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बुधवार, 2 मार्च 2011

रावण रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् : हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'

                                  :: शिवरात्रि महापर्व पर शिव स्तुति माहात्म्य ::
                                                                                    
श्री गणेश विघ्नेश शिवा-शव नंदन-वंदन.
लिपि-लेखनि, अक्षरदाता कर्मेश शत नमन..
नाद-ताल,स्वर-गान अधिष्ठात्री माँ शारद-
करें कृपा नित मातु नर्मदा जन-मन-भावन..
*
प्रात स्नान कर, श्वेत वसन धरें कुश-आसन.
मौन करें शिवलिंग, यंत्र, विग्रह का पूजन..
'ॐ नमः शिवाय' जपें रुद्राक्ष माल ले-
बार एक सौ आठ करें, स्तोत्र का पठन..
भाँग, धतूरा, धूप, दीप, फल, अक्षत, चंदन,
बेलपत्र, कुंकुम, कपूर से हो शिव-अर्चन..
उमा-उमेश करें पूरी हर मनोकामना-
'सलिल'-साधन सफल करें प्रभु, निर्मल कर मन..
*
: रावण रचित शिवताण्डवस्तोत्रम् :
हिन्दी काव्यानुवाद तथा अर्थ - संजीव 'सलिल'

श्रीगणेशाय नमः
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||

सघन जटा-वन-प्रवहित गंग-सलिल प्रक्षालित.
पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित..
डम-डम, डिम-डिम, डम-डम, डमरू का निनादकर-
तांडवरत शिव वर दें, हों प्रसन्न, कर मम हित..१..

सघन जटामंडलरूपी वनसे प्रवहित हो रही गंगाजल की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ को प्रक्षालित करती (धोती) हैं, जिनके गले में लंबे-लंबे, विक्राक सर्पों की मालाएँ सुशोभित हैं, जो डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य कर रहे हैं-वे शिवजी मेरा कल्याण करें.१.
                                                                                *

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि |
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || ||
 
सुर-सलिला की चंचल लहरें, हहर-हहरकर,
करें विलास जटा में शिव की भटक-घहरकर.
प्रलय-अग्नि सी ज्वाल प्रचंड धधक मस्तक में,
हो शिशु शशि-भूषित शशीश से प्रेम अनश्वर.. २..
जटाओं के गहन कटावों में भटककर अति वेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की लहरें जिन शिवजी के मस्तक पा र्लाहरा रहे एहेन, जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालायें धधक-धधककर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे- बाल-चन्द्रमा से विभूषित मस्तकवाले शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिपल बढ़ता रहे.२.


धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि || ||

पर्वतेश-तनया-विलास से परमानन्दित,
संकट हर भक्तों को मुक्त करें जग-वन्दित!
वसन दिशाओं के धारे हे देव दिगंबर!!
तव आराधन कर मम चित्त रहे आनंदित..३..

पर्वतराज-सुता पार्वती के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परमानन्दित (शिव), जिनकी कृपादृष्टि से भक्तजनों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं, उन शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा?.३.
*
                                                 

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तुभूतभर्तरि || ||

केशालिंगित सर्पफणों के मणि-प्रकाश की,
पीताभा केसरी सुशोभा दिग्वधु-मुख की.
लख मतवाले सिन्धु सदृश मदांध गज दानव-
चरम-विभूषित प्रभु पूजे, मन हो आनंदी..४..

जटाओं से लिपटे विषधरों के फण की मणियों के पीले प्रकाशमंडल की केसर-सदृश्य कांति (प्रकाश) से चमकते दिशारूपी वधुओं के मुखमंडल की शोभा निरखकर मतवाले हुए सागर की तरह मदांध गजासुर के चरमरूपी वस्त्र से सुशोभित, जगरक्षक शिवजी में रामकर मेरे मन को अद्भुत आनंद (सुख) प्राप्त हो.४.
*
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजस्फुल्लिंगया, निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकं |
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकलपालिसंपदे सरिज्जटालमस्तुनः ||||

ज्वाला से ललाट की, काम भस्मकर पलमें,
इन्द्रादिक देवों का गर्व चूर्णकर क्षण में.
अमियकिरण-शशिकांति, गंग-भूषित शिवशंकर,
तेजरूप नरमुंडसिंगारी प्रभु संपत्ति दें..५..

