७, ५. मात्रा या तुक बंधन नहीं.)

१.
श्रम करल
नियमित रहल
आगे बढ़ल..
*
२.
कबोs थाकत
तोहार इयाद ही
होइ ताकत..
*
३.
विलग न होखे
अइसन विश्वास
तोहरा आभास..
*
४.
आगे का होइ
ईश्वर तू ही जानs
आशा न खोई..
*
५.
मन कागज़
इयाद रोशनाई
लिखल गीत.
*
६.
आग-पुअरा
रखल साथ-साथ
बिसर पानी..
*
७.
ज़रा राखल
चराग जिनिगे के
तोहरे लिए.
*
८.
गीत-गाँव में
समाधी बना दिहs
तोर छाँव में..
*
९.
अगोरे रहे
जे जिंदगी खातिर
अकेले मरे.
*
१०.
कउनौ काज
बिना विघिन-बाधा
कब बनल?
*
११.
हरा देलस
तकदीर के गोटी
जीतत दाँव.
*********************

दोहे- नोट महात्म्य : संजीव 'सलिल'

मायावती जी को नोटों की माला पहनाई जाने पर--

दोहे- नोट महात्म्य : संजीव 'सलिल'

नोटों की माला पहन, लड़िये आम चुनाव.
नोट लुटा कर वोट लें, बढ़ा रहेगा भाव..

'सलिल' नोट के हार से, हुई हार भी जीत.
जो न रहे पहचानते, वे बन बैठे मीत..

गधा नोट-माला पहिन, मिले- बोलिए बाप.
बाप नोट-बिन मिले तो, नमन न करते आप..

पढ़े-लिखे से फेल हों, नोट रखे से पास.
सूखी कॉपी जाँचकर, टीचर पाए त्रास..

नोट देख चंगा करे, डॉक्टर तुरत हुज़ूर.
आग बबूला नोट बिन, तुरत भगाए दूर..

नोटों की माला पहिन, होगा तुरत विवाह,
नोट फेंक गृह-लक्ष्मी, हँसकर करे निबाह..

घरवाली साली सदृश, करती मृदु व्यवहार.
'सलिल' देखती जब डला, नोटों का गलहार..

******************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

कविता: विवेक -आचार्य श्यामलाल उपाध्याय

मेरा परिचय-
मैं विवेक
पर अब मैं कहाँ?
चल में, न अचल में,
न तल में, न अतल में,
या रसातल-पटल में.
मेरा आवास रहा
मानव के मन की
मात्र एक कोर में.

मन, चित्त-अहंकार की
साधना बन
सबको सचेतन की
अग्नि में तपाकर
स्फूर्त होता मुखर बन
वाणी के जोर से.
मानव से उपेक्षित
परित्यक्त मैं रहता.

कहाँ सूक्ष्म अभिजात्य
मेरा प्रवेश फिर कैसे
मनुज को मानव बनाये?
जब किरीट का अकली
परीक्षित से
मुक्तिबोध की
याचना करे;
पर मनुज का परीक्षित
कुत्सित हो दंभ साढ़े
मौन व्रत का
आव्हान करता मानव से.

फिर मेरा आवास
क्या पूछ रहे?
मानव की कुंठा से
मैं चिर प्रवासी विवेक
गृह-स्कन्ध स्वर्ण के
पैरों तले कभी का
कुचला, अंतिम साँसें
लेने को मात्र
जीता रहा.

मानव की जिजीविषा से
केवल सूक्ष्मता को
धारण किये वरन
में नहीं, कहीं भी नहीं
सब कुछ है पर
मेरा सर्वस्व पारदर्शी
कहीं कुछ में नहीं
न होने को जिसे
तुम देख रहे हो-
वह है विज्ञानं.

अब कोइ राम आये
विरति की सीता
और विवेक के जटायु को
दशमुख के
दमन-चक्र से बच्ये
जो दशरथ की
शुचिता की
पाखंड-सृष्टि करता.

