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शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

श्रृद्धांजलि:  
  स्मृति शेष श्रीलाल शुक्ल                                                               shrilal-shukla.jpg
                                                  महेश चन्द्र द्विवेदी
              कल श्रीलाल शुक्ल जी के पार्थिव शरीर को अग्नि में समाते देखा- ३५ वर्ष पूर्व उनसे  प्रथम बार एक विभागीय  डिनर में मिला था, हम दोनों के उत्तर प्रदेश प्रशासन में होने के कारण ऐसा अवसर आया था - सौम्य स्वाभाव , सुन्दर मुख एवं सुलझा व्यक्तित्व-. तब मै लिखता नहीं था और तब तक मैंने राग-दरबारी पढ़ी भी नहीं थी, परन्तु उसके पश्चात् शीघ्र ही पढ़ी- और पढ़ी क्या? हंसी कहना अधिक पयुक्त होगा, क्योंकि प्रत्येक वाक्य के उपरांत हंसी रोकना कठिन होता था- इतना तीखा और नियंतरणहीन हास्योत्पादक व्यंग्य पहले नहीं पढ़ा था- फिर यदा-कदा मिलना होता रहा - १९९५ में जब मेरा पहला उपन्यास 'उर्मि' छपा, तब मैंने श्रीलाल जी को एक प्रति पढने को भेजी- उनकी टिपपनी थी ' अत्यंत रुचिकर  कहानी एवं शैली है परन्तु  कथानक को अबोर्ट कर दिया गया है, इस उपन्यास को सौ पृष्ठ के बजाय ४०० पृष्ठ में लिखना चाहिए था'-  १० वर्ष पश्चात् जब मैंने अपने व्यंग्यात्मक संस्मरण 'प्रशासनिक प्रसंग' उनके पास भेजे , तो चार घंटे पश्चात् ही फ़ोन आया कि मैंने पूरी पुस्तक पढ़ ली है. मैंने आश्चर्य से कहा इतनी जल्दी, तो बोले कि इतनी रुचिकर है कि प्रारंभ करने के पश्चात् छोड़ ही ना सका.'. मै धन्य हो गया- हाल में, जब वह अस्वस्थ रहने लगे थे, तब मिलने जाने पर मैंने अपना व्यंग्य संग्रह 'भज्जी का जूता ' उन्हें दिया , वह पढने की दशा में तो नहीं थे, परन्तु उन्होंने अपनी दो पुस्तकें मुझे दी, जिन्हें मै धरोहर के रूप में रखकर अपने को सौभाग्यशाली समझूंगा. 
               चार दिन पूर्व उन्हें सहारा अस्पताल में आई. सी. यू. में देखकर बड़ा बुरा लगा था- अत्यंत कृशकाय एवं निष्प्राण दिखने वाला शारीर - इतना  जीवंत व्यक्ति इस दशा में - उन्होंने ऐसे  शरीर का त्याग कर दिया है, परन्तु  मेरा विश्वास है कि वह आने वाली  सदियों तक हमारे बीच रहेंगे .
mcdewedy@gmail.com
श्रीलाल शुक्‍ल जन्म ३१ दिसंबर १९२५ - निधन २८ अक्टूबर २०११
विख्यात हिंदी व्यंग्यकार होने के पूर्व वे उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा योग तथा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे. उन्होंने २५ पुस्तकें लिखीं जिनमें मकान, सूनी घाती का सूरज, पहला पड़ाव, बीसरामपुर का संत आदि प्रमुख हैं. उन्होंने स्वतंत्रता पश्चात् भारतीय जन मानस के गिरते जीवन मूल्यों को अपनी विशिष्ट व्यंग्यात्मक शैली के माध्यम से उद्घाटित किया. उनकी सर्वाधिक सम्मानित तथा चर्चित कृति राग दरबारी अंग्रेजी सहित २५ भाषाओँ में अनूदित हुई. १०८० के दशक में उनकी कृति पर दूरदर्शन में धारावाहिक भी र्पसरित हुआ था.उनके जासूसी उपन्यास आदमी का ज़हर साप्ताहिक हिंदुस्तान में धारावाहिक प्रकाशित हुआ था.

श्री लाल शुक्ल को राग दरबारी पर १९६९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९९९ में उपन्यास बीसरामपुर का संत पर व्यास सम्मान से तथा २००९ में ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया था. भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण अवदान हेतु राष्ट्रपति द्वारा उन्हें २००८ में पद्मभूषण से अलंकृत किया गया. सन २००५ में उनकी ८० वीं जन्म ग्रंथि पर दिल्ली में शानदार और जानदार कार्यक्रम का आयोजन उनके मित्रों द्वारा किया गया था तथा 'जीवन ही जीवन' शीर्षक स्मारिका का प्रकाशन किया गया था.

