कुल पेज दृश्य

रविवार, 6 नवंबर 2011

तरही मुक्तिका : ........ क्यों है? -- संजीव 'सलिल'






तरही मुक्तिका  :

........ क्यों है?

-- संजीव 'सलिल'
*
आदमी में छिपा, हर वक़्त ये बंदर क्यों है?
कभी हिटलर है, कभी मस्त कलंदर क्यों है??

आइना पूछता है, मेरी हकीकत क्या है?
कभी बाहर है, कभी वो छिपी अंदर क्यों है??

रोता कश्मीर भी है और कलपता है अवध.
आम इंसान बना आज छछूंदर क्यों है??

जब तलक हाथ में पैसा था, सगी थी दुनिया.
आज साथी जमीं, आकाश समंदर क्यों है??

उसने पर्वत, नदी, पेड़ों से बसाया था जहां.
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदर क्यों है??

गुरु गोरख को नहीं आज तलक है मालुम.
जब भी आया तो भगा दूर मछंदर क्यों है??

हाथ खाली रहा, आया औ' गया जब भी 'सलिल'
फिर भी इंसान की चाहत ये सिकंदर क्यों है??

जिसने औरत को 'सलिल' जिस्म कहा औ' माना.
उसमें दुनिया को दिखा देव-पुरंदर क्यों है??

*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

7 टिप्‍पणियां:

vijay2@comcast.net ✆ekavita ने कहा…

बहुत अच्छे ! बधाई हो ।

विजय निकोर

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
आपकी तरही मुक्तिकाएं आज ही देख पाया |
क्या यह तेवरी की श्रेणी में शुमार हैं ?
रुचिकर लगीं तो एक प्रयत्न मैं कर रहा हूँ जिस पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है |
ईश्वर ने बनाया हर आदमी एक ही माटी से
कोई लखपती कोई खाकपती अंतर क्यों है
सादर,
कमल

santosh.bhauwala@gmail.com ने कहा…

santosh bhauwala ✆
आदरणीय आचार्य जी ,
बेहद खूबसूरत दोहे !!बधाई !!
संतोष भाऊवाला

Divya Narmada ने कहा…

सतोष जी!
ये दोहे नहीं हैं. मुक्तिका को हिंदी ग़ज़ल कहा जा सकता है.

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

माननीय
हिंदी की समस्यापूर्ति की तरह उर्दू में तरही होती है. मुक्तिका हिंदी ग़ज़ल है.
तरही मुक्तिका दिये गये विषय पर रचित मुक्तिका है. आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है.
बधाई.

sanjiv verma salil ने कहा…

संतोष जी!
कविता के जिस रूप में पहली दो पंक्तियों में तुकांत और पदांत समान रखा जाता है, बाद में हर दूसरी पंक्ति में वही पदांत-तुकांत दुहराया जाता है तथा हर द्विपदी का विषय भिन्न-भिन्न हो सकता है उसे हिंदी में मुक्तिका या हिंदी ग़ज़ल कहा जाता है. हिंदी ग़ज़ल में मात्रा-पद्धति से पद-भार की गणना की जाती है, लघु को गुरु या गुरु को लघु करने की छूट नहीं होती, तथा बहुधा निर्धारित लयखण्डों का कड़ाई से पालन अपरिहार्य नहीं होता.
कविता का यही रूप उर्दू ग़ज़ल कहलाता है जब उसे निर्धारित बहरों का अनुपालन करते हुए, तख्ती के नियमों के अनुसार लिखा जाता है. इस रूप में पद-भार की गणना मात्रा के आधार पर न होकर बहर की बंदिश के आधार पर की जाती है और जरूरत होने पर लघु को गुरु या गुरु को लघु करने की छूट होती है.
हिंदी में समस्यापूर्ति की पुरानी परंपरा है. इसमें किसी पूर्व निर्धारित विषय या पंक्ति को केंद्र में रखकर काव्य-रचना की जाती है. काव्य-रूप, शीर्षक के प्रयोग आदि में विविधता हो सकती है. यथा : समस्या पूर्ति दोहा, घनाक्षरी, चौपाई कुण्डली जैसे विशेष काव्य रूप में हो या कवि को काव्य रूप को चुनने की छूट हो. निर्धारित पंक्ति या शब्द का प्रयोग प्रारंभ, अंत या कहीं भी करने की बंदिश या छूट हो. उर्दू में 'समस्यापूर्ति' कोकी तरह 'तरही' की परंपरा है. तरही मुक्तिका उर्दू हिंदी परम्पराओं में सेतु की तरह है. जिसमें पूर्व निर्धारित काव्य पंक्ति का पयोग करते हुए मुक्तिका कही गयी हो.
आशा है आपका समाधान हो सकेगा.
इस उपयोगी चर्चा हेतु धन्यवाद.

santosh bhauwala ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
आपका अतिशय धन्यवाद,
आपने तरही मुक्तिका के बारे में इतने सुंदर तरीके से हमें समझायाI
आगे भी मार्गदर्शन की आशा रखती हूँ I
सादर संतोष भाऊवाला