सीता तो भूमिगत
श्रृद्धा-विश्वास जड़,
पर सहृदयता की
गरिमा का जटायु
चिन्न-पक्ष आज्हत
पड़ा मुक्ति के सुयोग की
प्रतीक्षा में, हे राम!
अमिन तुम्हारा कृपा-भाजन
विवेक.


********************

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

सुधियों के दोहे: --- आचार्य संजीव 'सलिल'

सुधियों के दोहे:

आचार्य संजीव 'सलिल'

'सलिल' स्नेह को स्नेह का, मात्र स्नेह उपहार.
स्नेह करे संसार में, सदा स्नेह-व्यापार..

स्नेह तजा सिक्के चुने, बने स्वयं टकसाल.
खनक न हँसती-बोलती, अब क्यों करें मलाल?.

जहाँ राम तहँ अवध है, जहाँ आप तहँ ग्राम.
गैर न मानें किसी को, रिश्ते पाल अनाम..

अपने बनते गैर हैं, अगर न पायें ठौर.
आम न टिकते पेड़ पर, पेड़ न तजती बौर..

वसुधा माँ की गोद है, कहो शहर या गाँव.
सभी जगह पर धूप है, सभी जगह पर छाँव..

निकट-दूर हों जहाँ भी, अपने हों सानंद.
यही मनाएँ दैव से, झूमें गायें छंद..

जीवन का संबल बने, सुधियों का पाथेय.
जैसे राधा-नेह था, कान्हा भाग्य-विधेय..

तन हों दूर भले प्रभो!, मन हों कभी न दूर.
याद-गीत नित गा सके, साँसों का सन्तूर..

निकट रहे बेचैन थे, दूर हुए बेचैन.
तरस रहे तरसा रहे, बोल अबोले नैन..

सुधियों की सुधि लीजिये, बिसर जायेगी पीर.
धूप छाँव बरखा सहें, हँस- बिन हुए अधीर..

सुधियों के दोहे 'सलिल', स्मृति-दीर्घा जान.
कभी लगें अपने सगे, कभी लगें मेहमान..

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divyanarmada.blogspot.com
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गुरुवार, 18 मार्च 2010

निमाड़ी दोहा ग़ज़ल : संजीव 'सलिल'

धरs माया पs हात तू, होवे बड़ा पार.
हात थाम कदि साथ दे, सरग लगे संसार..
*
सोन्ना को अंबर लगs, काली माटी म्हांर.
नेह नरमदा हिय मंs, रेवा की जयकार..
*
वउ -बेटी गणगौर छे, संझा-भोर तिवार.
हर मइमां भगवान छे, दिल को खुलो किवार..
*
'सलिल' अगाड़ी दुखों मंs, मन मं धीरज धार.
और पिछाड़ी सुखों मंs, मनख रहां मन मार..
*
सिंगा की सरकार छे, ममता को दरबार.
'सलिल' नित्य उच्चार ले, जय-जय-जय ओंकार..
*
लीम-बबुल को छावलो, सिंगा को दरबार.
शरत चाँदनी कपासी, खेतों को सिंगार..
*
मतवाला किरसाण ने, मेहनत मन्त्र उचार.
सरग बनाया धरा को, किस्मत घणी सँवार..
*
नाग जिरोती रंगोली, 'सलिल' निमाड़ी प्यार.
घट्टी ऑटो पीसती, गीत गूंजा भमसार..
*
रयणो खाणों नाचणो, हँसणो वार-तिवार.
गीत निमाड़ी गावणो, चूड़ी री झंकार..
*
कथा-कवाड़ा वाsर्ता, भरसा रस की धार.
हिंदी-निम्माड़ी 'सलिल', बहिनें करें जगार..

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--- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

बुधवार, 17 मार्च 2010

कविता: सिद्धि -श्यामलाल उपाध्याय

पूना का रेजिमेंट

जिसमें कथा की

पूर्णाहुति.

