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बुधवार, 14 सितंबर 2011

मुक्तिका : अब हिंदी के देश में ______ संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
अब हिंदी के देश में
संजीव 'सलिल'
*
करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.
गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..

ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में

बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.
मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..

'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.
नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..

माँ को भुला आंटियों के पीछे भरमाये बन नादां
मातृ-चरण-छवि उर में समो लो अब हिंदी के देश में..

मत सँकुचाओ जितनी आती, उतनी तो हिंदी बोलो.
नव शब्दों की फसलें बो लो अब हिंदी के देश में..

गले लगाने को आतुर हैं तुलसी सूर कबीरा संत.
अमिय अपरिमित जी भर लो लो अब हिंदी के देश में..

सुनो 'सलिल' दोहा, चौपाई, छंद सहस्त्रों रच झूमो.
पाप परायेपन के धो लो अब हिंदी के देश में..
*****

13 टिप्‍पणियां:

Uttkarsh Prakashan ने कहा…

Uttkarsh Prakashan
बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ! मज़ा आ गया ! जय हिंदी !

बेनामी ने कहा…

achal verma
To: ekavita@yahoogroups.com
Sent: Wednesday, September 14, 2011 12:49 PM
Subject: Re: [ekavita] करो न चिन्ता

क्षमा चाहते हुए मैं आपसे और साथ में अपने बहुत सारे भाइयों से
अलग विचार रखता हूँ |
अंग्रेज़ी और उर्दू के clutch के कारण ही हम हिन्दी भाषा
को आगे नहीं बढ़ा पा रहे | जब तक हम इन भाषाओं पर निर्भर
रहेंगे हम आगे बढ़ ही नहीं पायेंगे |
यदि हममें इक्षा शक्ति होती तो अबतक हम हिन्दी भाषा
में वो सारे शब्द ढूंढ चुके होते जिनकी हमें आवश्यकता होती और
भाषाएँ तो सदा सर्वदा ही गढ़ी गई हैं , उधार नहीं ली गईं हैं |
उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे ,

अचल वर्मा

बेनामी ने कहा…

deepti gupta
Subject: [eChintan] Re: अचल जी, भाषा जितनी सार्वभौम होगी... करो न चिन्ता
Date: Friday, September 16, 2011, 6:20 AM


आदरणीय अचल जी,

अपने अस्तित्व को गरिमा से कायम रखते हुए हिन्दी जितनी सार्वभौम (Cosmopolitan) है, उसे वैसे ही बने रहने देना चाहिए. वह जितनी सार्वभौम होगी, उतनी ही संपन्न और समध्द होगी. हमारे, भाषाविदों का भी यही मत था. महावीर प्रसाद द्विवेदी, हजारी प्रसाद द्विवेदी,प्रेमचंद सभी ने 'हिन्दुस्तानी' (ध्यान रहे, यह एक उर्दू शब्द है) भाषा के लेखन पर बल दिया. इस मिले-जुले रूप के कारण ही उसे 'हिन्दी' कहा गया. यही पहले 'हिन्दवी' कहलाती रही.

अचल जी, आप उर्दू को Clutch बता रहे हैं, लेकिन वे यह भी ना भूले कि हिन्दी की मिठास और खूबसूरती उर्दू से है, इसी तरह अंग्रेज़ी के शब्दों का हिन्दी में घुल-मिल जाना, प्रवाह में आ जाना भी Clutch नहीं है - वह भाषाविज्ञान के अनुसार एक भाषा की दूसरी भाषा के शब्दों (सम-गुणी, सम्- ध्वनि आदि विशेष आधार और कारणों से ) को अपनाने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. दूसरे राजनीतिक कारण भी हैं जैसे जिन जातियों और भिन्न धर्म वालों ने भारत पर राज किया - उनकी भाषा का प्रभाव हिन्दी पर होना स्वभाविक है.

अगर आप गौर करें तो, अंग्रेज़ी ने तमाम निम्नलिखित शब्द अन्य भाषाओं से अपना रखे हैं. इससे क्या उसका विकास बाधित हो गया ????? नहीं. बल्कि वह अधिक संपन्न और समृध्द ही हुई हैं.
French - Programme,, parole, collage, engagé, moustache ,décor, souvenir, route, rendezvous cliché, commune, queue, compere
,unique, critique , madam (madame), garage ,
Latin - area, capsule, compensate, dexterity,
Scandinavian - thrust, ugly, want, window, wing
Greek - history, anonymous, tonic,autograph, catastrophe, comedy, data, ectasy, history, pneumonia, tragedy, climax,skeleton,
Italian - balcony, opera, studio, pantaloons, motto, piano,
Spanish - cannibal, adobe, mosquito

