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बुधवार, 20 जुलाई 2011

मुक्तिका: ढाई आखर संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
ढाई आखर
संजीव 'सलिल'
*
ढाई आखर जिंदगी में पायेगा.
दर्द दिल में छिपा गर मुस्कायेगा..

मन न हो बेचैन, जग मत नैन रे.
टेरता कागा कि पाहुन आयेगा.

गाँव तो जड़ छोड़ जा शहरों बसा.
किन्तु सावन झूम कजरी गायेगा..

सारिका-शुक खोजते अमराइयाँ.
भीड़ को क्या नीड़ कोई भायेगा?

लिये खंजर हाथ में दिल मिल रहा.
सियासतदां क्या कभी शरमायेगा?

कौन किसका कब हुआ कोई कहे?
असच को सच देव समझा जाएगा.

'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा.

*****

8 टिप्‍पणियां:

Siya Sachdev ने कहा…

bahut khoob...

shukriya sanjiv salil ji...

bahut he khoobsurat rachna

Siya Sachdev
3:45pm Jul 20

Siya Sachdev ने कहा…

नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा.. फिर भला क्या ज़िन्दगी में पायेगा आदमी जब मुतमईन हो जायेगा मय के पैमाने भला अब कब तलक इस तरह क्या दिल को तू बहलायेगा इस तरह भी ख़ूबसूरत हो बहोत कौन उलझी ज़ुल्फ़ को सुलझाएगा छाँव में आने लगेंगे लोग फिर जब कोई पौधा शजर बन जायेगा बोझ ही बस बोझ उस पर इस कदर इस तरह तो शख्स वो मर जायेगा उसके फ़न में इक अजब जादू सा है नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा siya
Siya Sachdev 2:56pm Jul 19
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा..

फिर भला क्या ज़िन्दगी में पायेगा
आदमी जब मुतमईन हो जायेगा

मय के पैमाने भला अब कब तलक
इस तरह क्या दिल को तू बहलायेगा

इस तरह भी ख़ूबसूरत हो बहोत
कौन उलझी ज़ुल्फ़ को सुलझाएगा

छाँव में आने लगेंगे लोग फिर
जब कोई पौधा शजर बन जायेगा

बोझ ही बस बोझ उस पर इस कदर
इस तरह तो शख्स वो मर जायेगा

उसके फ़न में इक अजब जादू सा है
नाम तो दुनिया में वो कर जायेगा

achal verma ✆ ने कहा…

'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा.

कितना कड़वा सच का दिया आपने , आज भी सब सुबक उठते हैं
जब सीता को बन जाते देखते हैं तो|

Achal Verma

--- On Wed, 7/20/11

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

सलिल जी,

मनभावन मुक्तिकाओं के लिए बधाई..!

सादर,
दीप्ति


--- On Wed, 20/7/11

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
सुन्दर मुक्तिकाओं के लिये एक बार फिर आपकी लेखनी को नमन |
मुक्तिकाएं झर रहीं / कमल मन तृप्त कर रहीं / मंच मुग्ध कर धर रहीं / ढाई आखर वर रहीं !
सादर,कमल

- santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
आपकी मुक्तिका बहुत मनभायी!!
साधुवाद !
सादर
संतोष भाऊवाला

shar_j_n ✆ ekavita ने कहा…

ओह कितना सुन्दर आचार्य जी !
"'सलिल' पल में सिया को वन दे अवध.
सिर धुने, सदियों सिसक पछतायेगा."
सादर शार्दुला

kusum sinha ✆ ekavita ने कहा…

priy sanjiv ji

aapki muktikaon me man ko mugdh kar diya kitna sundar likha hai aapne bar bar padhne ko man karta hai ye to bhagwan ki kripa hai


kusum