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रविवार, 13 नवंबर 2011

गीत: गीत गंध का... --संजीव 'सलिल'

गीत:
               गीत गंध का 
संजीव 'सलिल'
*
आओ!
गायें गीत गंध का...
*
जब भी देहरी छोड़ें अपनी
आँखों में सपना पालें चुप.
भीत कुहासे से न तनिक हों
दीप भरोसे का बालें चुप.
गोबर के कंडों की थापें
सुनते कदमों को नापें चुप.
दस्तक दें अवसर-किवाड़ पर-
कोलाहल में भी व्यापें चुप.

भाँपें
छल हम बली अंध का.
आओ!
गायें गीत गंध का...
*
इंगित की वर्जना अदेखी
हो न पैंजनी की खनखन चुप.
चौराहों की आपाधापी
करे न भ्रमरों की गुनगुन चुप.
अनबोली बातें अधरों की
कहें नयन से नयन रहें चुप.
भुजपाशों में धड़कें उर तो
लहर-लहर सद्भाव बहें चुप.

नापें
नभ विस्तीर्ण बंध का.
आओ!
गायें गीत गंध का...
*
हलधर हल ले हल कर पाये
टेरों की पहेलियाँ कह चुप.
बाटी-भर्ता, छौंका-तड़का
मठा-महेरी खा-पी रह चुप.
दद्दा की खुरदुरी हथेली,
सजल आँख मैया की नत-चुप.
अक्षर-अक्षर पीर समाई
शब्द-शब्द सुख लाया खत चुप.

नापें
नभ विस्तीर्ण बंध का.
आओ!
गायें गीत गंध का...
*

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