व्यास महाराज को

यथाशक्ति दान-दक्षिणा,

इसे बीच श्वेत

अधिकारी का प्रवेश

श्रद्धावनत विनयभाव

व्यास की अनुमति से

जिज्ञासा जनित एक प्रश्न-

मात्र स्थानान्तरण का.



व्यास कथा-वाचक का

मौन मूक चिंतन और

श्वास पर आधारित

लग्न-वेला-मेलापक पर

शांत सस्वर उत्तर-

कार्य-सिद्धि

मात्र सप्ताह में-

अंतिम निर्णय.



श्वेत अधिकारी का

कमीशंड अधिकारी को

इंगिति-

व्यास की व्यस्था और

श्वेत अधिकारी का

साभार प्रस्थान.

व्यास के मस्तिष्क में

विचारों के आरोह-अवरोह

जीवन संकट-ग्रस्त प्रभो!

धारित अवधि में यदि

कार्य-सिद्धि न हुई-

मात्र एक प्रश्न से आक्रांत,

पर वेला में आहुति के

कोई भी वचन मृषा

होता भी तो कैसे/

फिर भी यदि साधना

हुई न साकार.


जागा विवेक

सुन उद्घोष अंतर का

चित्त एकाग्र और

वालिश वृत्ति त्यागकर

ध्यान कर दुर्गा का.



व्यास ने संध्या को

ग्रहण किया आसान

प्रतीची मुख ध्यान में

प्रारंभ किया जप को

प्रातः उठ प्राच्य मुख

न्यौछावर कर सर्वस्व

दुर्गा मातेश्वरी को

ध्यान किया ब्राम्हण ने

एकनिष्ठ भाव से,

पर आशंका पिशाचिन की

विकल करती व्यास को.

साधना में सिद्धि का

अभाव रहा किंचित

तो पथ-भ्रष्ट, पदच्युत

प्रवंचना अनर्थ और

लोक-वेद च्युति

देव योग अथवा

एकाग्रता ने व्यास की

द्वादश प्रहर अंतराल पहुँचाया

एक पत्र उस रेजिमेंट में.



श्वेत अधिकारी नाम-

रेजिमेंट का स्थानान्तरण

मात्र चौबीस घंटों में

जर्मन-फ्रांस सीमा पार.

श्वेत अधिकारी

अपने सहायक को

शीघ्र सावधान कर

चला पास ब्राम्हण के.

विनय-युक्त भाव से

टोपी उतारकर

बोल उठा- महाराज!

आपने तपोबल से

कर दी मेरी कामना पूर्ण,

साधना की सिद्धि

जो प्राप्त हुई मुझको.

श्वेत अधिकारी ने

विदा दी ब्राम्हण को

और मंत्रसिक्त जल से

संवेग मार्जन कर

व्यास ने तिलक दिया-

शुभास्ते पन्थानं .

भारत के मंत्र-तंत्र

अध्यात्म, साधनाबल

करते हठात आव्हान

निज ईश का

इनकी अनुरक्ति-भक्ति

होती इतनी प्रबल

कि देव वर्ग होता

बलात उनके वश में.

देखे मैंने कितने देश

घूमे देशांतर

पर ऐसा देश, ऐसा स्थान

मिला नहीं मुझको .


देश का आकर्षण

और ममता इस देश की

भूलता फिर कैसे?

यही मेरी अंतिम इच्छा

पाऊँ अन्य जन्म यदि

गाऊँ गीत ईश के

बिकाकर हाथ दुर्गा के.

