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बुधवार, 2 नवंबर 2011

दोहा सलिला: गले मिले दोहा-यमक संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

गले मिले दोहा-यमक

संजीव 'सलिल'
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ध्यान रखें हम भूमि का, कहता है आकाश.
लिखें पेड़ की भूमिका, पौध लगा हम काश..
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बड़े न बनें खजूर से, बड़े न बोलें बोल.
चटखारे कह रहे हैं, दही बड़े अनमोल..
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तंग गली से हो गये, ग़ालिब जी मशहूर.
तंग गली से हो गये, 'सलिल' तंग- अब दूर..
(ग़ालिब ने ग़ज़ल की आलोचना कर उसे तंग गली कहा था.)
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रीत कुरीत न बन सके, खोजें ऐसी रीत.
रीत प्रीत की निभाये, नायक गाकर गीत..
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लिया अनार अ-नार ने, नार देखकर दंग.
नार बिना नारद करे, क्यों नारद से जंग..
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तारा देवी पूज कह, चंदा-तारा मौन.
तारा किसने का-किसे, कहो बताये कौन..
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कैसे मानूँ है नहीं, अब जगजीवन राम.
जब तुलसी कह गये हैं, हैं जग-जीवन राम..
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कबिरा कहता अभी कर, मन कहता कर बाद.
शीघ्र करे आबाद हो, तुरत करे नाबाद..
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शेर शे'र कहता नहीं, कर देता है ढेर.
क्या बटेर तुमको दिखी, कभी लगाते टेर..
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मुँह का बिगड़े स्वाद यदि, चुटकी भर खा खार.
हँसे आबले पाँव के, देख राह पुर खार..
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चुस्की लेते चाय की, पा चुटकी भर धूप.
चुटकी लेते विहँस कर,  हुआ गुलाबी रूप..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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