मुक्तिका:
लोगों
संजीव 'सलिल'
*
कुछ तो बोलो न चुप रहो लोगों.
सच है जैसा-जहाँ, कहो लोगों..
जो गलत है उसे सहन न करो.
देश दहके न यूँ दहो लोगों..
नर्मदा नेह की न मैली हो.
तोड़ तटबंध मत बहो लोगों..
भेद मत के रहें, न मन में हों.
हँस के मत-भिन्नता सहो लोगों..
आधुनिकता के साथ-साथ चलो.
कुछ पुरातन भी संग गहो लोगों..
ढाई आखर की बाँचकर पोथी.
ज्यों की त्यों चदरिया तहों लोगों..
चूक हो तो सुधार भी लो 'सलिल'
हो सजग, दुबारा न हो लोगों..
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लोगों
संजीव 'सलिल'
*
कुछ तो बोलो न चुप रहो लोगों.
सच है जैसा-जहाँ, कहो लोगों..
जो गलत है उसे सहन न करो.
देश दहके न यूँ दहो लोगों..
नर्मदा नेह की न मैली हो.
तोड़ तटबंध मत बहो लोगों..
भेद मत के रहें, न मन में हों.
हँस के मत-भिन्नता सहो लोगों..
आधुनिकता के साथ-साथ चलो.
कुछ पुरातन भी संग गहो लोगों..
ढाई आखर की बाँचकर पोथी.
ज्यों की त्यों चदरिया तहों लोगों..
चूक हो तो सुधार भी लो 'सलिल'
हो सजग, दुबारा न हो लोगों..
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