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शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

रमजान पर विशेष: पाक़ क़ुरआन

रमजान पर विशेष:  पाक़ क़ुरआन

क़ुरआन का शब्दशः अर्थ है प्रदर्शन अथवा अभिव्यक्ति। क़ुरआन, ईश्वर के शब्द है जिन्हें सातवी शताब्दी में पैगम्बर मोहम्मद के द्वारा अभिव्यक्ति मिली। अपने तीसवे वर्ष के दौरान, पैगम्बर मोहम्मद को स्वप्नादि में दृष्टांत होने लगे। इसके पश्चात आपने एकांत में साधना की व आध्यात्मिक जागृति की गरज से आप हीरा नामक पहाड़ी, जो कि मक्का के बाहरी इलाके में थी, वहाँ जाना शुरु किया। वे अपने साथ जीवन यापन का सामान लिये हुए, एक गुफा में एकांतवास कर ध्यान धारणा में लीन रहा करते थे। अपने जीवन के चालीसवे वर्ष में एक परी ने उनके समक्ष दृष्टांत दिया और आदेश दिया, ''सुनाओ" मोहम्मद ने जवाब दिया, ''मै सुनाने वाला नही हूँ"।
तब उस परी ने मोहम्मद को अपने पाश में आबद्घ किया, इस अनुभव में मोहम्मद अपनी सीमाओं से पार जा पहुँचे। ऐसा दो बार पुनः हुआ। तीसरी बार जब परी ने उन्हे मुक्त किया, तब उन्होंने कहा :
اقرا باسم ربك الذي خلق
خلق الانسان من علق
اقرا و ربك الاكرم
الذي علم بالقلم
علم الانسان ما لم يعلم
मै सुनाता हूँ! तुम्हारे ईश्वर और आनन्द प्रदाता के नाम पर,
जिसने एक खून के कतरे से इन्सान को बनाया,
मै सुनाता हूँ!
और आपका ईश्वर सर्वव्यापी है
वह जिसने तुम्हे आंतरिक शब्दों को जीना सिखाया
तुम्हे वह सिखाया जो अज्ञात था
(96 : 1-5)
पैगम्बर मोहम्मद ने इन शब्दों को परी के समक्ष दोहराया और तेज़ी से पहाड़ी से नीचे आए। बीच रास्ते में ही, आपने एक आवाज़ सुनी,
''हे मोहम्मद! तुम अल्लाह के संदेशवाहक हो और मै गॅब्रियेल हूँ।"
पैगम्बर ऊपर दृष्टि किये हुए स्तब्ध खड़े रहे और उन्होंने देखा कि क्षितिज के पार तक उस परी का अस्तित्व है।
इस संदेश के साथ ही एक और संदेश प्रस्तुत हुआ और इसे व्यक्तिगत रुप से मोहम्मद को कहा गया :
ن و القلم و ما يسطرون
ما انت بنعمة ربك بمجنون
و ان لك لاجرا غير ممنون
و انك لعلى خلق عظيم
नुन (एक संक्षिप्त अक्षर)
आंतरिक पुस्तक के गुह्य व स्पष्ट ज्ञान से
और उसके तत्वरुप में रुपांतरण से
आप मात्र आपके ईश्वर की इच्छा से
भले, बुरे अथवा प्राप्ति अप्राप्ति
एवं उच्च चरित्र के आदर्श
(68 : 1-4)
कुछ अंतराल के लिये, वहाँ कोई संदेश नही थे, फिर वे प्रकट हुए और पैगम्बर के पूरे जीवनकाल तक समय समय पर, लगभग 25 वर्षों तक उनके समक्ष रहे।
ये संदेश प्रथमतः कहीं दूर से आती हुई मधुर घंटियों के आवाज़ के समान और आगे मुखर होती हुई एक आवाज़ के समान थे। इन संदेशों को ग्रहण करते समय मोहम्मद साहब की अवस्था प्राकृतिक रुप से बदल जाती थी। इन संदेशों को उनके अनुयायियों द्वारा याद रखा गया और उन्हे हड्डि.यों, पेड़ की छाल, पत्तियों व अन्य इस प्रकार की वस्तुओं पर उन्हे अंकित किया गया। पैगम्बर मोहम्मद (अल्लाह उन्हे शांति में रखे) ने क़ुरआन को एकमात्र चमत्कार माना है जो ईश्वर द्वारा उनके माध्यम से किया गया और इसे आपने ''ईश्वरीय चमत्कार" कहा है।"