**************

ॐ गणेश भजन : --संजीव 'सलिल'

          विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
सत-शिव-सुन्दर हम रच पायें,
निज वाणी से नित सच गायें.
अशुभ-असत से लड़ें निरंतर-
सत-चित आनंद-मंगल गायें.
भारत माता ग्रामवासिनी-
हम वसुधा पर स्वर्ग बसायें.
राँगोली-अल्पना सुसज्जित-
हों घर-घर के अँगना-द्वारे.
मतभेदों को सुलझा लें,
मनभेद न कोई बचे जरा रे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
आस-श्वास हो सदा सुहागिन,
पनघट-पनघट पर राधा हो.
अमराई में कान्हा खेलें,
कहीं न कोई भव-बाधा हो.
ढाई आखर नित पढ़ पाना-
लक्ष्य सभी ने मिल साधा हो.
हर अँगना में दही बिलोती
जसुदा, नन्द खड़े हों द्वारे.
कंस कुशासन को जनमत का
हलधर-कान्हा पटक सुधारे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*
तुलसी चौरा, राँगोली-अल्पना
भोर में उषा सजाये.
श्रम-सीकर में नहा दुपहरी,
शीश उठाकर हाथ मिलाये.
भजन-कीर्तन गाती संध्या,
इस धरती पर स्वर्ग बसाये
निशा नशीली रंग-बिरंगे
स्वप्न दिखा, शत दीपक बारे.
ज्यों की त्यों चादर धरकर
यह 'सलिल' तुम्हारे भजन उचारे.
विनय करूँ प्रभु श्री गणेश जी!
विघ्न करो सब दूर हमारे...
*

मंगलवार, 16 मार्च 2010

नव गीत: प्लेटफ़ॉर्म सा फैला जीवन - आचार्य संजीव 'सलिल'

गीत _____ अपना बिम्ब निहारो ----- आचार्य संजीव सलिल

:: आदि शक्ति वंदना :: -- संजीव वर्मा 'सलिल'

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.
रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....
*
पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.
कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..
परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम रिद्धि-सिद्धि शत रूप.
दिव्य-भव्य, नित नवल-विमल छवि, माया-छाया-धूप..

जन्म-जन्म से भटक रहा हूँ, माँ ! भव से दो तार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
परापरा तुम, रिद्धि-सिद्धि तुम. नेह नर्मदा-नाद.
भाव, ताल,ध्वनि, स्वर, अक्षर तुम, रस, प्रतीक, संवाद..
दीप्ति, तृप्ति, संतुष्टि, सुरुचि तुम, तुम विराग-अनुराग.
उषा-लालिमा, निशा-कालिमा, प्रतिभा-कीर्ति-पराग.

प्रगट तुम्हीं से होते तुम में लीं सभी आकार.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....
*
वसुधा, कपिला, सलिलाओं में जननी तव शुभ बिम्ब.
क्षमा, दया , करुणा, ममता हैं मैया का प्रतिबिम्ब..
मंत्र, श्लोक, श्रुति, वेद-ऋचाएँ, करतीं महिमा गान-
करो कृपा माँ! जैसे भी हैं, हम तेरी संतान.
चरण-शरण हैं, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....


**************

:: फागुनी दोहे :: ---आचार्य संजीव 'सलिल'

*****

महुआ महका, मस्त हैं पनघट औ' चौपाल।

बरगद बब्बा झूमते, पत्ते देते ताल।
*****
सिंदूरी जंगल हँसे, बौराया है आम।

बौरा-गौरा साथ लख, काम हुआ बेकाम।
*****
पर्वत का मन झुलसता, तन तपकर अंगार।

वसनहीन किंशुक सहे, पञ्च शरों की मार। ।
*****
गेहूँ स्वर्णाभित हुआ, कनक-कुञ्ज खलिहान।

पुष्पित-मुदित पलाश लख, लज्जित उषा-विहान।
*****
बाँसों पर हल्दी चढी, बंधा आम-सिर मौर,

पंडित पीपल बांचते, लगन पूछ लो और।
*****
तरुवर शाखा पात पर, नूतन नवल निखार।

लाल गाल संध्या किये, दस दिश दिव्य बहार।
*****
प्रणय-पंथ का मान कर, आनंदित परमात्म।