किसी भी भाषा का विकास इसी तरह के आदान-प्रदान द्वारा होता है. हिन्दी में अनेक शब्द प्रांतीय बोलियों,ब्रज, अवधि, मैथिलि, भोजपुरी आदि के भी मिलेगें. भाषा समयानुसार ढलती रहती है, परिवर्तित होती है, रूपांतरित होती और भावों व विचारों के सहज सम्प्रेषण में सहायक होती है. यह उसका अपना कार्य क्षेत्र है. अत: उसके साथ ज़ोर- ज़बरदस्ती नही करनी चाहिए. उसका प्रवाह नदी की तरह आज़ाद होना चाहिए. उस पर जातिगत, देशगत, धर्मगत आदि बाँध बना कर, उसके विकास को अवरूध्द नहीं करना चाहिए. नदी की तरह बहते हुए - वह स्वयं अपने पड़ाव खोजती है, मोड़ बदलती है, अपने में आए कचरे को खुद फेंकती है, अच्छी बातों, नए समर्थ शब्दों को ग्रहण करती है - चाहे वे देसी हो या विदेशी. This is a migration theory. इस तरह निर्बाध स्वच्छ और प्रांजल बनी प्रवाहित होती रहती है.
सादर,
दीप्ति

chal verma ✆ eChintan ने कहा…

aआदरणीया दीप्ति जी ,
आप विदुषी हैं और आपसे ये मंच बहुत कुछ सीख रहा है , मैं भी अपवाद नहीं , लेकिन आपने इस clutch पर तो ध्यान दिया
लेकिन जिस भाव को लेकर इसे लिखा गया , उसपर आपका ध्यान गया ही नहीं | दोष आपका कम आपके परिवेश का ज्यादा दीख रहा है |
अगर हम सारे शब्द उर्दू के ही लेलें और उसे हिन्दी लिखने में इस्तेमाल करें तो भी बिगड़ेगा तो कुछ नहीं लेकिन हिन्दी कमजोर होती चली जायेगी, और संभवतः लुप्त भी हो जायेगी एक दिन, जैसे अंग्रेज़ी के साए में हो ही रही है |
तुलसी के रामायण में भाषा मिश्रित नहीं , और उन्हें इसके लिए कोई प्रयास किया हो ऐसा भी नहीं लगता | लेकिन अब तो भाषा को शुद्ध रखने के लिए हमें प्रयास करना पडेगा | अगर हम और आप ही इसपर ध्यान नहीं देंगे तो आने वाली पीढी से तो क्या ही उम्मीद किया जाय |


अचल वर्मा

Brij bhushan choubey ने कहा…

अजब अनुभूति होती है आपकी रचनाये पढ़कर बbloger पर niymit रूप से इनका आनंद लेता हू

Ashish ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
आज हमें हिंदी में सक्रिय होना ही चाहिए|
आपने हिंदी अपनाने हेतु सुन्दर वचन लिखा है| नमन है आपको|

Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ने कहा…

हिंदी दिवस के बहाने यह रचना बहुत सारी विडम्बनाओं पर आक्षेप करती है !!
सार्थक सशक्त !!!
सादर नमन %

siyasachdev ने कहा…

Gहम आपके इस हिंदी प्रेम से अभिभूत है ..
विश्व हिंदी दिवस पर यह संकल्प लीजिये अपनी मात्रभाषा हिंदी को नव जीवन देगे

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

आचार्य जी,
काश यह देश हिंदी का देश बन पाता, तो हम हिंदी दिवस रोज मनाते, हालाकि हम लोग तो सभी सरकारी संचिका आदि हिंदी में ही निस्तारित करते है, जिससे सर्वोच्च स्थान पर बैठे प्रधान सचिव स्तर के पदाधिकारी भी संचिका पर हिंदी में ही लिखते है और आदेश इत्य…

Saurabh Pandey ने कहा…

हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर हिंदी को सम्मानित करती इस रचना हेतु आचार्यजी सादर अभिनन्दन.
वैसे, हम गलत या सही, जिस जीवन-शैली को जी रहे हैं, उसकी भी अपनी मांग है. उन मांगों पर ध्यान न देना असहज भी तो है. चाहे कोई कितना ही नकारे आज का समय आज के संदर्भ म…

सुनीता शानू ने कहा…

आदरणीय संजीव जी
मै पहले भी कई बार आपको पढ़ चुकी हूँ शायद ई कविता ग्रुप पर भी आपको पढ़ा था।
आपका लेखन हमेशा ही जबरदस्त रहा है।
''मत सँकुचाओ जितनी आती, उतनी तो हिंदी बोलो.नव शब्दों की फसलें बो लो अब हिंदी के देश में..''
सादर-नमस्कार।

mohinichordia ने कहा…

नव शब्दों कीफसलें बो लो....
हिंदी हमारी मात् भाषा को ऊँचा उठाने के लिए साधुवाद
संजीव सलिल जी

sanjiv 'salil' ने कहा…

ब्रजभूषण जी, आशीष जी, अरुण जी, सिया जी, बागी जी, सौरभ जी, सुनीता जी, मोहिनी जी.
आपका आभार शत-शत.
ब्रजभूषण जनगण पर छायें अब हिंदी के देश में.
सिया-अरुण आशीष लुटायें अब हिंदी के देश में.
बागी सौरभ सुमन खिलाये अब हिंदी के देश में.
नीति सुनीता मोहिनी भाये अब हिंदी के देश में.