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दिव्य प्रकाश

الله نور السماوات و الأرض مثل نوره كمشكواة فيها مصباح المصباح في زجاجة الزجاجة كأنها كوكب دري يوقد من شجرة مباركة زيتونة لا شرقية و لا غربية یکاد زيتها يضيئ و لو لم تمسسه نار نور على نور يهدي الله لنوره من يشاء و يضرب الله الأمثال للناس و الله بكل شيئ عليم.
'ईश्वर स्वर्ग व धरती का प्रकाश है। उसके प्रकाश की कथा है कि एक स्थान पर एक दिया है उसपर काँच का आवरण काँच, चमकते सितारे जैसा, फलित वृक्ष से जाज्वल्य जैतून! न पूर्व का न पश्चिम का जिसका तेल स्वयं प्रकाशित है जिसे अग्नि स्पर्श की आवश्यकता नही है। प्रकाश पर प्रकाश, कृपा! ईश्वरेच्छा ईश्वर मानव निर्मित कथाओं से आगे है ईश्वर सर्वज्ञ है।
(24:35)
ألر كتاب أنزلناه إليك لتخرج الناس من الظلمات إلى النور بإذن ربهم إلى صراط العزيز الحميد.
ए .एल .आर ., एक पुस्तक जिसे हमने आत्मसात किया, इस आशा से कि यह मानव मात्र को गहरे अज्ञान से बाहर निकाले,अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाए - उनके ईश्वर से, उसकी ओर, उच्च शक्ति की ओर, जो संपूर्ण भक्तिस्वरुप है!
(14:1)
सूफीवाद का लक्ष्य है आत्मज्ञान, अर्थात उस विधाता का ज्ञान। इस सत्य ज्ञान का फल होता है परम्‌ प्रकाश। प्रोफेसर सादेग अंघा हमें बताते है, ''अपने अंतर्मन के सम्राज्य में रहस्यमय व सत्य की अनुभूतियाँ पाओ और ये पूर्ण विश्वास रखो कि तुम उस परम्‌ प्रकाश को अवश्य पा सकोगे और इस प्रकाश के मार्गदर्शन में ही तुम उसके अतीन्द्र अस्तित्व को अनुभूत कर पाओगे और इस प्रकार से जो परम्‌ शांति तुम खोज रहे थे, अब तुम्हारी हो जाएगी। यह जान लो कि जो तुम्हारे बगैर अस्तित्व में है, वह सत्य नही है और जो तुममें निहित है वही सत्य है।  [1]
الله ولي اللذين آمنوا يخرجهم من الظلمات إلى النور.
अल्लाह उनका रक्षक है जिन्हे विश्वास है, गहराई से वह उन्हे अंधेरे से प्रकाश में ले जाता है।
(2:257)
يهدي به الله من اتبع رضوانه سبل السلام و يخرجهم من الظلمات إلى النور بإذنه و يهديهم إلى صراط مستقيم.
जहाँ भी अल्लाह का मार्गदर्शन है, उसका आनंद व सुरक्षा है और यही उन्हे अंधकार से, उसकी इच्छा के चलते प्रकाश में ले जाता है और इस पथ का प्रदर्शक बन जाता है।
(5:16)
सूफीवाद के अध्ययन का मुख्य आधार शब्द अथवा विचार नही है जो कि सत्य का आवरण हो। मात्र ईश्वरीय कृपा व पीर के मार्गदर्शन से ही साधक के मन में निर्विवाद रुप से वह अनमोल सत्य उजागर हो सकता है । पीर का मार्गदर्शन व परम्‌ प्रकाश, इस यात्रा के अवरोधों से बचाव हेतु आवश्यक है। आत्मज्ञान की इस यात्रा में, ''सत्य शब्द", शुद्घ हृदय, सही इरादे, ईमानदारी, कार्यनिष्ठा व सत्य समर्पण आवश्यक है, अतः ईश्वरीय कृपा व पैगम्बर के प्रति निरंतर समर्पण, वह अनमोल सत्य, साधक के अंतर्मन में जागृत होकर उसे समस्त प्रश्नों से परे कर देता है।" [2]
يأيها اللذين آمنوا اتقوا الله و ءامنوا برسوله يؤتيكم كفلين من رحمته و يجعل لكم نورا تمشون به و يغفر لكم و الله غفور رحيم.
और वह तुम पर दुगुनी कृपा करेगा, वह तुम्हे वह परम्‌ प्रकाश प्रदान करेगा जो पथप्रदर्शक है, और वह तुम्हे माफ कर देगा क्योंकि अल्लाह सबसे दयालु है।
(57:28)
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1. Sadegh ANGHA, Hazrat Shah Maghsoud, The Light of Salvation, M.T.O. Publications, Tehran, Iran, 1975, p.99
2. Ibid, p.86
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स्थायी चमत्कार

