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सोमवार, 23 मई 2011

कुण्डलिनी : नव संवत्सर ----- संजीव 'सलिल'

कुण्डलिनी
नव संवत्सर
संजीव 'सलिल'
*
नव संवत्सर पर करें, शब्द-पुत्र संकल्प.
राष्ट्र-विश्व हित ही जियें, इसका नहीं विकल्प..
इसका नहीं विकल्प, समय के साथ चलेंगे.
देश-दुश्मनों की छाती पर दाल दलेंगे..
जीवन का हर पल, मानव सेवा का अवसर.
मानव में माधव देखें, शुभ नव संवत्सर..
*
साँसों के साम्राज्य का, वह मानव युवराज.
त्याग-परिश्रम का रखा, जिसने निज सिर ताज..
जिसने निज सिर ताज, शीश को नित्य नवाया.
अहंकार का पाश 'सलिल' सम, व्यर्थ बनाया..
पीड़ा-वन में राग छेड़ता, जो हासों के.
उसको ही चंदन-वंदन, मिलते श्वासों के..
*
हर दिन, हर पल कर सके, यदि मन सच को याद.
जग-जीवन आबाद कर, खुद भी होता शाद..
खुद भी होता शाद, नेह-नर्मदा बहाता.
कोई रहे न गैर, सकल जग अपना पाता.
कंकर में शंकर दिखते, उसको हर पल-छिन.
'सलिल' करे अभिषेक, विहँसकर उसका हर दिन..
*
धुआँ-धुआँ सूरज हुआ, बदली-बदली धूप.
ऊषा संध्या निशा सा, दोपहरी का रूप..
दोपहरी का रूप,  झुका आकाश दिगंबर.
ऊपर उठती धारा, गले मिल, मिटता अंतर.
सिमट समंदर खुद को, करता कुआँ-कुआँ.
तज सिद्धांत सियासत-सूरज धुआँ-धुआँ..
*
मरुथल बढ़ता, सिमटता हरियाली का राज.
धरती के सिर पर नहीं, शेष वनों का ताज.
शेष वनों का ताज, नहीं पर्वत-कर बाकी.
सलिल बिना सलिलायें, मधुशाला बिन साक़ी.
नहीं काँपता पंछी-कलरव बिन क्यों मानव?
हरियाली का ताज सिमटता, बढ़ता मरुथल..
*
कविता कवि करता अगर, जिए सुकविता आप.
सविता तब ही सकेगा, कवि-जीवन में व्याप..
कवि-जीवन में व्याप, लक्ष्मी दूर रहेगी.
सरस्वती नित लेकर, सुख-संतोष मिलेगी..
निशा उषा संध्या वंदन कर, हर ढल-उगता.
जिए सुकविता आप, अगर कवि करता कविता..
*

2 टिप्‍पणियां:

achal verma ekavita ने कहा…

achal verma ekavita

विवरण दिखाएँ २० मई

अनूठे कुंडलियों के लिए आप का जोड़ नहीं |
सादर नमन |

Your's ,

Achal Verma

- santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

- santosh.bhauwala@gmail.com

आदरणीय सलिल जी ,बहुत ही प्रभावशाली है कुण्डलियाँ नमन!!!
सादर
संतोष भाऊवाला