अपने विशाल मस्तक की प्रचंड अग्नि की ज्वाला से कामदेव को भस्मकर इंद्र आदि देवताओं का गर्व चूर करनेवाले, अमृत-किरणमय चन्द्र-कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटावाले नरमुंडधारी तेजस्वी शिवजी हमें अक्षय संपत्ति प्रदान करें.५.
*

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||||
 
सहसनयन देवेश-देव-मस्तक पर शोभित,
सुमनराशि की धूलि सुगन्धित दिव्य धूसरित.
पादपृष्ठमयनाग, जटाहार बन भूषित-
अक्षय-अटल सम्पदा दें प्रभु शेखर-सोहित..६..

इंद्र आदि समस्त देवताओं के शीश पर सुसज्जित पुष्पों की धूलि (पराग) से धूसरित पाद-पृष्ठवाले सर्पराजों की मालाओं से अलंकृत जटावाले भगवान चन्द्रशेखर हमें चिरकाल तक स्थाई रहनेवाली सम्पदा प्रदान करें.६.
*
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध नञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके |
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम || ||
 
धक-धक धधके अग्नि सदा मस्तक में जिनके,
किया पंचशर काम-क्षार बस एक निमिष में.
जो अतिदक्ष नगेश-सुता कुचाग्र-चित्रण में-
प्रीत अटल हो मेरी उन्हीं त्रिलोचन-पद में..७..
*
अपने मस्तक की धक-धक करती जलती हुई प्रचंड ज्वाला से कामदेव को भस्म करनेवाले, पर्वतराजसुता (पार्वती) के स्तन के अग्र भाग पर विविध चित्रकारी करने में अतिप्रवीण त्रिलोचन में मेरी प्रीत अटल हो.७. 
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् - कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः |
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः || ||
 
नूतन मेघछटा-परिपूर्ण अमा-तम जैसे,
कृष्णकंठमय गूढ़ देव भगवती उमा के.
चन्द्रकला, सुरसरि, गजचर्म सुशोभित सुंदर-
जगदाधार महेश कृपाकर सुख-संपद दें..८..

नयी मेघ घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सघन अन्धकार की तरह अति श्यामल कंठवाले, देवनदी गंगा को धारण करनेवाले शिवजी हमें सब प्रकार की संपत्ति दें.८.
*
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदं भजे || ||

पुष्पित नीलकमल की श्यामल छटा समाहित,
नीलकंठ सुंदर धारे कंधे उद्भासित.
गज, अन्धक, त्रिपुरासुर भव-दुःख काल विनाशक-
दक्षयज्ञ-रतिनाथ-ध्वंसकर्ता हों प्रमुदित.. 

खिले हुए नीलकमल की सुंदर श्याम-प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कन्धोंवाले, गज, अन्धक, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों को मिटानेवाले, दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करनेवाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ.९.
*
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे || १०||

शुभ अविनाशी कला-कली प्रवहित रस-मधुकर,
दक्ष-यज्ञ-विध्वंसक, भव-दुःख-काम क्षारकर.
गज-अन्धक असुरों के हंता, यम के भी यम-
भजूँ महेश-उमेश हरो बाधा-संकट हर..१०..

नष्ट न होनेवाली, सबका कल्याण करनेवाली, समस्त कलारूपी कलियों से नि:सृत, रस का रसास्वादन करने में भ्रमर रूप, कामदेव को भस्म करनेवाले, त्रिपुर नामक राक्षस का वध करनेवाले, संसार के समस्त दु:खों के हर्ता, प्रजापति दक्ष के यज्ञ का ध्वंस करनेवाले, गजासुर व अंधकासुर को मारनेवाले,, यमराज के भी यमराज शिवजी का मैं भजन करता हूँ.१०.
*
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः || ११||
 
वेगवान विकराल विषधरों की फुफकारें,
दह्काएं गरलाग्नि भाल में जब हुंकारें.
डिम-डिम डिम-डिम ध्वनि मृदंग की, सुन मनमोहक.
मस्त सुशोभित तांडवरत शिवजी उपकारें..११..