कंकर में शंकर हुए, प्रगट मुदित मन-आत्म।

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सोमवार, 15 मार्च 2010

सलिल के हाइकु

आया वसंत,
इन्द्रधनुषी हुए
दिशा-दिगंत..
*
शोभा अनंत
हुए मोहित, सुर
मानव संत..
*
प्रीत के गीत
गुनगुनाती धूप
बनालो मीत.
*
जलाते दिए
एक-दूजे के लिए
कामिनी-कंत..
*
पीताभी पर्ण
संभावित जननी
जैसे विवर्ण..
*
हो हरियाली
मिलेगी खुशहाली
होगे श्रीमंत..
*
चूमता कली
मधुकर गुंजार
लजाती लली..
*
सूरज हुआ
उषा पर निसार
लाली अनंत..
*
प्रीत की रीत
जानकार न जाने
नीत-अनीत.
*
क्यों कन्यादान?
अब तो वरदान
दें एकदंत..
**********

दोहे: जबलपुर में चिटठा चर्चा पर - 'सलिल'

जबलपुर में चिटठा चर्चा पर दोहे:

चिट्ठाकारों को 'सलिल', दे दोहा उपहार.
मना रहा- बदलाव का, हो चिटठा औज़ार..

नेह नरमदा से मिली, विहँस गोमती आज.
संस्कारधानी अवध, आया- हो शुभ काज..
 

'डूबे जी' को निकाले, जो वह करे 'बवाल'.
किस लय में 'किसलय' रहे, पूछे कौन सवाल?.
 

चिट्ठाकारों के मिले, दिल के संग-संग हाथ.
अंतर में अंतर न हो, सदय रहें जगनाथ..

 

उड़ न तश्तरी से कहा, मैंने खाकर भंग.
'उड़नतश्तरी' उड़ रही', कह- वह करती जंग..

गिरि-गिरिजा दोनों नहीं, लेकिन सुलभ 'गिरीश'.
'सलिल' धन्य सत्संग पा, हैं कृपालु जगदीश..

अपनी इतनी ही अरज, रखे कुशल-'महफूज़'.
दोस्त छुरी के सामने, 'सलिल' न हो खरबूज..

 
बिना पंख बरसात बिन, करता मुग्ध 'मयूर'.
गप्प नहीं यह सच्च है, चिटठाकार हुज़ूर!..
 
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रविवार, 14 मार्च 2010

जबलपुर में चिट्ठाकारों की बैठक: अभिनन्दन महफूज़


जबलपुर,  १३-०३-२०१०. सनातन सलिला नर्मदा के तट पर स्थित संस्कारधानी जबलपुर में स्थानीय चिट्ठाकारों की बैठक सिटी कॉफ़ी हाउस में अपरान्ह २ बजे से आयोजित की गयी. इस अवसर पर बाएं से: शैली, संजीव 'सलिल', महफूज़, महेंद्र मिश्र, बवाल, गिरीश बिल्लोरे और मयूर.

बाएँ से : सर्वश्री बवाल, महफूज़ अली, किसलय, गिरीश बिल्लोरे, महेंद्र मिश्र, मयूर  

इस बैठक में विशेष रूप से उपस्थित हुए लखनऊ के युवा चिट्ठाकार श्री महफूज़ अली का स्वागत करते हुए भारत ब्रिगेड के संस्थापक श्री गिरीश बिल्लोरे ने उनका परिचय कराया. इस अवसर पर व्यंग्यचित्रों के माध्यम से ख्यातिप्राप्त चिट्ठाकार श्री राजेश कुमार दुबे 'डूबे जी', अपनी गायकी के माध्यम से सुपरिचित श्री बवाल, चलचित्र संबंधी लेखन के क्षेत्र में स्थान बना रहे श्री मयूर, सर्वाधिक पढ़े जा रहे चिट्ठाकार श्री महेंद्र मिश्र, पत्रकारिता और चिट्ठाकारी में एक साथ हाथ आजमा रही सुश्री शैली जी, अपने चर्चित श्वान पर गर्वित श्री विजय तिवारी किसलय, चिट्ठाकारी के विकास के प्रति समर्पित दिव्यनर्मदा के तकनीकी प्रबंधक तथा अन्य ५० चिट्ठों से जुड़े युवा चिट्ठाकार श्री मन्वंतर वर्मा एवं  दिव्यनर्मदा के संपादक सुपरिचित कवि-समीक्षक आचार्य संजीव 'सलिल' के साथ स्थानीय दैनिक समाचार पत्रों भास्कर, पत्रिका, देशबंधु, नई दुनिया, नवीन दुनिया, हितवाद, पीपुल्स समाचार आदि के संवाददाता व छायाकार उपस्थित थे. 

