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रविवार, 26 जून 2011

एक मुसद्दस: जगोगे कब लोगों??... --संजीव 'सलिल'

एक मुसद्दस:
जगोगे कब लोगों??...
संजीव 'सलिल'
*

उर्दू अदब के अपेक्षाकृत अल्प प्रचलित काव्य रूपों में मुसम्मत अर्थात मुसल्लस, मुरब्ब, मुखम्मस, मुसद्दस, मुसव्वअ,  मुकम्मन, मुत्तसअ तथा मुअश्शर आदि भी हैं.
मुसम्मत अर्थात मोती पिरोना. इसमें शे'र बन्दों की सूरत में लिखे जाते हैं. तीन या अधिक मिसरों का एक-एक बंद होता है. इसमें कम सेकम ३ और अधिक से अधिक मिसरे एक ही छंद और तुक के लिखे जाते हैं. शेष बन्दों में इसी छंद के शे'र इस प्रकार लिखे जाते हैं कि अंतिम मिसरे की तुक हर बंद में एक ही और शेष मिसरों में सामान होती है. मुसम्मत के ८ प्रकार मुसल्लस, मुरब्ब, मुखम्मस, मुसद्दस, मुसव्वअ,  मुकम्मन, मुत्तसअ तथा मुअश्शर हैं. फिलहाल पेशे-खिदमत हैं एक मुसद्दस. मुलाहिजा फरमायें, बाकी काव्य रूप यथा समय प्रस्तुत किये जाते रहेंगे. 

अब तो नेताओं को सच्चाई दिखायी जाए.
अफसरी शान घटे, ज़मीं पर लायी जाए..
अदालतें न हों, चौपाल लगायी जाए.
आओ मिल-जुल के कोई बात बनायी जाए..

बहुत सहा है अब तक, न सहो अब लोगों.
अगर अभी न जगे, तो जगोगे कब लोगों??
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