अत्यंत वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्निवाले, मृदंग की मंगलमय डिम-डिम ध्वनि के उच्च आरोह-अवरोह से तांडव नृत्य में तल्लीन होनेवाले शिवजी सब प्रकार से सुशोभित हो रहे हैं.११.
*
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहत  || १२||

कड़ी-कठोर शिला या कोमलतम शैया को,
मृदा-रत्न या सर्प-मोतियों की माला को.
शत्रु-मित्र, तृण-नीरजनयना, नर-नरेश को-
मान समान भजूँगा कब त्रिपुरारि-उमा को..१२..

कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शैया, सर्प और मोतियों की माला, मिट्टी के ढेलों और बहुमूल्य रत्नों, शत्रु और मित्र, तिनके और कमललोचनी सुंदरियों, प्रजा और महाराजाधिराजों के प्रति समान दृष्टि रखते हुए कब मैं सदाशिव का भजन करूँगा?
*
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् || १३||
 
कुञ्ज-कछारों में गंगा सम निर्मल मन हो, 
सिर पर अंजलि धारणकर कब भक्तिलीन हो?
चंचलनयना ललनाओं में परमसुंदरी, 
उमा-भाल-अंकित शिव-मन्त्र गुंजाऊँ सुखी हो?१३..

मैं कब गंगाजी कछार-कुंजों में निवास करता हुआ, निष्कपट होकर सिर पर अंजलि धारण किये हुए, चंचल नेत्रोंवाली ललनाओं में परमसुंदरी पार्वती जी के मस्तक पर अंकित शिवमन्त्र का उच्चारण करते हुए अक्षय सुख प्राप्त करूँगा.१३.
*
                   निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका, निगुम्फ़ निर्भरक्षन्म धूष्णीका मनोहरः.
                   तनोतु नो मनोमुदं, विनोदिनीं महर्नीशं, परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चय: || १४||


सुरबाला-सिर-गुंथे पुष्पहारों से झड़ते,
परिमलमय पराग-कण से शिव-अंग महकते.
शोभाधाम, मनोहर, परमानन्दप्रदाता, 
शिवदर्शनकर सफल साधन सुमन महकते..१४..

देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते सुगंधमय पराग से मनोहर परम शोभा के धाम श्री शिवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानन्दयुक्त हमारे मनकी प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें.१४.



प्रचंडवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी, महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूतजल्पना.
विमुक्तवामलोचनों विवाहकालिकध्वनि:, शिवेतिमन्त्रभूषणों जगज्जयाम  जायतां|| १५||

पापभस्मकारी प्रचंड बडवानल शुभदा,
अष्टसिद्धि अणिमादिक मंगलमयी नर्मदा.
शिव-विवाह-बेला में सुरबाला-गुंजारित,
परमश्रेष्ठ शिवमंत्र पाठ ध्वनि भव-भयहर्ता..१५..
 
प्रचंड बड़वानल की भाँति पापकर्मों को भस्मकर कल्याणकारी आभा बिखेरनेवाली शक्ति (नारी) स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रोंवाली देवकन्याओं द्वारा शिव-विवाह के समय की गयी परमश्रेष्ठ शिवमंत्र से पूरित, मंगलध्वनि सांसारिक दुखों को नष्टकर विजयी हो.१५.
  *

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् || १६||
 
शिवतांडवस्तोत्र उत्तमोत्तम फलदायक,
मुक्तकंठ से पाठ करें नित प्रति जो गायक.
हो सन्ततिमय भक्ति अखंड रखेंहरि-गुरु में.
गति न दूसरी, शिव-गुणगान करे सब लायक..१६..

इस सर्वोत्तम शिवतांडव स्तोत्र का नित्य प्रति मुक्त कंठ से पाठ करने से भरपूर सन्तति-सुख, हरि एवं गुरु के प्रति भक्ति अविचल रहती है, दूसरी गति नहीं होती तथा हमेशा शिव जी की शरण प्राप्त होती है.१६.
  *
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव  सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १७||
 
करें प्रदोषकाल में शिव-पूजन रह अविचल,
पढ़ दशमुखकृत शिवतांडवस्तोत्र यह अविकल.
                                                   रमा रमी रह दे समृद्धि, धन, वाहन, परिचर.                                                  करें कृपा शिव-शिवा 'सलिल'-साधना सफलकर..१७..  