 
बायें से: सलिल, महफूज़, महेंद्र मिश्र, बवाल, मयूर, शैली

आरम्भ में गिरीश जी ने पत्रकारों को चिट्ठकारी विधा की जानकारी दी. बवाल जी ने हिन्दी चिट्ठाकारी के स्तम्भ श्री समीर लाल 'उड़नतश्तरी' की उपलब्धियाँ पत्रकारों को बताई. श्री महेंद्र मिश्र ने चिट्ठाकारी पर एक आलेख का वाचन किया. श्री डूबे जी ने व्यंग चित्रों और चिट्ठाकारी के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला.

किसलय , महेंद्र मिश्र , मयूर , आचार्य संजीव 'सलिल' तथा पत्रकार

किसलय जी ने पत्रकारिता में उपयोग की जा रही भाषा की विसंगतियों पर चिंता व्यक्त की. मयूर जी ने अपने चिट्ठे की जानकारी देते हुए चलचित्रों को गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की. अतिथि चिट्ठाकार श्री महफूज़ अली ने लखनऊ में चिट्ठाकारी के विकास की जानकारी दी.

पत्रकारों से चर्चारत आचार्य संजीव 'सलिल', पीछे मयूर जी 

सलिल जी ने पत्रकारों के लिए चिट्ठाकारी की उपादेयता प्रतिपादित करते हुए उन्हें खुद के चिट्ठे प्रारंभ करने की प्रेरणा दी. लखनऊ ब्लोगर्स एसोसिएशन, लखनऊ में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के कवि श्री नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में संपन्न ३० अभियंताओं की चिट्ठाकारी पर केन्द्रित बैठक, जबलपुर में संपन्न  चिटठाकारी की कार्यशालाओं, हिंदी के विकास के लिए चिट्ठकारी के माध्यम से किए जा रहे प्रयासों, हिंद युग्म, साहित्य शिल्पी, अभिव्यक्ति तथा सृजन गाथा में दोहा लेखन, अलंकार, नवगीत तथा भाषिक व काव्य दोषों पर केन्द्रित अपनी लेख मालाओं की जानकारी देते हुए सलिल जी ने पत्रकारों से सहयोग का आव्हान किया. गिरीश जी ने चिट्ठाकारी के विकास में संस्कारधानी के योगदान पर चर्चा की.

चिट्ठाकारों से रू-ब-रू पत्रकार तथा छायाकार, पीछे मन्वंतर

राजनैतिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में चिट्ठाकारी के योगदान पर भी चर्चा हुई. मन्वंतर ने भारतीय जनता पार्टी के आई. टी. प्रकोष्ठ के प्रांतीय महामंत्री श्री सचिन खरे द्वारा राष्ट्रीय-प्रांतीय नेताओं के चिट्ठे बनाये जाने की चर्चा करते हुए पोडकास्टिंग की जानकारी चाही जो गिरीश जी ने उपलब्ध कराई.


 महफूज़ को स्नेहोपहार :  बाएँ से सलिलजी, महफूज़जी, डूबेजी, बवालजी, शैलीजी

पत्रकारों ने ग्रामीण क्षेत्रों के विकास, सामाजिक विषमताओं के शमन, राष्ट्रीय एकता को सशक्त करने, विखंडनवादी शक्तियों से जूझने, जन जागरण आदि क्षेत्रों में चिट्ठाकारी के संभावित योगदान पर जिज्ञासा की जिनका सम्यक तार्किक समाधान चिट्ठाकारों ने किया. यथाशीघ्र फिर मिलने के वायदे और संकल्प के साथ चिट्ठाकारों की यह गोष्ठी समाप्त हुई.



