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शनिवार, 28 मई 2011

हस्ताक्षर: ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय शायर श्री तुफ़ैल चतुर्वेदी जी -- नवीन चतुर्वेदी

हस्ताक्षर: 

ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय शायर श्री तुफ़ैल चतुर्वेदी जी

-- नवीन चतुर्वेदी 
मैं कोई हरिश्चंद्र तो नहीं हूँ, पर सच बोलने को प्राथमिकता अवश्य देता हूँ| और सच ये है कि चंद हफ़्ते पहले तक मैं नहीं जानता था आदरणीय तुफ़ैल चतुर्वेदी जी को| कुछ मित्रों से सुना उन के बारे में| सुना तो बात करने का दिल हुआ| बात हुई तो मिलने का दिल हुआ| और मिलने के बाद आप सभी से मिलाने का दिल हुआ| हालाँकि मैं जानता हूँ कि आप में से कई सारे उन्हें पहले से भी जानते हैं| फिर भी, जो नहीं जानते उन के लिए और अंतर्जाल के भावी संदर्भों के लिए मुझे ऐसा करना श्रेयस्कर लगा|

पर क्या बताऊँ उन के बारे में, जब कि मैं खुद भी कुछ ज्यादा जानकारी नहीं रखता| तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं उन के प्रिय शिष्य, भाई विकास शर्मा ‘राज़’ के हवाले से प्राप्त उन के कुछ चुनिन्दा शेर:-



उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ|
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये||
***
मैं सदियाँ छीन लाया वक़्त तुझसे|
मेरे कब्ज़े में लमहा भी नहीं था||
***
मेरे पैरों में चुभ जाएंगे लेकिन|
इस रस्ते से काँटे कम हो जाएंगे||
***
हम तो समझे थे कि अब अश्क़ों की किश्तें चुक गईं|
रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया||
***
अच्छा दहेज दे न सका मैं, बस इसलिए|
दुनिया में जितने ऐब थे, बेटी में आ गये||
***
तुमने कहा था आओगे – जब आयेगी बहार|
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये||
***
हर एक बौना मेरे क़द को नापता है यहाँ|
मैं सारे शहर से उलझूँ मेरे इलाही क्या||
***
बस अपने ज़ख्म से खिलवाड़ थे हमारे शेर|
हमारे जैसे क़लमकार ने लिखा ही क्या||
***
हम फ़कीरों को ये गठरी, ये चटाई है बहुत|
हम कभी शाहों से मखमल नहीं माँगा करते||
***
लड़ाई कीजिये, लेकिन, जरा सलीक़े से|
शरीफ़ लोगों में जूता नहीं निकलता है||
***
बेटे की अर्थी चुपचाप उठा तो ली|
अंदर अंदर लेकिन बूढ़ा टूट गया||
***
नई बहू से इतनी तबदीली आई|
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया||
***
तुम्हारी बात बिलकुल ठीक थी बस|
तुम्हें लहज़ा बदलना चाहिए था||
***
नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का|
तो फिर क्या फायदा इस शायरी का||
***
किसी दिन हाथ धो बैठोगे हमसे|
तुम्हें चस्का बहुत है बेरुख़ी का||
***





तो ये हैं तुफ़ैल चतुर्वेदी जी - हिंदुस्तान-पाकिस्तान दोनों मुल्कों के शायरों के अज़ीज़| नोयडा [दिल्ली] में रहते हैं| पेंटिंग्स, रत्न, रेकी और न जाने क्या क्या इन के तज़रूबे में शामिल हैं – ग़ज़ल के सिवाय| उस्ताद शायर के रुतबे को शोभायमान करते तुफ़ैल जी की बातों को अदब के हलक़ों में ख़ासा सम्मान हासिल है|


आप की गज़लों में सादगी के साथ साथ चुटीले कथ्यों की भरमार देखने को मिलती है| उरूज़ के उच्चतम प्रामाणिक पैमानों का सम्मान करते हुए ऐसी गज़लें कहना अपने आप में एक अप्रतिम वैशिष्ट्य है|

अदब को ले कर हिन्दी हल्के में सब से बढ़िया मेगज़ीन निकालते हैं ये, जिसका कि नाम है “लफ्ज”| ये मेगज़ीन अब तक अनेक सुख़नवरों को नुमाया कर चुकी है| ग़ज़ल के विद्यार्थी जिनको कहना चाहिए, ऐसे क़लमकार भी स्थान पाते हैं “लफ़्ज़” में|

मेरा सौभाग्य है कि मैंने कुछ घंटे बिताए आप के साथ में| पूरी सादगी और विनम्रता के साथ आप ने अपना अनुभव और ज्ञान जो मेरे साथ बाँटा, उस के लिए मैं सदैव आप का आभारी रहूँगा|

मुझे यह लिखना ज़रूरी लग रहा है कि हर ज्ञान पिपासु के लिए आप के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं|

तुफ़ैल जी का ई मेल पता:- tufailchaturvedi@yahoo.com
मोबाइल नंबर :- +91 9810387857
आभार: वातायन 

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