परम पावन, भूत भवन भगवन सदाशिव के पूजन के नत में रावण द्वारा रचित इस शिवतांडव स्तोत्र का प्रदोष काल में पाठ (गायन) करने से शिवजी की कृपा से रथ, गज, वाहन, अश्व आदि से संपन्न होकर लक्ष्मी सदा स्थिर रहती है.१७.


|| इतिश्री रावण विरचितं शिवतांडवस्तोत्रं सम्पूर्णं||   
 
 || रावणलिखित(सलिलपद्यानुवादित)शिवतांडवस्तोत्र संपूर्ण|| 
 
       *****************

21 टिप्‍पणियां:

Achal Verma ने कहा…

आचार्य जी,
सहर्ष मैंने इसे आद्योपांत पढ़ा और सम्हाल कर रख भी लिया |
इसे बार बार पढूंगा और कोशिश करूंगा की इसे अपना बना लूं \
आगे तो राम जाने|
आपका बहुत आभार | नाम तो बहुत सुना था |
रामायण श्रृंखला में सुना भी था , पर इसका अपना ही रस है |
आपकी आज्ञा लेकर मै इसे कुछ स्वजनों को भेजना चाहूंगा , आशा है आप का आशीर्वाद मिल जाएगा |

Your's ,

Achal Verma

Arvind Mishra ने कहा…

अद्भुत ,रम्य,प्रशान्तिदायक अनुभव

-बहुत ही प्रांजल काव्यानुवाद !

आज का दिन धन्य हुआ

-बहुत आभार

--
(Arvind Mishra.,Ph.D.)
CEO,Fisheries,
Varanasi,U.P.India
President,Science Bloggers' Association,India
Secretary,Indian Science Fiction
Writers' Association

Rakesh Khandelwal ekavita ने कहा…

महाशिवरात्रि के शुभ पर्व पर आप तथा कमलजी की रचनायें अद्भुत हैं. सदस्यों की जानकारी हेतु ईकविता के फ़ायल विभाग में अनुराधा पोडवाल के स्वर में हिन्दी में शिव तांडव उपलब्ध है.

सादर

राकेश

Amitabh Tripathi ने कहा…

Amitabh Tripathi ✆
ekavita

आदरणीय आचार्य जी
आपका पद्यानुवाद सराहनीय है| बधाई एवं आभार!
सादर
अमित

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ ने कहा…

- dkspoet@yahoo.com


बहुत सुंदर आचार्य जी, बधाई स्वीकार करें।

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

ana ने कहा…

ana :

aapne to kamaal kar diyaa.......

mujhe ye stotra pura yaad hai par anuvad kar aapne ye bahut achchha kam kiya.......

dhanyavaad

वन्दना : ने कहा…

वन्दना :

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

kusum sinha ने कहा…

priy salil ji
shiv ji ke jo slok aapne anvad kiye vo bahut keemati hai bahut sundar hain etna sundar aap hi likh sakte hain
kusum

shar_j_n ekavita ने कहा…

अति सुन्दर, अतिसुन्दर!

अद्भुत!

अद्वितीय, अनिर्वचनीय!

मन के भीतर के श्रोता, वक्ता, भक्त सब नतमस्तक हैं आचार्य जी !

आभार भी कैसे प्रकट करें...

बस प्रणाम समझिये हृदय से ... सादर शार्दुला

kamlesh kumar diwan ✆ ने कहा…

kamlesh kumar diwan ✆


सुंदर रचना है सलिल जी

Om Prakash Tiwari ✆ ekavita ने कहा…

स्तुत्य !!!!!!!

kamlesh kumar diwan ✆ ekavita ने कहा…

सुन्दर मनभावन

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

आ.सलिल जी ,

यह शिवताण्डवस्तोत्र मुझे बहुत प्रिय है ,और यू-ट्यूब पर इसका गान भी मनोमुग्धकारी है .