सार्थक चर्चा का संतोष: सलिल, महफूज़, महेंद्र मिश्र, बवाल, शैली (ऊपर) और नीचे फिर मिलने के लिए बिछुड़ने के पहले: किसलय, सलिल, महफूज़, बवाल, मयूर, गिरीश और शैली.




चिटठा चर्चा के कुछ और चित्र :


कौन किसको दे रहा उपहार बूझो: सलिल. महफूज़, बवाल, शैली, मयूर


चिटठा चर्चा सुनते पत्रकार 



नव गीत: ओ मेरे प्यारे अरमानों! संजीव 'सलिल'

नव गीत: 
ओ मेरे प्यारे अरमानों!   
संजीव 'सलिल'
*
ओ मेरे प्यारे अरमानों!,
आओ, तुम पर जान लुटाऊँ.
ओ मेरे सपने अनजानों!-
तुमको मैं साकार बनाऊँ...
*
मैं हूँ पंख, उड़ान तुम्हीं हो.
मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो.
मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही-
मैं हूँ अक्षर गान तुम्हीं हो.

ओ मेरी निश्छल मुस्कानों!
आओ, लब पर तुम्हें सजाऊँ...
*
मैं हूँ मधु, मधुगान तुम्हीं हो.
मैं हूँ शर-संधान तुम्हीं हो.
जनम-जनम का अपना नाता-
मैं हूँ रस, रस-खान तुम्हीं हो.

ओ मेरे निर्धन धनवानों!
आओ, श्रम का पाठ पढाऊँ...
*
मैं हूँ तुच्छ, महान तुम्हीं हो.
मैं हूँ धरा, वितान तुम्हीं हो.
मैं हूँ षडरसमय मृदु व्यंजन-
'सलिल' मान का पान तुम्हीं हो.

ओ मेरी रचना संतानों!
आओ, दस दिश तुम्हें सजाऊँ...
***********************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

कुण्डली : हिंदी की जय बोलिए -संजीव 'सलिल'












कुण्डली

संजीव 'सलिल'

हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूज उठे, फिर हिंदी की  जय..
***********************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

कविता: मिश्रण --श्यामलाल उपाध्याय

बाबा तपस्वी ने
एक मुक्त जीवन को
ऊर्जा की लालसा से
उपले जलाये थे
घटिका पूर्व,
पर उपलों में
ऊर्जा के अभाव ने
कर दी हड़ताल.

चार पाँच छः सात
उपले जलाने तक
पात्र की गर्मी अन्न तक न पहुँची.
बाबाजी किंचित
घोर व्यंग्य हास कर
बोल उठे-
गोमय में मिश्रण था
बालू और सज्जी का
कहीं राख का भी होता
तो अन्न सिद्ध होता
और क्षुधा शांत होती.
उसी सहानुभूति से
बाबा ने उठाया-
जल-जीवन-कमंडल
और हरिर्दाता के
स्वर के समापन पर
बन गए अगस्त्य.
हरिओम के साथ
बाबा के स्वर ने
एक बार फिर किया
उद्घोष हास
हा हा हा हा !
गोबर में मिश्रण
मिश्रण में गोबर-
बुद्धि की अधोगति
मानव का घोर पतन
होता यदि किंचित
विवेक मात्र स्पर्श
न होता कोई मिश्रण.

अब नैतिकता की 
क्या भर्त्सना 
जब उसका विमान ही
धराधाम छोड़कर
चला गया अन्यत्र
मनु, विदुर,चाणक्य
नहीं रहे नैतिकता के
महान उपदेशक.

