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बुधवार, 7 सितंबर 2011

लघु कथा: गुरु दक्षिणा संजीव 'सलिल'

लघुकथा:                                                                                
गुरु दक्षिणा
संजीव 'सलिल'
*
एकलव्य का अद्वितीय धनुर्विद्या अभ्यास देखकर गुरुवार द्रोणाचार्य चकराये कि अर्जुन को पीछे छोड़कर यह श्रेष्ठ न हो जाए.

उन्होंने गुरु दक्षिणा के बहाने एकलव्य का बाएँ हाथ का अँगूठा माँग लिया और यह सोचकर प्रसन्न हो गए कि काम बन गया. प्रगट में आशीष देते हुए बोले- 'धन्य हो वत्स! तुम्हारा यश युगों-युगों तक इस पृथ्वी पर अमर रहेगा.

'आपकी कृपा है गुरुवर!' एकलव्य ने बायें हाथ का अँगूठा गुरु दक्षिणा में देकर विकलांग होने का प्रमाणपत्र बनवाया और छात्रवृत्ति का जुगाड़ कर लिया. छात्रवृत्ति के रुपयों से प्लास्टिक सर्जरी कराकर अँगूठा जुड़वाया, द्रोणाचार्य एवं अर्जुन को ठेंगा बताते हुए 'अंगूठा' चुनाव चिन्ह लेकर चुनाव समर में कूद पड़ा.

तब से उसके वंशज आदिवासी द्रोणाचार्य से शिक्षा न लेकर अँगूठा लगाने लगे.

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

5 टिप्‍पणियां:

MAHIPAL SINGH TOMAR ने कहा…

MAHIPAL SINGH TOMAR ✆ mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com eChintan




कल्पना-शीलता के सामयिकी तेवर ,बधाई |

Mukesh Srivastava ✆ mukku41@yahoo.com eChintan) ने कहा…

संजीव जी,

तोमर जी की बात बिलकुल ठीक जंची की इस कथा को बहुत
अच्छे ढंग से आपने समयाकिता से जोड़ा है.
बधाई

मुकेश इलाहाबादी

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintan ने कहा…

आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर हास्य-व्यंग लघु-कथा | बधाई !
द्वापर का एकलव्य इस कलियुग में धन्य हो गया
युगों तक यश-अमरत्व का आशीर्वाद मन्य हो गया
कमल

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com eChintan ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
कल से आज का मिलाप अद्भुत है !!साधुवाद
सादर संतोष भाऊवाला

achal verma ✆ eChintan ने कहा…

EXCELLENT .

Achal Verma