संक्षिप्त जीवन वृत्त:

  • १९२५ - अतरौली लखनऊ उत्तर प्रदेश में जन्म.
  • १९४७ - इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक.
  • १९४९ - प्रादेशिक सिविल सेवा में प्रविष्ट.
  • १९५७ - प्रथम उपन्यास सूनी घाती का सूरज प्रकाशित.
  • १९५८ - प्रथम व्यंग्य लेख संकलन अंगद का पैर प्रकाशित.
  • १९७० - राग दरबारी १९६९ के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार.
  • १९७८  - मकान के लिये मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार. 
  • १९७९-८० - निदेशक भारतेंदु नाट्य अकादमी उत्तर प्रदेश.
  • १९८१ - अंतर्राष्ट्रीय लेखक सम्मेलन बेलग्रेड में भारत का प्रतिनिधित्व.
  • १९८२-८६ - सदस्य साहित्य अकादमी परामर्श मंडल.
  • १९८३ - भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवा निवृत्त.
  • १९८७-९० - आई.सी.सी.आर. भारत शासन द्वारा एमिरितस फेलोशिप.
  • १९८८ - उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार.
  • १९९१ - कुरुक्षेत्र विश्व-विद्यालय द्वारा गोयल साहित्य पुरस्कार.
  • १९९४ -उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा लोहिया सम्मान.
  • १९९६ - मध्य प्रदेश शासन द्वारा शरद जोशी सम्मान.
  • १९९७ - मध्य प्रदेश शासन द्वारा मैथिली शरण गुप्ता सम्मान.
  • १९९९ - बिरला फ़ौंडेशन द्वारा व्यास सम्मान.
  • २००५ - उत्तर प्रदेश स्शासन द्वारा यश भारती सम्मान.
  • २००८ - भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण.
  • २०११ - २००९ का ज्ञानपीठ सम्मान.
साहित्यिक अवदान:  उपन्यास 
  • सूनी घाती का सूरज - १९५७ 
  • अज्ञातवास - १९६२ 
  • राग दरबारी (उपन्यास) - १९६८ - मूलतः हिंदी में; पेंग्विन बुक्स द्वारा इसी नाम से अंग्रेजी अनुवाद १९९३; नॅशनल बुक्स ट्रस्ट द्वारा १५ भारतीय भाषाओँ में अनुवाद प्रकाशित.
  • आदमी का ज़हर - १९७२ 
  • सीमाएं टूटती हैं - १९७३ 
  • मकान - १९७६ - मूलतः हिंदी में; बांगला अनुवाद १९७० .
  • पहला पड़ाव - १९८७ - मूलतः हिंदी में; पेंग्विन इंटरनॅशनल द्वारा अंग्रेजी अनुवाद १९९३.
  • बिश्रामपुर का संत - १९९८ 
  • बब्बर सिंह और उसके साथी - १९९९ - मूलतः हिंदी में; स्कोलोस्टिक इं. न्यूयार्क द्वारा अंग्रेजी अनुवाद बब्बर सिंह एंड हिस फ्रिएंड्स  २००० में.
  • राग विराग - २००१ 
व्यंग्य:

  • अंगद का पाँव - १९५८ 
  • यहाँ से वहाँ - १९७० 
  • मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनायें - १९७९ 
  • उमरावनगर में कुछ दिन - १९८६
  • कुछ ज़मीन में कुछ हवा में - १९९० 
  • आओ बैठ लें कुछ देर - १९९५ 
  • अगली शताब्दी का शहर - १९९६
  • जहालत के पचास साल - २००३ 
  • ख़बरों की जुगाली - २००५ 
लघु कथा संग्रह:
  • यह घर मेरा नहीं - १९७९ 
  • सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ - १९९१ 
  • इस उम्र में - २००३ 
  • दस प्रतिनिधि कहानियाँ - २००३ 
संस्मरण:
  • मेरे साक्षात्कार - २००२ 
  • कुछ साहित्य चर्चा भी - २००८ 
साहित्यिक समालोचना:

  • भगवती चरण वर्मा - १९८९ 
  • अमृतलाल नागर - १९९४ 
  • अज्ञेय: कुछ रंग कुछ राग - १९९९ 
संपादित कार्य:
  • हिंदी हास्य-व्यंग्य  संकलन - २०००
  • साहित्यिक यात्रायें:

    युगोस्लाविया, गेरमन्य, इंग्लैंड, पोलैंड, सूरीनाम, चीन. 

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com



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