हाँ, बाबा तपस्वियों का
लगा है मेला कुम्भ
जगत के संगम पर
चाहे हो ज्ञान अथवा
सहज भक्ति ऊर्जा का
इनके अभाव में
जी रहे जीने को
लोक-परलोक,
मर्यादा की रक्षा में
साधना की सिद्धि में.

बाब तपस्वी उद्विग्न हो
मिश्रण से, बोल उठे-
अब नहीं रहा जाता
आज उड़े यह राजहंस
आश्रय पाने को
चरण-शरण में.


*******************

गुरुवार, 11 मार्च 2010

नव गीत: ऊषा को लिए बाँह में संजीव 'सलिल'

नव गीत:

ऊषा को लिए बाँह में

संजीव 'सलिल'
*
ऊषा को लिए बाँह में,
संध्या को चाह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
पानी के बुलबुलों सी
आशाएँ पल रहीं.
इच्छाएँ हौसलों को
दिन-रात छल रहीं.
पग थक रहे, मंजिल
कहीं पाई न राह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
तृष्णाएँ खुद ही अपने
हैं हाथ मल रहीं.
छायाएँ तज आधार को
चुपचाप ढल रहीं.
मोती को रहे खोजते
पाया न थाह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*
शिशु शशि शशीश शीश पर
शशिमुखी विलोकती.
रति-मति रतीश-नाश को
किस तरह रोकती?
महाकाल ही रक्षा करें
लेकर पनाह में.
सूरज सुलग रहा है-
रजनी के दाह में...
*

दोहे - मुक्तक : --'सलिल'

दोहे - मुक्तक :

पर्वत शिखरों पर बसी धूप-छाँव सँग शाम.
वृक्षों पर कलरव करें, पंछी पा आराम..
*
बिना दाम मेहनत करे, रवि बँधुआ मजदूर.
आसमान चुप सिसकता, शोषण है भरपूर..
*
आँख मिचौली खेलते, बदल-सूरज संग.
यह भगा वह पकड़ता, देखे धरती दंग..
*
पवन सबल निर्बल लता, वह चलता है दाँव.
यह थर-थर-थर कांपती, रहे डगमगा पाँव..
*
कली-भ्रमर मद-मस्त हैं, दुनिया से बेफिक्र.
त्रस्त तितलियाँ हो रहीं, सुन-सुनकर निज ज़िक्र..
*
सदा सुहागिन रच रही, प्रणय ऋचाएँ झूम.
जूही-चमेली चकित चित, तकें 'सलिल' मासूम..
*
धूल जड़ों को पोसकर, खिला रही है धूल.
सिसक रही सिकता 'सलिल', मिले फूल से शूल..

समय बदला तो समय के साथ ही प्रतिमान बदले.
प्रीत तो बदली नहीं पर प्रीत के अनुगान बदले.
हैं वही अरमान मन में, है वही मुस्कान लब पर-
वही सुर हैं वही सरगम 'सलिल' लेकिन गान बदले..
*
रूप हो तुम रंग हो तुम सच कहूँ रस धार हो तुम.
आरसी तुम हो नियति की प्रकृति का श्रृंगार हो तुम..
भूल जाऊँ क्यों न खुद को जब तेरा दीदार पाऊँ-
'सलिल' लहरों में समाहित प्रिये कलकल-धार हो तुम..
*
नारी ही नारी को रोके इस दुनिया में आने से.
क्या होगा कानून बनाकर खुद को ही भरमाने से?.
दिल-दिमाग बदल सकें गर, मान्यताएँ भी हम बदलें-
'सलिल' ज़िंदगी तभी हँसेगी, क्या होगा पछताने से?
*
ममता को सस्मता का पलड़े में कैसे हम तौल सकेंगे.
मासूमों से कानूनों की परिभाषा क्या बोल सकेंगे?
जिन्हें चाहिए लाड-प्यार की सरस हवा के शीतल झोंके-
'सलिल' सिर्फ सुविधा देकर साँसों में मिसरी घोल सकेंगे?
*