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शनिवार, 25 जून 2011

नवगीत/दोहा गीत: पलाश... --संजीव वर्मा 'सलिल'



sanjiv verma 'salil'

नवगीत/दोहा गीत: 

पलाश... 

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..

शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
किंशुक कुसुम तप्त अंगारा,
सहता उर की आग.
टेसू संत तपस्यारत हो
गाता होरी-फाग..
राग-विराग समान इसे हैं-
कहता जग से जाग.
पद-बल सम्मुख शीश झुका मत
रण को छोड़ न भाग..
जोड़-घटाना छोड़,
काम कर ऊँची रखना पाग..
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
****

2 टिप्‍पणियां:

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

Ganesh Jee "Bagi"
June 16, 2011 at 10:45am
आचार्य जी, बहुत ही सार्थक और संदेशपरक रचना है यह, दोहे को गीत के रूप मे गुनगुनाना बहुत ही खुबसूरत लगा | बधाई स्वीकार करें इस शानदार अभिव्यक्ति पर |

Saurabh Pandey ने कहा…

शब्द-भाव-विचार समृद्ध रचना.



//शिवा चेतना रहित बने शिव

केवल जड़-शव लाश.//...

सौंदर्य-लहरी की सम्पूर्णता बखूबी निखर आयी है. साधु-साधु..