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बुधवार, 18 मई 2011

चिंतन: धर्म और आस्था: संजीव 'सलिल'

चिंतन:
धर्म और आस्था:
संजीव 'सलिल'
महाभारतकार ने कह है 'धरमं सह धारयेत' अर्थात जो धारण किया जाए वह धर्म है. आगे चर्चा है कि धारण क्या किया जाए? उत्तर है कि वह जो धारण करने योग्य है. धारण करने योग्य क्या है? वह जो सबके लिये हितकारी हो, सत-शिव-सुन्दर अर्थात सत=सत्य हो, शिव=कल्याणकारी हो, सुंदर=विकृत या कुरूप न हो.
आस्था धर्मसंगत मूल्यों के प्रति लोक का विश्वास है. आस्था अपने आपमें साध्य नहीं है, साध्य धर्म है.
सचिन जी ने मेरा जो लेख उद्धृत किया है वह पूरी तरह धर्म और विज्ञानं सम्मत है. समय के चक्र में सत्य विरूपित होकर अंध श्रृद्धा या अंध विश्वास बन जाते हैं, धर्म का निरंतर विश्लेषण होना अनिवार्य है ताकि वह सनातन मूल्यों को देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप परिभाषित कर सके. आस्था के नाम को धर्म को जड़ बना देने से वह अभिशाप हो जाएगा. हर पंथ के गुरु (पंडित, पुजारी, गुरु, मुल्ला, पादरी आदि) धर्म को विज्ञानं से अलग बताकर उसे अंध श्रृद्ध पर आधरित कर अपनी रोजी-रोटी का जरिया बनाते हैं.
कायस्थवाद सत्य और तथ्य का परीक्षण कर स्वीकार्य और अस्वीकार्य का निर्णय करना है. कायस्थ बुद्धि तत्त्व को इसीलिये प्रधानता देता है कि सत्य का अन्वेषण कर सके. धर्म का कोई भी अंग विज्ञानं विरोधी नहीं है. धर्म के संन्तान सिद्धांत दुरूह (कठिन) होने पर आमजनों को समझाने  के लिये दृष्टान्तों तथा उदाहरणों के माध्यमसे समझाए जाते हैं. कालांतर में ये हे जन-मन में पैठ जाते हैं और सत्य ओझल हो जाता है.
सनातन धर्म के मूल चारों वेद पूरी तरह वैज्ञानिक ग्रन्थ हैं. जब तक उनका अनुवाद पश्चिम में नहीं गया, पश्चिम का विज्ञानं विकसित ही नहीं हुआ. दुर्भाग्यवश भारत में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा वैज्ञानिक-संतों की हत्याओं और नालंदा जैसे पुस्तकालयों को महीनों तक जलाये जाने के बाद केवल कर्मकांडी पंडित शेष रहे जिन्होंने पुराणों की कल्पित कथाओं को आधार बनाकर प्रसंगों की अवैज्ञानिक व्याख्याएँ प्रस्तुत कीं.
मैंने अपने उक्त लेख में पूरी तरह दर्म और विज्ञानं सम्मत तथ्यों का उल्लेख किया है.
रामकथा से सम्बंधित प्रश्न करनेवाले बंधु रामकथा के सत्य से अनभिज्ञ हैं. राम, सीता, रावण, दशरथ आदि पूरी तरह प्रामाणिक ऐतिहासिक चरित्र हैं किन्तु वैसे नहीं जैसा तुलसी ने लिखा है. इस पर स्वतंत्र चर्चा हो तो सत्य सामने ला सकूँगा.
कृष्ण कथा भी सत्य है किन्तु सूरदास का वर्णन काल्पनिक है.
इन प्रसंगों के सत्य को जानने के लिये समय का ध्यान रखें. जिस काल की घटनाएँ हैं उस काल की भौगोलिक, पुँरातात्विक, नाक्षत्रिक, सामुद्रिक, सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक परिस्थितियों के प्रकाश में घटना क्रम को सही-सही समझा जा सकता है.
चित्रगुप्त जी के प्रसंग में जिन्हें आपत्ति हो वे प्रसंग से सम्बंधित साहित्य का अध्ययन कर मनन-चिंतन करें तब सत्य को समझ सकेंगे.
मैं इस विषय में गत कई वर्षों से निरंतर शोधरत हूँ. स्वयं भी विस्मित हूँ कि हमारे पूर्वजों ने वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कायस्थ धर्म का अन्वेषण किया किन्तु उसमें कर्मकाण्ड न होने के कारण वह आजीविका का आधार न हो सका. उससे पंडितों की आजीविका छिनने का खतरा हुआ तो पंडितों ने राज्याश्रय में काल्पनिक कथा गढ़कर सत्य को नष्ट करने का प्रयास किया.
आपत्ति करनेवाले बंधुओं को यह भी बता दूँ कि इन पंडितों ने इन्हीं कथाओं में चित्रगुप्त जी को क्रूर, राक्षस प्रवृत्तिवाला कहा  है. क्या आपको यह भी स्वीकार्य है? यह भी लिखा है कि कायस्थ और साँप मिले तो पहिले कायस्थ को मारो, वह साँप से भी अधिक ज़हरीला है.
ये आस्थावान सज्जनगण क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि पुरुष (ब्रम्हा) के लिये अन्य जीव (चित्रगुप्त) को जन्म देना कैसे संभव है? जन्म हुआ तो आकार भी होगा... आकार से चित्र भी बनेगा... फिर चित्र गुप्त कैसे है? दूज पर कोरे कागज़ पर 'ॐ' लिखकर पूजा क्यों करते हैं?
क्या हमारे पूर्वज जो राजा, महामात्य, सेनापति, राजवैद्य आदि थे इतने साधनहीन थे कि अपने इष्ट का एक मंदिर तक न बना सकें. सर्वाधिक शिक्षित होने पर भी कोई आरती, कथा, पूजन विधि या पुराण न लिख सकें. कोई व्रत, उपवास आदि न प्रचलन में न ला सकें.
बंगाली कायस्थ चित्रगुप्त जी की पूजा नहीं करते... माँ सरस्वती और शक्ति की उपासना करते हैं... क्यों?
तमिल के कायस्थ मछली मारने के लिये जाते समय कलम की पूजा करते हैं... क्यों?
मराठी कायस्थ चित्रगुप्त जी की पूजा नहीं करते...
इन सबके पीछे ऐतिहासिक घटनायें हैं.
आस्थावान सज्जन यह भी बता दें कि कायस्थों की गणना किस वर्ण में करेंगे और क्यों?
निवेदन मात्र यह है कि युवा पीढी वैज्ञानिक शिक्ष पद्धति से शिक्षित है. उसे विज्ञानं सम्मत सत्य सम्मत धर्म नहीं मिलेगा तो वह केवल आस्था के नाम पर नहीं मानेगी. तर्क पर खरा उतरने के बाद ही सत्य को सत्य कहकर स्वीकारेगी.
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