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सोमवार, 29 अगस्त 2011

मुक्तिका: बने सादगी ही श्रृंगार.. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
बने सादगी ही श्रृंगार..
संजीव 'सलिल'
*
हम खुद चुनते हैं सरकार.
फिर हो जाते है बेज़ार..

सपने बुनते हैं बेकार.
कभी न होते जो साकार.

नियम-कायदे माने अन्य.
लेकिन हम तोड़ें सौ बार..

कूद-फांद हम बढ़ जायें.
बाकी रहें लगायें कतार..

जनगण के जो प्रतिनिधि हैं.
चाहें हर सुविधा अधिकार..

फ़र्ज़ न किंचित याद रहा.
हक के सब हैं दावेदार..

लोकपाल क्या कर लेगा?
सुधरे नेता अगर न यार..

सुख-सुविधा बिन प्रतिनिधि हों
बने सादगी ही श्रृंगार..

मतदाता से दूर रहें
तो न मौन रह, दो धिक्कार..

अन्ना बच्चा-बच्चा हो.
'सलिल' तभी हो नैया पार..
*********************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

1 टिप्पणी:

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

सरकार चुन कर बेज़ार ही हो जाते हैं हम

बड़े बड़ों ने कहा, हमारे बिन दुनिया बेज़ार है
आज मगर दुनिया में हम बेज़ार भटकते आदमी