बरसाने की लट्ठमार होली :
नवीन चतुर्वेदी
होरी खेलिवे कों हुरियार चले बरसाने,
संग लिएं ग्वाल-बाल हुल्लड़ मचामें हैं|
टेसू के फूलन कों पानी में भिगोय कें फिर,
भर भर पिचकारी रंगन उडामें हैं|
संगत के सरारती संगी सहोदर कछू,
गोपिन कों घेर गोबर में हू डुबामें हैं|
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||
महीना पच्चीस दिन दूध पिएं घी हू खामें,
जाय कें अखाडें डंड बैठक लगामें हैं|
इहाँ-उहाँ जहाँ जायँ, इतरायँ, भाव खायँ,
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं|
पिछले बरस कौ यों बदलौ लेंगे अचूक,
यों-त्यों कर दंगे ऐसी योजना बनामें हैं|
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||
संग लिएं ग्वाल-बाल हुल्लड़ मचामें हैं|
टेसू के फूलन कों पानी में भिगोय कें फिर,
भर भर पिचकारी रंगन उडामें हैं|
संगत के सरारती संगी सहोदर कछू,
गोपिन कों घेर गोबर में हू डुबामें हैं|
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||
महीना पच्चीस दिन दूध पिएं घी हू खामें,
जाय कें अखाडें डंड बैठक लगामें हैं|
इहाँ-उहाँ जहाँ जायँ, इतरायँ, भाव खायँ,
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं|
पिछले बरस कौ यों बदलौ लेंगे अचूक,
यों-त्यों कर दंगे ऐसी योजना बनामें हैं|
कूद कूद जामें और बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||
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