मुक्तिका :
आया है नव संवत्सर...
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'
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आया है नव संवत्सर
आत्मालोचन का अवसर
विश्व बने परिवार मगर
पहले भवन बनें यह घर..
मूल्यों की कंदील जले
घर-आँगन हों जगर-मगर..
मैं, तुम, वे सब ही मानव
रहें परस्पर हिल-मिलकर..
जड़-चेतन, मानव-दानव
रहें सचेतन अभ्यंतर..
निर्मल मन हों स्वस्थ्य शरीर
सबके प्रीति पगे अंतर..
हिंसा-द्वेष रहें निस्तेज
मन बन जाएँ प्रीति के घर..
कलुष, क्लेश, संताप मिटें
सुखी रहें चर और अचर..
सत्यं, शिवं, सुन्दरं का
स्वर हो चारों और मुखर..
मृषा अनृत का वंश मिटे
'ऋत' का फूले वंश अमर..
लिप्सा सिर्फ ज्ञान की हो
और न कोई रहे मुखर..
मेरा, तेरा, हम सबका
अपना हो यह 'यायावर'..
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