पैगम्बर मोहम्मद के साथ संपन्न मुख्यतः सभी चमत्कार उनके आत्मतत्व तक ही सीमित थे और ये उस पीढ़ी के अनुयायियों तक ही सीमित रहे। क़ुरआन का चमत्कार पुनर्जन्म के समय तक ही रहा। ये चमत्कार प्राकृतिक अवस्था के उच्च स्तर व रहस्यात्मक कल्पनाओं को अभिव्यक्ति देने से संबंधित है। ऐसा कोई भी काल नही होगा जहाँ उसके संदेश उपस्थित नही होंगे। यह नियमित रुप से अपनी उपस्थिती की सार्थकता को सिद्घ करता रहेगा। अन्य शब्दों में, भौतिक क़ुरआन की उपस्थिति, क़ुरआन की वास्तविकता का सत्याभास मात्र है। [1]
क़ुरआन एक ब्रम्हांड के समान है जिसमें अनेक उड़न खतोलों के समान अस्तित्व व समझ के स्तर है... ये जान लेना महत्वपूर्ण है कि हम आत्मतत्व को आत्मसात कर ईश्वरीय कृपा के बगैर क़ुरआन के सही अर्थ को नही जान सकते। यदि हम क़ुरआन को सतही तौर पर देखें और इसके विचारों का उथला सा आकलन करें, हम सतह पर तैरते अस्तित्व के भावों को देखें और आंतरिक अस्तित्व से अछूते रहकर व्यवहार करेंगे तो क़ुरआन का अर्थ भी हमें मात्र सतही तौर पर समझ में आएगा। वह अपने रहस्यों को हमसे छुपा रखेगी और हम सत्य का साक्षात्कार नही कर पाएँगे। यह मात्र आध्यात्मिक जागृति से ही संभव है कि मानव पवित्र शब्दों के रहस्यात्मक अर्थ को समझ सके।
ज़लाल-अल-दीन रुमी जलालुद्‌दीन रुमी, फारसी रहस्यबोध के कवि, क़ुरआन व विश्वासक के संबंध को इस प्रकार से अभिव्यक्त करते है : ''कुछ व्यक्ति नवजात शिशुओं के समान शािब्दक अर्थ आत्मसात कर क़ुरआन को दुग्धपान के समान ग्रहण करते है। परंतु वे, जो अनुभवी है व ऊँची व परिपक्व सोच रखते है, वे ही सही समझदारी के साथ क़ुरआन के आंतरिक मर्म को समझते है।"
क़ुरआन के विद्यार्थी को आंतरिक व बाह्य, रहस्यात्मक व विश्लेष्णात्मक शिक्षण के प्रकारों के मध्य अंतर करना होता है।
रुमी द्वारा मसनवी के अंतर्गत, क़ुरआन के रहस्यों को इस प्रकार से अभिव्यक्त किया गया :
'क़ुरआन के शब्दों को जानना सरल है,
परंतु बाह्य स्वरुप में एक आंतरिक रहस्य है।
उस रहस्यमय अर्थ में ही तृतीय रुप में
उच्च विज्ञता शामिल है।
चौथा अर्थ किसी ने भी नही देखा।
रक्षा प्रभु! अतुलनीय, सर्वप्रदाता।
और वे आगे बढ़े, एक एक कर सात अर्थों तक
पैगम्बर के शब्दों के अनुसार, बिना किसी शक शुबहे के
मेरे पुत्र! मात्र ऊपरी अर्थ पर ही सीमित न रहो
यहाँ तक कि आदम के साथ के शैतान भी ऊपरी ही थे
ऊपरी अर्थ यानी शैतान का शरीर :
जिसका शरीर दृष्टिगत होता है परंतु आत्मा अदृश्य है।

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1. Kenneth Cragg and R. Marston Speight, Islam from Within: anthology of a Religion, Wadsworth Publishing Company, 1980, p.18
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http://www.blogger.com/post-edit.g?blogID=5874853459355966443&postID=8258775778822294881
आभार : MTO Islam Website

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