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शनिवार, 27 अगस्त 2011

दोहा सलिला: यमक का रंग दोहे के संग- अधर बनें श्री-वान... --- संजीव 'सलिल'

गले मिले दोहा यमक
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मत लब पर मुस्कान रख, जब मतलब हो यार.
हित-अनहित देखे बिना, कर ले सच्चा प्यार..
*
अमरस, बतरस, काव्यरस, नित करते जो पान.
पान मान का ग्रहणकर, अधर बनें श्री-वान..
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आ राधा ने कृष्ण को, आराधा दिन-रैन.
अ-धर अधर पर बाँसुरी, कृष्ण हुए बेचैन..
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जल सा घर कोई नहीं, कहें पुलककर मीन.
जलसा-घर को खोजते, मनुज नगर में दीन..
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खुश बू से होते नहीं, खुशबू सबकी चाह.
मिले काव्य पर वाह- कर, श्रोता की परवाह..
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छतरी पानी से बचा, भीगें वसन न आज.
छत री मत चू आ रही, प्रिया बचा ले लाज..
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हम दम लेते किस तरह?, हमदम जब बेचैन.
उन्हें मनायें किस तरह, आये हम बे-चैन..
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3 टिप्‍पणियां:

Ram Mani Shukla , Kavya Dhara (काव्य धारा). ने कहा…

वाह वाह श्रीमान ! शब्द नहीं हैं !

Ram Mani Shukla 9:35am Aug 27

sanjiv 'salil' ने कहा…

आपका आभार शत-शत.

जिसे राम मणि मिल गयी, वही हो गया धन्य.
'सलिल' नमन करता उसे, है सौभाग्य अनन्य..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यमक अलंकार कि बेहतरीन प्रस्तुति