आपने इतना रुचिर हिन्दी रूपान्तरण और अनुवाद दे कर इसे सर्व-सुलभ बना दिया .

सचमुच मेरी बधाई के स्वीकार करें !

- प्रतिभा सक्सेना.

शकुन्तला बहादुर ने कहा…

Shakuntala Bahadur ✆

ekavita - shakun.bahadur@gmail.com


आ. सलिल जी,

शिवताँडवस्तोत्र का हिन्दी में काव्यानुवाद अप्रतिम है और स्तुत्य भी।

हिन्दी-गद्य में इस के अर्थ देकर आपने उसे सर्वजनसुलभ बनाकर सराहनीय कार्य किया है।

आनन्द आ गया।

आभार सहित,
शकुन्तला बहादुर

श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा…

shriprakash shukla ✆
ekavita

आदरणीय आचार्यजी,

यह स्तोत्र मुझे १५ वर्ष की आयु से ही अति प्रिय रहा और मैं इसे २१ वर्ष की आयु तक कण्ठस्त भी कर सका.पर श्लोक १४ और १५ पहली बार पढ रहा हूँ अभी तक केवल १५ श्लोक ही पढे थे अन्तिम जोड कर .

आपका अनुबाद kavya ke roop में atyant prabhavshalli hai पढ़कर सुखद अनुभूति पा सका

सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल .

-सर्जना शर्मा … ने कहा…

-सर्जना शर्मा- :

तांडव स्त्रोत सुनने में जितना अच्छा लगता है उतना ही कठिन भी है महाशिवरात्रि पर आपने ये लिखा धन्यवाद

कमल … ने कहा…

sn Sharma ✆
ekavita

आदरणीय आचार्य जी,
शिव-तांडव स्तोत्र की लय-ताल अपने में अनोखी है , जिसका समुचित आनंद उसी लय-ताल में गा व सुन कर मिलता है |

मेरे पिताश्री शिव-तांडव स्तोत्र का एक ऐसा हिंदी रूपांतरण ताली बजाते कभी-कभी गा कर सुनाते थे जिसकी लय-ताल बिलकुल वही थी जो मूल संस्कृत श्लोकों की है | हम सब भाव-विभोर हो जाते थे | मैंने बाद में अनेक पद्यबद्ध अनुवाद सुने तो पर उस अनुवाद का आनंद नहीं पाया | अब तो मूल भाषा में ही गा कर आत्मानंद मिलता है |

यह रावण-रचित और तन्मयता से गयी हुई स्तुति से ही उसे प्रभु का साक्षात्कार हुआ था |

मन जब बहुत क्षुब्ध होता है तो देवाधिदेव
शंकर जी के कुछ स्तोत्रों, जिनमें एक की रचना तो स्वयं श्रीराम ने की थी , सस्वर गा कर बड़ी
तृप्ति, मोह-भंग और मार्गदर्शन मिलता है |

आपके अनुवाद द्वारा स्तोत्र के अर्थों पर और भी ज्ञान-वर्धन हुआ |

आपकी रचना को नमन |
सादर
कमल

Patali-The-Village : ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|

निर्मला कपिला ने कहा…

अचार्य जी इस कठिन पाठ का हिन्दी मे सरल कर हमारे सामने प्रस्तुत करना वास्तव मे एक प्रंशसनीय कार्य है हम तो धन्य हो गये इसे पढ कर। मैने बुकमार्क कर लिया है। आपका धन्यवाद और शुभकामनायें।

मानोशी manoshee chatterjee ने कहा…

- cmanoshi@gmail.com


कुछ कह नहीं सकती इसे पढ़ने के बाद सलिल जी।

आपकी प्रतिभा को नमन।

इस स्तोत्र को मैंने अपने प्रिंसिपल सर से सीखा था, गाकर छंद में कैसे पढ़ते हैं। उन्हें आपका अनुवाद भेजूँगी।

सादर
मानोशी

प्रवीण पंडित ने कहा…

श्रद्धेय सलिल जी !

सहज हिन्दी मे आपके द्वारा अनुदित रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र का पठन -मनन करके मन गदगद हो गया |

सच, इतना सुख मिला कि बोलों से परे हो गया |

विनम्र आभार |

प्रवीण पंडित