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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

दोहा सलिला: यथा नाम गुण हों तथा -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
यथा नाम गुण हों तथा
संजीव 'सलिल'
*
यथा नाम गुण हों तथा, अनायास-सायास.
तभी करे तारीफ जग, हो न 'सलिल' उपहास..
*
वह बेनाम-अनाम है, जिसका है हर नाम.
नाम मिले उनको सभी, जिनका कोई न नाम..
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नाम रख रहे हर्ष से, है दिल में उल्लास.
नाम रख रहे द्वेष से, प्रभु कर विफल प्रयास..
*
नाम बड़ा दर्शन- रहे छोटे उनसे दूर.
जो न रहे- वह है 'सलिल' आँखें रहते सूर..
*
रखो काम से काम मन, मत होना बेकाम.
शेष दैव का नाम हो, मैं अशेष बेनाम..
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नहीं सार निज नाम में, रख प्रभु मुझे अनाम.
नाम तुम्हारा ही जपूँ, जब ले श्वास विराम..
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दैव न हम बदनाम हों, भले रहें गुमनाम.
शीश उठाये रह सकें, जब हो जीवन-शाम..
*
नाम हो रहा कहें क्या, इससे बड़ा इनाम?
बेशकीमती नाम का, तनिक न मिलता दाम..
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पर्वत पर हरियायेंगे, यदि संबल हों राम.
मिलें आम के आम सँग, गुठली के भी दाम..
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काम सदा निष्काम कर, यथासमय विश्राम.
नाम राम का याद कर, मन बन विनत प्रणाम..
*
बड़ा राम से भी अधिक, हुआ राम का नाम.
नाम शेष होगा सदा, शेष न लेकिन राम..
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



2 टिप्‍पणियां:

santosh bhauwala ✆ ने कहा…

santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी ,यथा नाम तथा खूबसूरत दोहे !नमन !!
संतोष भाऊवाला

dkspoet@yahoo.com ने कहा…

dks poet ✆ dkspoet@yahoo.com
ekavita

आदरणीय आचार्य जी,
इन सुंदर दोहों के लिए साधुवाद स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’