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शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

लघुकथा: सफलता संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                                                             
सफलता 
संजीव 'सलिल'
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गुरु छात्रों को नीति शिक्षा दे रहे थे- 

- ' एकता में ताकत होती है. सबको एक साथ हिल-मिलकर रहना चाहिए- तभी सफलता मिलती है.' 

= ' नहीं गुरु जी! यह तो बीती बात है, अब ऐसा नहीं होता. इतिहास बताता है कि सत्ता के लिए आपस में लड़ने वाले जितने अधिक नेता जिस दल में होते हैं' उसके सत्ता पाने के अवसर उतने ज्यादा होते हैं. समाजवादियों के लिये सत्ता अपने सुख या स्वार्थ सिद्धि का साधन नहीं जनसेवा का माध्यम थी. वे एक साथ मिलकर चले, धीरे-धीरे नष्ट हो गये. क्रांतिकारी भी एक साथ सुख-दुःख सहने की कसमें खाते थे. अंतत: वे भी समाप्त हो गये. जिन मौकापरस्तों ने एकता की फ़िक्र छोड़कर अपने हित को सर्वोपरि रखा, वे आज़ादी के बाद से आज तक येन-केन-प्रकारेण कुर्सी पर काबिज हैं.' -होनहार छात्र बोला. 

- गुरु जी चुप!

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