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सोमवार, 9 जनवरी 2012

नीर-क्षीर दोहा यमक: -- संजीव 'सलिल'

नीर-क्षीर दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
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कभी न हो इति हास की, रचें विहँस इतिहास.
काल करेगा अन्यथा, कोशिश का उपहास.
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रिसा मकान रिसा रहे, क्यों कर आप हुजूर?
पानी-पानी हो रहे, बादल-दल भरपूर..
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दल-दल दलदल कर रहे, संसद में है कीच
नेता-नेता पर रहे लांछन-गंद उलीच.. 
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धन का धन उपयोग बिन, बन जाता है भार.
धन का ऋण, ऋण दे डुबा, इज्जत बीच बज़ार..
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माने राय प्रवीण की, भारत का सुल्तान.
इज्जत राय प्रवीण की, कर पाये सम्मान..
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कभी न कोई दर्द से, कहता 'तू आ भास'.
सभी कह रहे हर्ष से, हो हर पल आभास..
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बीन बजाकर नचाते, नित्य सँपेरे नाग.
बीन रहे रूपये पुलक, बुझे पेट की आग..
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बस में बस इतना बचा, कर दें हम मतदान.
किन्तु करें मत दान मत, और न कुछ आदान..
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नपना सबको नापता,  नप ना पाता आप.
नपने जब नपने गये, विवश बन गये नाप..
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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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