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रविवार, 24 अप्रैल 2011

षटपदियाँ : संजीव 'सलिल'

षटपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
*
लोक-लाज, शालीनता, शर्म, हया, मर्याद.
संयम अनुशासन भुला, नव पीढ़ी बर्बाद..
नव पीढ़ी बर्बाद, प्रथाओं को कुरीति कह.
हुई बड़ों से दूर, सके ना लीक सही गह..
मैकाले की नीति सफल हुई, यही शोक है.
लोकतंत्र में हुआ तंत्र से दूर लोक है..
*
तिमिर मिटाकर कर रहा, उजियारे का दान.
सारे जग में श्रेष्ठ है, भारत देश महान..
भारत देश महान, न इस सा देश अन्य है.
सत-शिव -सुंदर का आराधक, सच अनन्य है..
सत-चित-आनंद नित वरता, तम सकल हटाकर.
सूर्य उगाता नील गगन से तिमिर हटाकर..
*
छले दूरदर्शन, रहे निकट देख ले सूर.
करा देह-दर्शन रहा, बेशर्मी भरपूर.
बेशर्मी भरपूर, मौज-मस्ती में डूबा.
पथ भूला है युवा, तन्त्र से अपने ऊबा..
कहे 'सलिल' परदेश युवाओं को है भाता?
दूर देश से भटक, धुनें सिर फिर पछताता..
*

1 टिप्पणी:

sn Sharma ✆ ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
परिवेश के यथार्थ का सही चित्रण करती आपकी षटपदियाँ मुग्ध कर गयीं | साधुवाद !
सादर
कमल