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रविवार, 6 मार्च 2011

व्यंग्य मुक्तिका: हुडदंग मचायें... संजीव 'सलिल'

व्यंग्य मुक्तिका:                                                           

हुडदंग मचायें...

संजीव 'सलिल'
*
अब आ गयी होली चलो हुडदंग मचायें.
खुद अपने घर में आग लगा फाग हम गायें...

भंग की तरंग में हो जंग रंग की.
मनहूसियत को त्याग हँसें और हँसायें..

मजबूर हो जाएँ तो जय गाँधी की हम कहें.                            
कोई न मिले तो स्वयं अपनी ही जय गायें..

भूखी रहे जनता तो हमें गम तनिक नहीं.
अरबों के घोटाले करें, हम रिश्वतें खायें..

काला है मन तो क्या हुआ?, कुरता सफेद है.
नित देश को ठगा करें, चूना भी लगायें..

जनतंत्र का जनगण है सियासत की कैद में.
अफसर बनें अधिकार से नित रास रचायें..

काला पहन के कोट, न्याय लें खरीद -बेच.
जेब पर मरीज़ की हम नज़र गड़ायें..

निजीकरण होली के रंग-अबीर का भी हो.
पिचकारियाँ भी क्यों न अब विदेश से आयें??

लट्ठमार होली रंग अबीर औ' गुझिया
अमेरिका में चल के हम पेटेंट करायें..

हुरियारों के हाथों में है मशीनगन बचो.
टी.व्ही. पे बृज की होली देख पैग चढ़ायें..

पश्चिम की होलिका पे फ़िदा पूर्व का प्रहलाद.
राष्ट्रीयता के नृसिंह को नीलाम करायें.. 

बीबी के सामने न पड़ो जेब ले तलाश.
साली के गाल लालकर, गले से लगायें..

फागुन में भौजियों को रंगो नेह-प्रेम से.
इतना ही रहे ध्यान भाई आ नहीं पायें..

मन भर के मनमानी करो पर ध्यान ये रहे.
गलती से दिल किसी का 'सलिल' हम न दुखायें..

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7 टिप्‍पणियां:

Dharmendra kumar singh 'sajjan' ने कहा…

वाह वाह रंग में सराबोर संदेश देती हुई मुक्तिका बधाई।

ganesh ji bagee ने कहा…

अब आ गयी होली चलो हुडदंग मचायें.
खुद अपने घर में आग लगा फाग हम गायें.......आज के परिवेश पर सटीक प्रहार



भूखी रहे जनता तो हमें गम तनिक नहीं.
अरबों के घोटाले करें, हम रिश्वतें खायें.............इस दोहे के द्वारा आपने हाल में घटी घटनाओं की याद दिला दिया



निजीकरण होली के रंग-अबीर का भी हो.
पिचकारियाँ भी क्यों न अब विदेश से आयें?? आचार्य जी बाज़ार चाइना के पिचकारी से पटा पड़ा है और अपने देश का उद्द्योग धंधा मंदी के चपेट में है |



फागुन में भौजियों को रंगो नेह-प्रेम से.
इतना ही रहे ध्यान भाई आ नहीं पायें......ha ha ha ha ha ha आचार्य जी आगाह कर रहे है या सलाह दे रहे है ? :-)



मन भर के मनमानी करो पर ध्यान ये रहे.
गलती से दिल किसी का 'सलिल' हम न दुखायें.....करोड़ों की बात , बिलकुल सही कहा है आचार्य जी , त्यौहार तो ख़ुशी मनाने हेतु होता है यदि किसी का दिल दुःख जाये तो काहे का होली काहे का दिवाली ,

खुबसूरत रचना हेतु बहुत बहुत आभार |

Dr.Nutan ने कहा…

बहुत सुन्दर ...

Ashvini Kumar Sharma ने कहा…

acharya ji ab aa gaye sahi holi ke rang mein

Dr.Nutan ने कहा…

वाह.. बड़े प्यार से होली पर व्यंग का रंग डाला ... उम्दा सलिल जी ... शुभ कामनाएं ...

rana pratap singh ने कहा…

आचार्य जी बहुत सुन्दर मुक्तिका

Rana Pratap Singh ने कहा…

तंजो मजाहिया तर्ज़ पर कहे गए हर शेर पर दाद देता हूँ| बहुत बहुत बधाई|