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गुरुवार, 15 सितंबर 2011

लेख: साहित्य मे चोरी --आदिल रशीद

लेख:
साहित्य मे चोरी 
आदिल रशीद

कभी -कभी एक ही विषय पर दो कवि एक ही तरह से कहते हैं, उस को चोरी कहा जाए या इत्तिफाक ये एक अहम् सवाल है  आज कल तो ज़रा सा ख्याल टकरा जाने को लोग चोरी कह देते हैं और जिस व्यक्ति  के पास जितने अधिक शब्द हैं वो उतना ही बड़ा लेख लिख मारता है और स्वयंको बहुत बड़ा बुद्धिजीवी साबित करने की कोशिश मे लग जाता है  और बात को बहस का रूप दे देता है जब  के सत्य ये होता है के वो कवि या शायर चोर नहीं होता .
जब भी  कोइ साहित्य मे चोरी की बात करता है तो मैं कहता हूँ ये तवारुदहै और ये किसी के भी साथ हो सकता है खास तौर से नए शायर के साथ जिसने बहुत अधिक साहित्य न पढ़ा हो इसीलिए मैं कहता हूँ के कोई भी नया शेर कहने के बाद ऐसे व्यक्ति को जरूर सुनाना चाहिए जिस ने  बहुत सा साहित्य पढ़ा भी हो और उसे याद भी हो नहीं तो आपके तवारुद को दुनिया चोरी कहेगी
 तवारुद शब्द अरबी का है पुर्लिंग है इसके अर्थ  होते हैं एक ही चीज़ का दो जगह उतरना / एक ही ख्याल का दो अलग अलग कवियों शायरों के यहाँ कहा जाना   
तवारुद के हवाले से जो २  दोहे मैं उदाहरण के तौर पर रखता हूँ वो कबीर और रहीम के हैं  जो अपने अपने काल के महान कवि है 

वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारण, साधुन धरा शरीर।-कबीर(1440-1518

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।-रहीम(1556-1627.

अब आते हैं मुख्य बात पर ये चोरी है या इत्तफाक:
तो उस ज़माने मे बात का किसी दुसरे के पास पहुंचना नामुमकिन सा था साधन नहीं थे T.V. net फोन अखबार उस समय एक बात दुसरे तक पहुँचने का कोई माध्यम नहीं था और अगर पहुँच भी जाए तो उसमे एक लम्बा और बहुत लम्बा समय लग जाता था इस लिए कबीर और रहीम के दोहों को  तावारुद का नाम दिया जायेगा और आज अगर ऐसा कोई वाकया  होता है तो इसको चोरी और सीना जोरी ही कहा जायेगा.क्युनके आज साधन बहुत हैं 
कवि ने चोरी की है या उस पर तवारुद हुआ है इस बात को उस कवि से बेहतर कोई नहीं जानता जिस ने ये किया होता है क्युनके आज हर बात नेट पर और पुस्तकों मे उपलव्ध है
( लोग चोरी किस किस तरह करते हैं ये मैं अगले  लेखों  में लिखूंगा )

कविता लिखना और कविमना होना और कविमना होने का ढोंग करना अलग अलग बाते हैं  
कविमना तो वह व्यक्ति भी है जो कविता लिखना नहीं जानता ग़ालिब शराबी थे जुआरी थे वेश्याओं के यहाँ भी उनका आना जाना था उन पर अंग्रेजों के लिए मुखबरी के आरोप भी लगे हैं इन सब के बावजूद 
 उर्दू  शायरी मे ग़ालिब बाबा ए सुखन (कविता के पितामाह) हैं और रहेंगे.

एक बात और कहना चाहूँगा के सवाल तो हमेशा छोटा ही होता है जवाब हमेशा सवाल की लम्बाई (उसमे प्रयोग शब्दों की गिनती) से अधिक होता है.
Technicalities को सीखे बग़ैर तो कोई रचना हो ही नहीं सकती जैसे हम बीमार होने पर  झोला  छाप  डॉक्टर या BUMS के पास नहीं जाते  कम से कम उस रोग के माहिर या उस अंग  के माहिर के पास जाते हैं तो ये कहना ग़लत है के बिद्या से क्या.  लेख लिखना भी एक बिद्या है और उसके  अपने अलग फायदे हैं.

