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रविवार, 6 मार्च 2011

दोहा सलिला: फागुन में बौरा गये... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                         

फागुन में बौरा गये...

संजीव 'सलिल'
*
फागुन में बौरा गये, भाँग पिये बिन आम.
मैना फगुआ गा रही, परदेसी के नाम..

हो ली, होती, होएगी, होली पर हुडदंग.
चढ़ा-चला गोली रहे, कहीं जंग, कहीं भंग..

उषा गाल पर मल रहा, दिनकर लाल गुलाल.                                            
चन्द्र न अवसर पा सका, मन में मिला मलाल..

चढ़ा भवानी भवानी, भोले के संग मस्त.
एक हस्त में एक है, दूजी दूजे हस्त..                                                                          

पड़ा भंग में रंग तो, हुआ रंग में भंग.
या तो सब या एक भी, नहीं रहा बदरंग..

सुन होरी के हुरहुरे, समझदार मुस्कांय.
मौन नासमझ रिसाते, मूरख लड़ मर जांय..

श्यामा के गौरांग पर, चढ़े अनेकों रंग.
थकी गोपियाँ श्याम पर चढ़ा न दूजा रंग..

हुए बाँवरे साँवरे, जा बरसाने आज.
बरसाने जब रंग लगीं, गोरी तजकर लाज..

अगन-लगन है नेह की, सचमुच 'सलिल' विचित्र.
धारा में राधा लखें, मनबसिया का चित्र..

कहीं जीत में हार है, कहीं हार में जीत.
रीत अनूठी प्रीत की, ज्यों गारी के गीत..

माँग भरो यह माँग सुन, गये चौकड़ी भूल.
हुरयारों को लग रहे, आज फूल भी शूल..

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7 टिप्‍पणियां:

Dr.Nutan ने कहा…

अद्भुत.. सुन्दर ..

Ambreesh Shrivastav ने कहा…

फागुन में बौरा गये, भाँग पिये बिन आम.
मैना फगुआ गा रही, परदेसी के नाम..

सुन होरी के हुरहुरे, समझदार मुस्कांय.
मौन नासमझ खीझते,मूरख लड़ मर जांय..

परम पूज्य आचार्य जी, लगा छंद को रंग.
मनभावन दोहा सभी, ज्यों हो भंग तरंग..

हर्षित मन सबका करे, प्रीति नेह के संग.
अभिवादन है आपका, मन में बड़ी उमंग..

Rajesh Sharma ने कहा…

सलिल जी जैसे जैसे आपको पढ़ रहा हूँ ,आपका फैन होता जा रहा हूँ .ओ बी ओ पर पहली बार ही आपको पढने का सौभाग्य मिला है लेकिन मेरा विश्वास है कि देश के श्रेष्ठतम दोहकारों में आप हैं

Kavi Rajbundeli ने कहा…

शर्मा जी,,,,,,,,,,,,,,,,

सही कहा आपने,,,,भई सलिल जी सुलझे हुये रचनाकार हैं,,,,,,,,,,,,,,

ganesh ji bagee ने कहा…

आपसे सहमत हूँ शर्मा जी , आचार्य जी को पढना बहुत ही सुखद अनुभव है |

vivek mishr 'tahir' ने कहा…

वाह. सारे दोहे एक से बढ़कर एक और लाजवाब.

ganesh ji bagee ने कहा…

कहीं जीत में हार है, कहीं हार में जीत.
रीत अनूठी प्रीत की, ज्यों गारी के गीत..



जी हां बिलकुल सत्य वचन , रंग जमा दिए है आचार्य जी , बहुत बढ़िया ,

सुंदर और ह्रदय को उल्लासित करने वाली रचना पर साधुवाद |