 इस्तिफादा और चर्बा(चोरी)
१ . अगर दोनों रचनाकारों के शेर का विषय वही है परन्तु शब्द दुसरे है तो इस्तिफादा कहलाता है यानि प्रेरणा.
२. अगर दोनों रचनाकरों के विषय भी वही है शब्द भी लगभग -लगभग वही हैं तो फिर तो वो चोरी ही हुई
३. अब ये कवि के कविमना होने पर है के वो कितना ईमानदार है और कितनी ईमानदारी से सत्य स्वीकार करता है कहीं वो  बात को छुपा तो नहीं रहा के साहेब मैं ने तो कभी ये शेर सुना ही नहीं.तो मैं कैसे चोर हो सकता हूँ.
३. साहित्य में ईमानदार (कविमना)होना पहली शर्त है.
4 . हम में विद्वान बनने  की होड़ होनी चाहिए किन्तु खुद को विद्वान या बुद्धिजीवी साबित करने की होड़ नहीं होनी चाहिए  
दुनिया में अभी ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई जो झूठ को १०० % पकड़ सके. ये कवि के कविमना होने पर यानी उसकी इमानदारी पर ही है और उसकी इमानदारी पर ही रहेगा.
 मैं  यहाँ प्रेरणा और चोरी दोनों के उदहारण पेश कर रहा हूँ .
इस्तिफादा
मुझे हफीज फ़रिश्ता कहेगी जब दुनिया 
मेरा ज़मीर मुझे संगसार कर देगा (हफीज मेरठी)

खुद से अब रोज़ जंग होनी है
कह दिया उसने आइना मुझको (आदिल रशीद)

यहाँ दोनों ही  शेर  एक  ही  विषय  पर  हैं मगर दोनों  के शब्द अलग अलग हैं ये  प्रेरणा है  यहाँ हफीज मेरठी के शेर का  बिषय है के दुनिया मुझे फ़रिश्ता (कविमना ) कहेगी तो मेरा ज़मीर मुझे पत्थर मारेगा  के तू ऐसा तो है नहीं और दुनिया तुझे देवता(कविमना)  कहती है .
मेरे शेर में भी यही बात है  इस शेर में कहा गया है के उस ने  मुझे आइना यानि फ़रिश्ता ईमानदार (कविमना) कह दिया परन्तु मैं वैसा तो हूँ नहीं अब  इसी बात को लेकर मेरी खुद से जंग होनी है के या तो तू कविमना हो जा या फिर ज़माने को बता दे के तू पाखंडी है धोकेबाज़ है  
अगर मैं न बताऊँ तो कुछ लोग कभी नहीं जान पाएंगे के मैं ने इस शेर की प्रेरणा कहाँ से ली है
चर्बा (CHORI)
कटी पतंग का रुख मेरे घर की जानिब था 
उसे भी लूट लिया लम्बे हाथ वालों ने (आजर सियान्वी)

कटी पतंग मेरी छत पे किस तरह गिरती 
हमारे घर के बगल में में मकान ऊंचे थे (नामालूम, नाम लिखना उचित नहीं)

हमें ईमानदार होना चाहिए किसी की अच्छी बात को अपने नाम से नहीं लिखना चाहिए सत्य को स्वीकार करना चाहिए क्यूँ के साहित्य में भी और जीवन में भी मौलिकता यानि सत्य  बहुत बड़ी चीज़ है
महान शायर अल्लामा इकबाल को यूँ भी महान कहा जाता है के उन्होंने हमेशा खुले मन से स्वीकार किया और खुद लिखा के उनकी मशहूर रचना "लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी " एक अंग्रेजी कविता का अनुवाद है अगर वो ज़माने को उस समय न बताते तो आज के इस नेट युग में सबको पता चल जाता के ये PREY OF CHILD से प्रेरित है उस स्तिथि मे उन पर चोरी का इलज़ाम लगता लेकिन उन्होंने उसी समय जब नेट का  विचार भी नहीं था अब से ५० साल पहले खुद लिख कर अपने को महान बना लिया.

बहुत से लोगो ने उर्दू हिंदी साहित्य में फारसी से कलाम चुराया है जो आज सब लोगों को पता चल गया है उस में बहुत से बड़े नाम हैं.चोरी औरझूठ ऐसी चीज़े है जो कभी छुपती नहीं हैं. इसी लिए कहा जाता है सत्यमेव  जयते  
अंत  में  हिंदी  दिवस  की  हार्दिक बधाई   
जय  हिंद  जय  भारत 
आदिल रशीद

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